श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “मानदेय।)  

? अभी अभी # 100 ⇒ मानदेय? श्री प्रदीप शर्मा  ? 

बुद्धि और परिश्रम का जीवन में एक अपना अलग ही स्थान है, लेकिन मान सम्मान एक ऐसी महत्वपूर्ण उपलब्धि है, जिसका मूल्य नहीं आंका जा सकता। जब तक पद है, तब तक प्रतिष्ठा है। बिना बौद्धिक कुशलता के किसी पद की प्राप्ति नहीं होती जिसमें परीक्षा, प्रतियोगिता और पुरुषार्थ भी शामिल होते हैं।

जीवन की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि पैसा और भौतिक सुख नहीं, काबिलियत है। यह काबिलियत उम्र, पद और प्रतिष्ठा की मोहताज नहीं होती। किसी पद पर ना रहते हुए भी जो ख्याति, प्रतिष्ठा और मान हासिल किया जाता है, वही किसी व्यक्ति की वास्तविक उपलब्धि होती है। ।

जब ऐसे किसी व्यक्ति की किसी विशिष्ट कार्य के लिए सेवाएं ली जाती हैं, तो उसे मानदेय का प्रावधान होता है, जो उसकी वास्तविक योग्यता से बहुत कम होता है। लेकिन मान की कभी कीमत नहीं आंकी जाती। शॉल, श्रीफल और पत्रं पुष्पं के साथ जो भी भेंट किया जाता है, वह सहर्ष स्वीकार्य होता है।

जो लोग जीवन में सफल होकर उच्च पदों पर आसीन हो जाते हैं, उनकी बौद्धिक कुशलता और प्रशासनिक क्षमता सेवा निवृत्त होने के बाद भी कायम रहती है। समाज उनकी क्षमता, अनुभव और कार्य कुशलता का लाभ उठाना चाहता है। एक अकिंचन की भांति उनसे निवेदन किया जाता है, और वे उदारतापूर्वक इस आग्रह को स्वीकार कर अपने जीवन भर के अनुभव के निचोड़ को यहां लगाने के लिए, एक तुच्छ से मानदेय पर, तत्पर हो जाते हैं। ।

आज कई सामाजिक और शैक्षणिक संस्थाएं इन माननीयों के कुशल प्रबंधन और देखरेख में फल फूल रही हैं। कहीं कहीं तो इनका अमूल्य स्वैच्छिक सहयोग और आशीर्वाद बिना किसी मानदेय के ही उपलब्ध हो जाता है। जीवन का सच्चा सुख समाज को कुछ देने में है, समाज से लेने में नहीं।

जो साहित्य, संगीत और कला के सच्चे उपासक हैं, उनका तो पूरा जीवन ही निष्काम कर्म और कला की साधना में गुजर जाता है। समाज इन्हें यथोचित मान दे, सम्मान दे, बस यही इनका वास्तविक मानदेय है। ।

कल की पारमार्थिक संस्थाएं आज एनजीओ कहलाने लग गई हैं। कहीं पूरा परिवार ही एनजीओ है तो कहीं एनजीओ पर किसी परिवार ने ही कब्जा कर लिया है। सेवा में मेवा और परमार्थ में भी स्वार्थ ढूंढा जाने लगा है।

राजनीति का वायरस पूरे समाज में फैल चुका है।

धर्म और राजनीति एक दूसरे के पूरक बन गए हैं।

इन सबके बावजूद कुछ लोगों में अभी निष्ठा नैतिकता और समाज के प्रति निःस्वार्थ सेवा की भावना कायम है। वे ही हमारी हरी भरी बगिया के ऐसे बागवान हैं, जो कभी चमन को उजड़ने नहीं देंगे। आप उन्हें मान दें, अथवा ना दें, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता।।

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© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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