श्री राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्रेयस साहित्य # ७ ☆
☆ लघुकथा ☆ ~ आँखों की ज्योंति ~ ☆ श्री राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’ ☆
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आंखों की दृष्टि जाने पर भी वह नित्य प्रति उठता, शौचादि से निवृत हो, योगेश्वर श्रीकृष्ण के पावन विग्रह के पास ध्यान लगाकर बैठ जाता। अपनी मनःस्थिति पर नियंत्रण प्राप्त करने के लिये, उसका ईश्वर का आश्रय पाना आवश्यक है, ऐसा उसका मानना था।
कुशा से निर्मित आसन पर बैठकर वह, श्रीमद्भगवतगीता के ध्यान योग के विषय में अन्तर्मन से विमर्श करता। भगवान पतंजलि के अष्टांग योग के निर्देशों के अनुरूप योग क्रियाओं का संपादन करता। उसका यह कार्य नित्य प्रति ब्रह्म मुहूर्त में होता।
योग अभ्यास पूर्ण करने के बाद वह योगीराज कृष्ण की आंखों में अपनी आंखें डालकर कहता कि हे योगी श्रेष्ठ! मै आपको भी योग करते हुए प्रतिदिन देखता हूँ। उस नेत्रहीन व्यक्ति के अंत नेत्र प्रतिदिन उसे भगवान कृष्ण के दिव्य स्वरुप में दर्शन कराते।
प्रतिदिन की भांति वह एक दिन योग क्रिया के उपरांत योग मुद्रा से उठा, और अपने चीर बंद नेत्रों को श्री कृष्ण चंद्र की नेत्रों में डालकर प्रणाम की मुद्रा में खड़ा हुआ। अचानक एक दिव्य ज्योंति उसकी नेत्रों में समाई, और अब उसके सामने योगीराज कृष्ण के पावन विग्रह के साथ -साथ, उसके अतीत का सारा दृश्य आलोकित हो रहा था।
इसे उसने योगीराज श्रीकृष्ण की कृपा का परिणाम माना, लेकिन श्री कृष्णचंद की प्रेरणा, उससे यह कह रही थी कि हे भक्त! इन योग क्रियायों के शुभ प्रतिफल को तुम स्वयं अपनी नजरों से देख रहे हो।
बरसों पूर्व एक दुर्घटना में, उसके नेत्रों की ज्योति चली गई थी, मष्तिष्क से नेत्रों तक जाने वाली संवेदनशील तांत्रिकाएं क्षतिग्रस्त हो गई थी, लेकिन ये तांत्रिकायें आज पुनर्जीवित हो गई थीं। अब उसका मस्तक भगवान के श्रीचरणों में था, और योगेंद्र कृष्ण यह कहते हुए, उसके माथे पर अपना पावन हाथ फेर रहे थे कि हे भक्तराज! तुम स्वयं देखो योग की महिमा कितनी बड़ी है।
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© श्री राजेश कुमार सिंह “श्रेयस”
लखनऊ, उप्र, (भारत )
दिनांक 22-02-2025
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈