कविराज विजय यशवंत सातपुते

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। कुछ  रचनाये सदैव सामयिक होती हैं। आज प्रस्तुत है  उनकी ऐसी ही एक भावप्रवण कविता  याल का राजे? )

 ☆  याल का राजे? ☆

हाल माझ्या या  देशाचे लोकशाहीचे पाहाल का राजे

पुन्हा एकदा राज्य कराया परत  याल का राजे!!धृ!!

 

माय जिजाऊ , कुठे दिसेना, रक्त सांडले ताजे

जीथे झुंजली मावळमाती तिथे दीनता साजे

स्वराज्य व्हावे श्री इच्छेचे स्वप्नी मनीषा गाजे

स्वप्नाला साकार कराया परत याल का राजे ? !!

 

स्वैर माजली भाऊबंदकी, पैशाचा व्यापार नवा

माता,भगिनी,पिडीत महिला अत्याचारा मिळे हवा

नितीमत्ता भ्रष्ट जाहली, नारी दिसता शेज सजे

नारीजातीला सबल कराया परत याल का राजे ? !!

 

माय जिजाऊ कुठे दिसेना पिसाट वृत्ती माजे

संस्कारांचे फिरले वारे कुणी कुणा ना लाजे

शरमेचे अवशेष पायदळी त्यावर पाऊल वाजे

मर्द मराठा रूप दावण्या परत याल का राजे ?

 

मावळ्यांचे वंशज तेही नशाधुंद जाहले

परकीयांचे नको आक्रमण स्वकीयांना लुटले

खान दान ते विकले गेले उरले पडके वाडे

त्या वाड्याचा आब राखण्या परत याल का राजे ?

 

कसली प्रगती, विनाश काले विपरीत बुद्धी

पैशासाठी हपापलेली मुजोर यांची सद्दी

पुन्हा एकदा गनिमी कावा शौर्य पाहू द्या ताजे

स्वराज्य तोरण मनी बांधण्या परत याल का राजे ?

 

© विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments