श्री राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्रेयस साहित्य # १० ☆

☆ लघुकथा ☆ ~ रोशनी ~ ☆ श्री राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’ ☆ 

चाँदनी रात भरपूर मुस्कुराहट भी बिखेर नहीं पाई थी कि घनघोर काले बादलों की काली साया ने उसे ढक लिया।

खिलखिलाती हुई रोशनी के होठों की खुशियां अचानक स्तब्ध हो गयीं। पतली पतली बांस की फंठीयों पर चढ़ी हुई प्लास्टिक की पन्नीयाँ फड़फडाती हुई मानो कह रही थी, रोशनी, …अब मैं इससे ज्यादा तुम्हारी हिफाजत नहीं कर सकती। अपनी पूरी बात करने के पहले ही रोशनी के सिर ऊपर पड़ी काली चादर कहां चली गई पता नहीं चला।

फटे दुप्पटे में स्वयं को छुपाए, रोशनी यह नहीं समझ पा रही थी, कि आखिर वह जाए तो जाए कहाँ।

पानी की तेज बौछारें रोशनी को बेइंतहा दर्द दे रही थी।

अचानक आकाश में बिजली तड़की और तड़कती बिजली की रोशनी में एक काली छतरी ओढ़े सुंदर सी काया उसके पास आयी।

अरे, यहां क्या कर रही है रोशनी? चल, घर चल।

अरे भाभी आप.. आप यहाँ कैसे चली आयीं? ऐसी हालत में तो आपको आना ही नहीं चाहिए था.. भाभी।

भाभी… आप भीगती हुई क्यों चली आयीं। आपकी तबीयत खराब हो जाएगी। आपको तो इस वक्त अपनी सेहत का बहुत ही ध्यान रखना चाहिए,

ऐसा कहते हुए रोशनी डल्लू भाभी से चिपट कर रो पड़ी।

तेज हवा और हल्की हल्की बूंदा बांदी के बीच रोशनी को अपनी छतरी में ले डल्लू धीरे धीरे अपने कदम बढ़ा रही थी। डॉक्टर ने उसे इस अवस्था में ऐसे ही चलने की सलाह दी थी।

ऊपरी मंजिल से रोशनी के आशियाने को हर रोज निहारने वाली वाली डल्लू, बड़ी मुश्किल से छत की सीढ़ियों से नीचे उतर पायी थी।

डल्लू भाभी के घर की लाबी में बिछे बिस्तर पर दुबकी रोशनी खुद को लिहाफ से लपेटकर गर्म करने की कोशिश कर रही थी।

डल्लू ने चाय का गर्म गर्म प्याला रोशनी हाथों में पकड़ाया तो वह बोल पड़ी….

अरे भाभी!!..आप मेरे लिए इतना मेहनत कर रही हो?

नहीं भाभी नहीं.. रोशनी के आँखों से आंसू की धारा निकल पड़ी।

अरे मेहनत, ..!! यह क्या बोल रही हो रोशनी, ..मुझे तो तुम एक सींक भी सरकाने नहीं देती मेरी बिटिया रानी। वैसे भी बर्तन पोछा करने के बाद, तेरा काम समाप्त हो जाता है लेकिन रोशनी, … इसके बाद मेरे लिए कोई काम बाकी ही कहाँ छोड़ती हो।

रोशनी!.. तुम अंधेरी रात में जलता हुआ एक खूबसूरत दीया हो, जिसकी रोशनी बहुत दूर तक जाने वाली है।

ऐसा कहते हुए डल्लू ने दोबारा रोशनी को गले लगा लिया। इस बार डल्लू और रोशनी दोनों रो रहे थे।

♥♥♥♥

© श्री राजेश कुमार सिंह “श्रेयस”

लखनऊ, उप्र, (भारत )

दिनांक 22-02-2025

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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