श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “चांदी जैसे बाल।)

?अभी अभी # 263 ⇒ चांदी जैसे बाल… ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

पहले पंकज उधास की इस ग़ज़ल पर गौर कीजिए ;

चांदी जैसा रूप है तेरा

सोने जैसे बाल।

एक तू ही धनवान है गौरी

बाकी सब कंगाल।।

यह कोई शायर है या बनिया, जो केवल अपनी प्रेयसी में सिर्फ सोना चांदी ही ढूंढता फिर रहा है। अरे भाई चांदी जैसा रूप तो फिर भी ठीक है, लेकिन सोने जैसे बाल, यह कौन सी उपमा है। रेशमी जुल्फ तो फिर भी ठीक है। वैसे आम पुरुषोचित पसंद तो काले लंबे लहराते बाल ही होती है। ऐसी चांदी सोने वाली धनवान टकसाल किसी पेशेवर जौहरी की ही हो सकती है, हम आप जैसे सादगी पसंद पारखी निगाहों की नहीं।

रूप की छोड़िए, लेकिन बाल तो काले और सफेद ही होते हैं। वैसे तो सफेद बाल में भी कोई बुराई नहीं, लेकिन न जाने क्यों, लोगों को काले बालों में जवानी नजर आती है। केश श्रृंगार पर केवल महिलाओं का ही नहीं, पुरुषों का भी बराबरी का अधिकार है। क्या कोई बताएगा, पहले ब्यूटी पार्लर आए अथवा पहले केश कर्तनालय।।

मैं बालों में सिर्फ तेल लगाता हूं, नवरत्न तेल को छोड़कर कोई सा भी, क्योंकि वह बहुत ठंडा और महंगा होता है। शैंपू, मेंहदी और हेयर डाई से मैं कोसों दूर हूं। अतः मेरे सर में जितने भी बाल हैं, वे गोरे अधिक और काले कम हैं। एक समय था, जब मैं सर में सफेद बाल ढूंढा करता था, आजकल मुझे काले बालों की तलाश है।

आज भी जब मैं चांदी जैसे सफेद घने बालों वाले सीनियर सिटीजन्स को देखता हूं, तो मुझे उनके व्यक्तित्व में वह आभा नजर आती है, जो जवानी में नदारद थी। सफेद बाल नियति है, इससे आप कब तक बच सकते हैं। लेकिन हां, अगर आपके सर पर ही चांद है, वहां फिर चांदनी को कौन पूछेगा।।

यानी कहीं चांदी तो कहीं चांद ! चांद की भी सभी कलाएं आप पुरुष के सर पर देख सकते हैं। कहीं यह मस्तक से शुरू होती है तो कहीं ठीक सहस्रार से।

सहस्रार को बोलचाल की भाषा में टक्कल भी कहते हैं। इसी टक्कल से टकला शब्द भी बना है। अफसोस, टकले और गंजे के अलावा इन चांद से मुखड़ों वालों के लिए कोई उपयुक्त शब्द नहीं। फिर भी लोग इन्हें भाग्यशाली मानते हैं। चिंतक, विचारक, संत महात्मा और साहित्यकारों की तो छोड़िए, आजकल गंजा रहना भी युवाओं का फैशन हो गया है। जब फसल ही कम हो, तो उससे तो सफाचट मैदान ही क्या बुरा है।

सेमि लिटरेट की तरह मैं आधा गंजा और आधा सफेद बालों वाला हूं, यानी आज भी मेरे सर में सफेद और काले बालों की खेती

होती है। कुछ जमीन यकीनन बंजर है, लेकिन वह दूर से नजर नहीं आती। वैसे मुझे बालों से कोई विशेष प्रेम नहीं है, फिर भी मेरी यही मंशा है कि मेरे सभी बाल चांदी जैसे हो जाएं। खिचड़ी बाल अथवा उड़ते बाल को आखिर कोई तो मंजिल मिले।।

जितने बाल हैं, उन्हें ही संवारना है, रोज सुबह आईने में बाल बनाते वक्त निहारना है। जब तक बाल हैं, केश कर्तनालय भी जाना है। सोचता हूं, कोई ऐसा हेयर डाई तलाश लूं, जो जल्द सभी बाल सफेद कर दे, इसके पहले कि सर में कैंची चलाने लायक बाल भी ना बचे।

कुछ पुरानी प्रसिद्ध अभिनेत्रियों को आज देखता हूं, तो बड़ी तसल्ली होती है। इश्क और उम्र, छुपाए नहीं छुपती, फिर इन उड़ते और सफेद बालों की इतनी चिंता क्यूं। सुना है, अधिक चिंता से बाल ही नहीं उड़ते, उम्र से पहले ही बुढ़ापा भी आ धमकता है। पचहत्तर प्लस के बाद वैसे भी माइनस कुछ नहीं बचता। या तो चांदी जैसे बाल, या पूरा चांद, सब कुछ कुबूल।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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