श्री अरुण श्रीवास्तव 

(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उनका ऐसा ही एक पात्र है ‘असहमत’ जिसके इर्द गिर्द उनकी कथाओं का ताना बना है। आप प्रत्येक बुधवार साप्ताहिक स्तम्भ – असहमत  आत्मसात कर सकेंगे। )     

☆ असहमत…! भाग – 12 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव 

असहमत मोबाइल में बात करने का दिखावा करते हुये सन्मति को नज़रअंदाज करते हुये क्रास कर गया पर दस कदम के बाद ही उसे Don’t use mobile here की आवाज़ सुनाई दी तो वो पीछे मुड़ा.

डॉक्टर सन्मति ने उसे देखकर कुछ याद करने की कोशिश की, फिर उसे यू ट्यूब में पोस्ट किसी कंपनी की वीडियो पोस्ट याद आई जिसने असहमत के जॉब इंटरव्यू को पब्लिक ओपीनियन के लिये पोस्ट कर दिया था और वीडियो को 1.2 मिलियन बार देखा जा चुका था. लाईक और डिस्लाईक में 20-20 का मैच चल रहा था. जो लिबरल, मस्तमौला और innovative थे, वो चाहते थे कि अपाइंटमेंट के बदले असहमत को कंपनी का ब्रांड एंबेसडर बना दिया जाय जबकि कंसरवेटिव सोच के धनी ऐसे लोगों को सबक सिखाने के लिये पहले असहमत को अस्थायी नियुक्ति देकर, महीने भर उसका अवैतनिक उपयोग कर बाद में not suitable to handle marketing का टैग लगाकर कंपनी से बाहर करने के कमेंट लिख रहे थे.

शायद सन्मति को यही वीडियो क्लिप याद रही और इस महान आत्मा को रूबरू पाकर ओंठो पर हल्की मुस्कान आ गई. न केवल असहमत बल्कि पाठकों के भ्रम को दूर करने के लिए कहना आवश्यक है कि यह मुस्कान असहमत की स्पष्टवादिता और अक्खड़पन से उपजी मुस्कान थी. ये तो बाद में पता चला कि once upon a time, असहमत और सन्मति same class की zoology lab.  में dissection के लिये एक ही प्रजाति के मेंढक शेयर किया करते थे, हालांकि टेबल अलग अलग थीं पर अर्ध बेहोश मेंढक, डिसेक्शन के अस्त्रों से घायल होकर अक्सर उछलकर दूसरी पंक्ति की टेबल पर जाकर silent zone को चेलेंज कर देते थे और लैब पहले चीखना और फिर प्रतिक्रियात्मक हंसी के कहकहों से गुलज़ार हो जाया करती थी.

असहमत का मोबाइल इस बार फिर बजा, इस बार दूसरी ओर पिताजी थे जो उसके इस तरह अचानक गोल हो जाने पर उसे पुलसिया धमकी की डोज़ दे रहे थे. असहमत ने सन्मति के बिना मांगे ही फिर मिलने का वचन देकर विदा ली.

क्रमशः….

**कहानी जारी रहेगी**

© अरुण श्रीवास्तव

संपर्क – 301,अमृत अपार्टमेंट, नर्मदा रोड जबलपुर

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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