श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’
(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा – गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी, संस्मरण, आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – हृदय के झरोखे में.।)
☆ लघुकथा # 71 – हृदय के झरोखे में… ☆ श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ ☆
” दिल करता है, बात न करूँ। “
” ऐसा क्यों कहते हो कि बात नहीं करोगे?”
” वो तो यूँ ही। ”
” बड़े आये, यूँ ही कहने वाले! यूँ ही भी कुछ होता है क्या ?
” एक रोमांटिक गाना सुना दो”
” अच्छा आज तुम्हें क्या हो गया है रोज तो मेरे गाने से चिढ़कर चली जाती थी ।”
” वो मेरा मन – पसंद गीत जो तुम शादी से पहले मुझसे मिलने आए थे तब सुनाए थे।”
” तुम्हारा ही क्यों, वो तो मेरा भी है। ”
” तुमसे बात करना किसी संगीत से कम होता है क्या?”
” बहुत शैतान हो गयी हो। “
” इसमें शैतानी वाली क्या बात है?”
” मैंने तो कोई गीत नहीं गाया?”
” क्या ये जरुरी है कि गीत वही सुनाई दे, जिसे गाया भी जाय। मेरे लिए तो तुम्हारी आवाज ही संगीत है।”
” ये बात तो तुम पर ज्यादा सुहाती है। जब भी बात करती हो, लगता है कुछ न कुछ गुनगुना रही हो।
“और क्या कर रही हूँ।”
“ सच ही ये है कि तुमसे बात करते हुए, तुम्हारे ह्रदय की भाषा में, तुम्हारे भावों में डूबकर, हवा की तरंगों के वाद्यों के साथ तुम गा रही होती हो…।
“ जिसे सिर्फ तुम सुन रहे होते हो क्योंकि उसे सिर्फ तुम ही समझते हो।“
” शब्द संगीत भी बन सकते हैं, इसका एहसास तो तुमसे बात करने के बाद ही होता है।”
” मस्के की जरुरत है क्या?”
” तुम नहीं चाहतीं तो ठीक है।”
घनश्याम दास जी बिस्तर से नीचे गिर जाते हैं और उनका सपना टूट जाता है।
संगीता तुम इतनी जल्दी मुझे छोड़कर क्यों ऊपर चली गई, अब तो बस हृदय के झरोखे में तुम्हारा एहसास रह गया है।
© श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’
जबलपुर, मध्य प्रदेश मो. 7000072079
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈