श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

चतुर्थ अध्याय

( सगुण भगवान का प्रभाव और कर्मयोग का विषय )

श्रीभगवानुवाच

बहूनि मे व्यतीतानि जन्मानि तव चार्जुन ।

तान्यहं वेद सर्वाणि न त्वं वेत्थ परन्तप ।।5।।

भगवान ने कहा-

मेरे तेरे जन्म अनेकों भूत काल में बीते हैं

मुझे याद हैं सारे,लेकिन तेरे ज्ञान में रीते हैं।।5।।

 

भावार्थ :  श्री भगवान बोले- हे परंतप अर्जुन! मेरे और तेरे बहुत से जन्म हो चुके हैं। उन सबको तू नहीं जानता, किन्तु मैं जानता हूँ॥5॥

 

Many births of Mine have passed, as well as of thine, O Arjuna! I know them all but thou knowest not, O Parantapa!

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

 

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

 

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