श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “अस्मिता।)

?अभी अभी # 280 ⇒ अस्मिता… ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

अहंकार, आसक्ति और अस्मिता तीनों एक ही परिवार के सदस्य हैं। वे हमेशा आपस में मिल जुलकर रहते हैं। अस्मिता सबसे बड़ी है, और अहंकार और आसक्ति जुड़वा भाई बहन हैं। वैसे तो जुड़वा में कोई बड़ा छोटा नहीं होता, फिर भी अहंकार अपने आपको आसक्ति से बड़ा ही मानता है। अहंकार को अपने भाई होने का घमंड है, जब कि आसक्ति अहंकार से बहुत प्रेम करती है, और उसके बिना रह नहीं सकती।

अहंकार आसक्ति को अकेले कहीं नहीं जाने देता। अहंकार जहां जाता है, हमेशा आसक्ति को अपने साथ ही रखता है।

अहंकार की बिना इजाजत के आसक्ति कहीं आ जा भी नहीं सकती।

अस्मिता को याद नहीं उसका जन्म कब हुआ।

कहते हैं अस्मिता की मां उसे जन्म देते समय ही गुजर गई थी। अस्मिता के पिता यह सदमा बर्दाश्त नहीं कर सके और तीनों बच्चों यानी अस्मिता, अहंकार और आसक्ति को अकेला छोड़ कहीं चले गए। बड़ी बहन होने के नाते, अस्मिता ने ही अहंकार और आसक्ति का पालन पोषण किया।।

अब अस्मिता ही दोनों जुड़वा भाई बहनों की माता भी है और पिता भी। अहंकार स्वभाव का बहुत घमंडी भी है और क्रोधी भी। जब भी लोग उसे अनाथ कहते हैं उसकी अस्मिता और स्वाभिमान को चोट पहुंचती है और वह और अधिक उग्र और क्रोधित हो जाता है, जब कि आसक्ति स्वभाव से बहुत ही विनम्र और मिलनसार है। वह सबसे प्रेम करती है और अस्मिता और अहंकार के बिना नहीं रह सकती।

कभी कभी अहंकार छोटा होते हुए भी अस्मिता पर हावी हो जाता है। उसे अपने पुरुष होने पर भी गर्व होता है। रोज सुबह होते ही वह अस्मिता और आसक्ति को घर में अकेला छोड़ काम पर निकल जाता है। एक तरह से देखा जाए तो अहंकार ही अस्मिता और आसक्ति का पालन पोषण कर रहा है।।

अहंकार को अपनी बड़ी बहन अस्मिता और जुड़वा बहन आसक्ति की बहुत चिंता है। बड़ी बहन होने के नाते अस्मिता चाहती है अहंकार शादी कर ले और अपनी गृहस्थी बना ले, लेकिन अस्मिता और आसक्ति दोनों अहंकार की जिम्मेदारी है, वह इतना स्वार्थी और खुदगर्ज भी नहीं। वह चाहता है अस्मिता और आसक्ति के एक बार हाथ पीले कर दे, तो बाद में वह अपने बारे में भी कुछ सोचे।

लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर होता है। अचानक अस्मिता के जीवन में विवेक नामक व्यक्ति का प्रवेश होता है, और वह बिना किसी को बताए, चुपचाप, अहंकार और आसक्ति को छोड़कर विवेक का हाथ थाम लेती है। एक रात अस्मिता विवेक के साथ ऐसी गायब हुई, कि उसका आज तक पता नहीं चला।।

बस तब से ही आज तक अहंकार और आसक्ति अपनी अस्मिता को तलाश रहे हैं, लेकिन ना तो अस्मिता ही का पता चला है और ना ही विवेक का।

अस्मिता का बहुत मन है कि विवेक के साथ वापस अहंकार और आसक्ति के पास चलकर रहा जाए। लेकिन विवेक अस्मिता को अहंकार और आसक्ति से दूर ही रखना चाहता है। बेचारी अस्मिता भी मजबूर है।

उधर अस्मिता के वियोग में अहंकार बुरी तरह टूट गया और बेचारी आसक्ति ने तो रो रोकर मानो वैराग्य ही धारण कर लिया है।

अगर किसी को अस्मिता और विवेक का पता चले, तो कृपया सूचित करें।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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