श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “ईश्वर की अहैतुकी कृपा।)

?अभी अभी # 278 ⇒ ईश्वर की अहैतुकी कृपा… ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

ईश्वर को कृपा निधान अथवा दया निधान भी कहा गया है। दया निधि कहें, कृपा निधि कहें अथवा करुणा निधि, सबका एक ही अर्थ है, प्यार का सागर। तेरी एक बूंद के प्यासे हम। ईश्वर परमेश्वर ही नहीं, निर्विकार और निराकार भी है। केवल ईश्वरीय तत्व ही इस सृष्टि में व्याप्त हैं, जिनमें उन्हें खोजा अथवा पाया जा सकता है और वे ईश्वरीय तत्व क्या हैं, दया, करुणा, प्रेम और ममता। ईश्वर को और कहीं खोजने की आवश्यकता नहीं।

ईश्वर को भक्त वत्सल भी कहा गया है। श्रीकृष्ण तो साक्षात प्रेम के ही अवतार हैं, जो आकर्षित करे वही तो कृष्ण है। जब आकर्षण आ कृष्ण बन जाता है, तब रास शुरू हो जाता है।।

हमारा कारण शरीर है। हमारे जन्म का भी कुछ तो हेतु होगा, कारण होगा, उद्देश्य होगा। जब गीता में निष्काम कर्म की बात की गई है तो भक्ति में कैसा कारण और कैसा हेतु। फिर भी हम तो यही कहते हैं ;

करोगे सेवा तो मिलेगा मेवा;

भजोगे राम, तो बन जाएंगे सभी बिगड़े काम।

वह ऊपर वाला तो खैर बिगड़ी बनाता ही है, और अपने भक्तों की मुरादें भी पूरी करता है, लेकिन हम जिस अहैतुकी कृपा की बात कर रहे हैं, उसमें सेवा, भक्ति अथवा समर्पण का कोई उद्देश्य अथवा हेतु नहीं होता है। कोई शर्त नहीं, कोई मांग नहीं, total unconditional surrender तो बहुत छोटा शब्द है इस अहैतुकी भक्ति के लिए।।

जब भक्त में अहैतुकी भक्ति जाग जाती है, तो उसके आराध्य में भी अहैतुकी कृपा का भाव जागृत हो जाता है। इस अहैतुकी कृपा का कोई समय अथवा स्थान तय नहीं होता। इसका पंचांग से कोई मुहूर्त नहीं निकाला जा सकता। जन्माष्टमी, रामनवमी, शिवरात्रि और हनुमान जयंती से भी इसका कोई सरोकार नहीं। यह निर्मल बाबा की किरपा नहीं, जो कहीं पाव भर रबड़ी में अटकी हुई है। यह ईश्वर की अहैतुकी कृपा है, जिस पर जब हो गई, हो गई।

तो क्या इतने कर्म कांड, जप तप संयम और यज्ञ हवन से ईश्वर को प्रसन्न नहीं किया जा सकता। इन्हें साधन माना गया है, साध्य नहीं। आपका क्या है, ईश्वर ने आपका काम किया, आपकी इच्छा पूरी हुई। ईश्वर की आप पर कृपा हुई, आप प्रसन्न। आप प्रसन्न तो समझो ईश्वर भी प्रसन्न। आपका हेतु पूरा हुआ। अगली बार फिर कृपा हो जाए तो हम तो तर जाएं। प्रस्तुत है, चार्टर ऑफ़ डिमांड्स। पंडित जी क्या क्या करना पड़ेगा, ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए।।

अपने आप को पूरी तरह ईश्वर को समर्पित करना ही अहैतुकी भक्ति है। मीरा, राधा और गोपियों को छोड़िए, नरसिंह भगत को ही ले लीजिए। उन्होंने कभी कष्ट में अपने आराध्य को, द्रौपदी की तरह, मदद के लिए पुकारा ही नहीं। जब भक्त का यह भाव जागृत हो जाए, कि मेरी तो कोई लाज ही नहीं है, नाथ मैं थारो ही थारो। ऐसी अवस्था में भगवान को अपने भक्त की चिंता होने लगती है।

जिस कृपा का कोई हेतु ही नहीं, उसकी क्या व्याख्या की जाए। जिस पर की जा रही है, हो सकता है, उस भक्त की भक्ति भी अहैतुकी ही हो। वैसे यह शब्द सांसारिक है ही नहीं, बिना कारण, हेतु अथवा उद्देश्य के ईश्वर की भक्ति में क्या तुक। जो हेतु भी तर्क से परे और हमारी सांसारिक बुद्धि से परे हो, शायद वही अहैतुकी कृपा हो। बस हम तो इतना ही कह सकते हैं ;

प्रभु तेरी महिमा किस बिध गाऊॅं।

तेरो अंत कहीं नहीं पाऊँ।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments