श्रीमती उज्ज्वला केळकर

☆ कथा-कहानी ☆ प्रतिमा ☆ श्रीमती उज्ज्वला केळकर ☆

‘साहबजी…’

‘बोल…’

‘सरकार की हर योजना, हर निर्णय की आलोचना करना, यही हमारी पक्षीय नीति है नं?’

‘हुँ… तो फिर…’

‘तो उस दिन आप ने मुख्यमंत्रीजी की नई घोषणा का स्वागत कैसे किया?’

‘मैं ने किया? कौनसी  घोषणा? कैसा स्वागत?’

‘वही … नगर के बीचोंबीच उस नेताजी की प्रतिमा स्थापित करने की घोषणा… उस दिन आप ने कहा था, ‘सरकार के विधायक कार्य में हमारा पक्ष सहयोग देगा।‘ आप की दृष्टी से सरकार का कोई भी कार्य विधायक हो ही नही सकता। फिर इस बार सहयोग की भाषा कैसी?

‘अरे, मूरख, प्रतिमा बनानी है, तो चंदा इकठ्ठा करना ही पडेगा…’

‘हां! सो तो है। ‘

‘इस काम में हम उनकी की मदद करेंगे।‘

‘क्यौं?’

‘तभी तो चंदे का कुछ हिस्सा अपनी तिजोरी में भी आ जाएगा।‘

‘उँ…’

‘प्रतिमा की स्थापना के बाद कभी-न-कभी, कोई-न-कोई उस की विटंबना करेगा। शायद उस की तोड –फोड भी हो सकती है।‘

‘उस से क्या साध्य होगा?’

‘ तो आंदोलन होगा। निषेध मोर्चे निकाले जाएंगे। लूट मार होगी। दंगा – फसाद होगा। तब तो समझो अपनी चाँदी ही चाँदी…’

‘मगर ऐसा नहीं हुआ तो?’

‘तो इस की व्यवस्था भी हम करेंगे।

 

© श्रीमती उज्ज्वला केळकर

मो. 9403310170,   e-id – [email protected]  

संपर्क -17 16/2 ‘गायत्री’ प्लॉट नं. 12, वसंत दादा साखर कामगारभावन के पास , सांगली 416416 महाराष्ट्र 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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