श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

? कवितेचा उत्सव ?

☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 170 – हृदयी निवास नरसिंह ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे ☆

हिरण्याक्ष आणि।

हिरण्य कश्यप।

असूर अमूप।

मातलेले।

वराह रूपाने।

हिरण्याक्ष वधे।

कश्यपू तो क्रोधे।

बहुतापे।

नारायण द्वेष्टा।

बनला असूर।

भक्ता साजा क्रूर।

देता झाला।

पुत्र रत्न लाभे

प्रल्हाद कश्यपा।

करी विष्णू जपा।

अखंडीत।

सोडी विष्णू भक्ती।

पिता सांगे त्यासी।

परि प्रल्हादासी।

चैन नसे।

धर्मांध पित्याने। कडेलोट केला।

झेलून घेतला।

नारायणे।

उकळते तेल।

भक्त नाचे धुंद।

नामाचा आनंद।

कोणा कळे।

हत्ती पायी दिले।

विष पाजियले।

परि ना बधले।

हरीभक्त।

दुष्ट होलिका ती

चितेवरी बैसे।

जाळीन मी ऐसे।

प्रल्हादासी।

दुरुपयोग तो।

करिता वराचा।

अंत होलिकेचा।

होळीमधे।

संतापे कश्यपू।

वदे प्रल्हादास।

कोठे तो आम्हास।

विष्णू दावी।

विष्णूमय जग।

वदला प्रल्हाद।

गदेने जल्लाद।

ताडी खांब।

नरसिंह रूप।

नर ना पशू तो।

अस्त्र शस्त्रा विन।

वधे त्यासी।

आत ना बाहेर।

बसे उंबऱ्यात।

दिन नसो रात।

संध्याकाळी।

ब्रह्मयाचा वर।

प्रभुने पाळीला।

अवतार झाला।

नरसिंह।

वैशाख मासी ती।

चतुर्दशी खास।

ह्रदयी निवास।

नरसिंह।

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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