श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा ‘शहीद’।)

☆ लघुकथा – शहीद ☆

सुशीला जी ने, अपने बेटे राहुल के, शहीद होने की खबर, टीवी पर देख ली थी,  दिल धक करके रह गया, वह गश खाकर भूमि पर गिर पड़ी थी, ऐसा लगा जैसे,उसका सब कुछ विधाता ने छीन लिया है ये क्या हो गया,पर होनी थी, हो गई, और आज सेना के जवान उसके बेटे का शव लेकर उसके गांव आए थे, राहुल के दोस्त समीर ने घर का दरवाजा खटखटाया, वह घर में चुपचाप बैठी थी, सोच रही थी, अब कौन आएगा, जिसका इंतजार था जिसका इंतजार रहता था,उसके तो शहीद होने की खबर आ गई है,  फिर भी उसने, धीरे से सांकल खोली, दरवाजा खुला, तो सामने राहुल का दोस्त समीर यूनिफॉर्म में खड़ा था, समीर पास ही के गांव का था, राहुल के साथ पढा था,और दोनों एक साथ आर्मी में भर्ती हुए थे, समीर ने सुशीला के पैर छुए, और कहा, मां राहुल ने देश पर अपनी जान कुर्बान कर दी, शहीद हो गया है, सुशीला, समीर को एक टक देखती रही, और कहां मुझे टीवी पर समाचार मिल गया था, समीर ने कहा मां आज हम शहीद राहुल को लेकर आए हैं, अंतिम संस्कार के लिए, आप उसके अंतिम दर्शन कर लें, सुशीला बाहर निकली, उसने देखा, आर्मी के वाहन पर ताबूत रखा हुआ है,पीछे बहुत भीड़ थी, शायद सबको गांव में समाचार मिल गया था, वह भी साथ में, शमशान घाट पहुंची, चिता पर राहुल का शव लिटाया गया, राहुल का शव तिरंगे में लिपटा हुआ था, तिरंगा हटाकर सुशील ने राहुल का चेहरा देखा, और देखती रही, एक आंसू भी नहीं निकला, बस शव को एक टक देख रही थी, तभी पंडित जी ने कहा, मां जी शव को मुखाग्नि कौन देगा,, तो सुशीला ने कहा, मैं मैं दूंगी,,, मैं तो इंतजार कर रही थी कि मेरा बेटा मेरे शव को मुखाग्नि नहीं दे, पर विधाता ने मुझे अवसर दिया,

सज के तिरंगे में आया है मेरा लाल,कोई नजर उतारो, कोई नजर उतारो, और सुशीला ने अपने बेटे के शव को मुखाग्नि दी, गांव में शहीद अमर रहे, के नारे लग रहे थे,  सुशीला समीर का सहारा लेकर एक किनारे बैठकर बेटे की चिता को देख रही थी, कि, उसका एक सहारा था वह भी चला गया, पर, मौन थी,,तभी समीर ने कहा मां  राहुल ने खत दिया था मुझे, आपको देने के लिए कहा था, कि अगर मैं देश पर बलिदान हो जाऊं, तो मेरी मां को मेरी एक चिट्ठी दे देना, सुशील ने चिट्ठी ली और पढ़ी,

उसमें लिखा था, मां, मैंने पीठ नहीं दिखाई, दुश्मनों को मार कर, दुश्मन की गोली अपने सीने पर खाई है, मां मैंने उन नापाक हाथों को अपनी भारत माता के आंचल की तरफ बढ़ने नहीं दिया, मैंने उनको खत्म कर दिया, सुशीला ने अपना चेहरा उठाया, और कहा, मेरे लाल, तूने अपनी मां के दूध की लाज रख ली, तूने भारत माता का कर्ज उतार दिया, तू धन्य है पर कौन है वो, जो मां के लाल पर गोली चलाते हैं, वह भी तो किसी मां के लाल हैं, क्यों गोली चलाते हैं, उन्हें किसी ने नहीं समझाया कि तुम भी अपनी मां के लाल हो, और जो सामने खड़े हैं, वह तो तुम्हें जानते भी नहीं, तुम्हारी तो उनसे कोई दुश्मनी नहीं है, किस धर्म में लिखा है, कि धर्म की खातिर जान लो, किसी धर्म में नहीं लिखा, कि किसी का खून बहाया जाए, बंद करो यह रक्तपात, इससे किसी का भला नहीं है ,जैसे मेरा सहारा मुझसे छिन गया, जो मरे हैं वह भी तो किसी मां के लाल हैं ,उनका भी तो सहारा छिन गया, आज वह मां भी क्या सोच रही होगी, यह कैसा आतंक है, यह कैसा जिहाद है, बस करो, अब जिओ और जीने दो,अब सरहद पर खून की नदी बहाना बंद करो, और यह कहकर समीर के कंधे पर हाथ रखकर  अपने घर वापस आ गई,समीर ने कहा, मां राहुल नहीं है तो क्या हुआ, तुम्हारा दूसरा बेटा समीर तो है, वह किसी दुश्मन की नापाक  निगाहों से देश को देखने नहीं देगा, वह भी हर उसे हाथ को काट देगा, जो भारत माता की ओर बढ़ेंगे, सुशीला कुछ कहने की स्थिति में ही नहीं थी, क्योंकि उसकी सांस भी अब रुक गई थी, बेटे के साथ मां ने भी दम तोड़ दिया था, समीर चिल्लाया, मां, मां, पर मां कहां थी वह तो अपने बेटे के साथ अनंत यात्रा को निकल चली थी…

कौन समझाए इन देश के दुश्मनों को, कि जो रक्तपात तुम करते हो तो तुम्हारी गोली किसी एक को नहीं मारती, उसके साथ जाने कितनी जान चली जाती हैं, कितने घर उजड़ जाते हैं, कितनी मांगे उजाड़ जाती हैं, जिन्हें तुम जानते भी नहीं हो, उन पर गोली चलाते हो, बंद करो ये सब,ये जिहाद नहीं,दहशत गर्दी है,इससे मानवता लहूलुहान होती है,धरती को खून से नहीं सींचना है,धरती पर तो प्रेम का संदेश फैलाना है.

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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