श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “ये जमीं हो हसीन जन्नत से“)

☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ कविता # 111 ☆

✍ ये जमीं हो हसीन जन्नत से… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

खुद को पहचान एक औरत हो

घर की ज़ीनत नहीं हो इज्ज़त हो

 *

तुमको ही सोचना मनन करना

जो न छूटे वो मेरी आदत हो

 *

रोज़ लगता है आज हो पूरी

तुम अधूरी वो मेरी हसरत हो

 *

चाह उसको न आसमां वाली

माँ के कदमों की पास जन्नत हो

 *

वक़्त का चाक क्यों थमा मुझको

दर्द-ग़म से कभी तो राहत हो

 *

नाम श्यामा का हो मेरे लब पर

इस जहां से जो मेरी रुख़सत हो

 *

बात बच्चों को कहने दें खुलकर

मन में उनके न कोई दहशत हो

 *

ये जमीं हो हसीन जन्नत से

आपसी हममें जो न नफ़रत हो

 *

 छल दग़ा झूट मिल नहीं सकते

पाक सबकी अगर जो नीयत हो

 *

उनके बच्चे बढ़ाते नाम अरुण

नेक रोज़ी की घर में बरक़त हो

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

Please share your Post !

Shares
0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments