प्रो. नव संगीत सिंह

☆ हास्य रचना ☆ अटैची की सैर प्रो. नव संगीत सिंह

आप सोच रहे होंगे कि ‘अटैची’ किसी देश या शहर का नाम है। अरे नहीं, यह वही ब्रीफकेस है, जिसमें कपड़े आदि रखे रहते हैं। तो जनाब, यह ढाई दशक पहले की बात है, मेरी शादी को एक हफ्ता ही हुआ था कि छुट्टियाँ खत्म हो गईं और मैं कॉलेज-टीचर की ड्यूटी के लिए पटियाला से तलवंडी साबो कॉलेज पहुँच गया। कुछ दिनों तक मैं अपनी पत्नी के साथ अपने माता-पिता के पास पटियाला में रहा।

एक दिन मेरे माता जी, जिन्हें मैं बी-जी कहता था, मेरी पत्नी के साथ तलवंडी साबो आये। मैं बस उन्हें स्टैंड पर लेने गया था। उनके पास मौजूद सामान में एक ब्रीफकेस था, जिसे कभी खोला नहीं गया था। दो-एक दिनों के बाद मैंने अपनी पत्नी से पूछा कि ब्रीफकेस में क्या है? पत्नी ने कहा, “मुझे नहीं पता, यह बी-जी का होगा।” मैंने बी-जी से पूछा तो उन्होंने कहा कि मैंने सोचा कि यह तुम्हारी पत्नी का होगा, इसलिए हम इसे ले आए। मुझे बहुत आश्चर्य हुआ कि उन दोनों ने चार घंटे तक बस में एक साथ यात्रा की और एक बार भी एक-दूसरे से नहीं पूछा कि अटैची किसका है! दरअसल अटैची (ब्रीफकेस) मेरा ही था, जिसमें मैंने एक्स्ट्रा कपड़े डाल कर पटियाला रखा हुआ था। खैर… इस तरह अटैची पहले तलवंडी साबो आया फिर बस का सैर-सफ़र करके वापस पटियाला चला गया।

अब हम जब भी कहीं कुछ समान वगैरह लेकर जाते हैं तो एक-दूसरे से पूछते हैं, “यह किसका है भई?… कहीं अटैची जैसी बात न बन जाए…।”

© प्रो. नव संगीत सिंह

# अकाल यूनिवर्सिटी, तलवंडी साबो-१५१३०२ (बठिंडा, पंजाब) ९४१७६९२०१५.

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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