श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “टूथपेस्ट”।)  

? अभी अभी # 127 ⇒ टूथपेस्ट ? श्री प्रदीप शर्मा  ? 

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अब कौन इसे दातून कहता है । बच्चों, पेस्ट किया कि नहीं,चलो चाय दूध पी लो । उधर सोते हुए पतिदेव को उठाने के लिए टूथब्रश में पेस्ट तैयार लगाकर रखना पड़ता है, उठिए, लीजिए, पेस्ट कीजिए, कुल्ला कीजिए, पानी पीजिए, आपकी चाय तैयार है, ऐसे आलसी पतिदेव कभी हुआ करते थे, आजकल तो कुछ घरों में पहली चाय पतिदेव ही बनाने लग गए हैं ।

मुझे जब खेत की बात करनी होती है, तो मैं खलिहान का जिक्र करने बैठ जाता हूं । मुझे सुबह का पेस्ट करना है, जो मैं सुबह जल्दी नहाते वक्त ही कर लिया करता हूं ।।

वह मेरा एकान्त होता है, मैं और मेरा टूथपेस्ट ! कभी वह फोरहेंस और कोलगेट हुआ करता था, आजकल दंत कांति चल रहा है । पेस्ट में कितना मंजन और कितनी हवा होती है, हम नहीं जानते । हम तो बस उसके मुंह का ढक्कन खोलते हैं, और उसकी ट्यूब को दबाकर थोड़ा सा पेस्ट, टूथब्रश पर लगा लेते हैं ।

जब यह टूथपेस्ट एकदम नया होता है, तो फूला फूला सा हृष्ट पुष्ट नजर आता है । इसे जब हम दबाते हैं,तो ट्यूब से पेस्ट बाहर आता है । तब मेरा ध्यान कहीं भी हो, मेरी नजर ट्यूब पर जाती है, जो उस जगह से थोड़ी पिचक जाती है । यह रोज दबाने और पिचकने का सिलसिला तब तक चला करता है, जब तक टूथपेस्ट अपनी अंतिम सांसें ना गिन ले ।।

मेरा नियम है कि मैं पेस्ट को बिल्कुल नीचे से पिचकाता हूं, ताकि वह ऊपर से, मुंह की ओर से पूरा फूला फूला और स्वस्थ रहे, और उसका अंतिम छोर रोजाना पिचकते पिचकते सिकुड़ता रहे,छोटा होता रहे । लेकिन मेरे बाद जिसके हाथ में भी वह पेस्ट आता है,वह उसे कहीं से भी दबाकर पेस्ट निकाल लेता है, और टूथपेस्ट की शक्ल बिगड़ जाती है ।

इसका पता मुझे दूसरे दिन सुबह चलता है, जब मैं पेस्ट करने बैठता हूं । मुझे बड़ा बुरा लगता है, किसी ने मेरे टूथपेस्ट का हुलिया बिगाड़ दिया है । मैं फिर पेस्ट को अंतिम सिरे से दबा दबाकर उसे फुलाकर आगे से मोटा करता हूं । इस तरह मुझे मेरा टूथपेस्ट, शेप में नजर आता है ।।

लेकिन दूसरे दिन वह बेचारा जिसके भी हाथ लगता है, उसका वही हश्र होता है । मैं उसे उपयोग करते हुए भी उसे एक शेप में रखना चाहता हूं, और लोग हैं, जो उसे कहीं से भी पिचकाकर उसका हुलिया बिगाड़ देते हैं । मेरी नजर में यह टूथपेस्ट का शोषण है, पेस्ट की शक्ल तो मुझे यहीं बयां करती है ।

दैनिक उपयोगी वस्तुओं के साथ भी हमारा एक रिश्ता होता है । हमें रिश्तों को सम्मान देना चाहिए । जोर जोर से बर्तनों को पटकना उन्हें आहत भी कर सकता है । उनका रखरखाव भी बच्चों की तरह ही होना चाहिए क्योंकि वे भी बेजुबान और बेजान हैं ।

वॉशबेसिन में जो लोग ब्रश करते हैं, वे लापरवाही से पूरा नल खुला छोड़कर ब्रश करते रहते हैं । कोई उन्हें नहीं देख रहा है, क्योंकि वे ही नहीं देख पा रहे हैं, वे क्या कर रहे हैं, किसका हक छीन रहे हैं ,जल का दुरुपयोग ही नहीं, अपमान भी कर रहे हैं ।।

जो लोग व्यवस्थित और सुरूचिपूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं, उनमें एक एस्थेटिक सेंस होता है, जो उनके रहन सहन और व्यवहार से प्रकट हो जाता है । घर की सब चीज करीने से रखी हुई । कार हो, साइकिल हो या टू व्हीलर, साफ सुथरी, हमेशा अच्छी हालत में । जिसे बोलचाल की भाषा में टीप टॉप कहते हैं ।

अगली बार जब आप सुबह ब्रश करें, तो जरा पेस्ट पर भी नजर डाल लें । अगर वह आगे से पिचका हुआ है, तो वह बेशैप है, उसमें सिरे की ओर से थोड़ी हवा भरें, वह आगे से फूल जाएगा और पीछे से पिचक जाएगा । आपको सुकून मिले ना मिले,पेस्ट को जरूर अच्छा लगेगा ।

हमें अपने पिचके गाल कितने बुरे लगते हैं, टूथपेस्ट की नियति भी पिचकने की ही है, वह भी जानता है, वह यूज और थ्रो के लिए ही बना हुआ है, उसे अपनी छोटी सी जिंदगी सम्मान से जीने दें । उसे एक अच्छी शक्ल दें, वह वाकई मुस्कुराएगा, शायद आपको दुआ भी दे ; “आपके दांत मोतियों जैसे चमकते रहें ।।”

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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