श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपके “मनोज के दोहे…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 178 – मनोज के दोहे… ☆
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आँखों से झरना बहा, दिल में उठा गुबार।
पहलगाम को चाहिए, अब केवल प्रतिकार।।
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मधुकर उड़ता बाग में, गाता है मृदु गान।
आमंत्रित करती कली, दे कर मधु मुस्कान।।
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प्रेम-वंशिका बज रही, कृष्ण राधिका धाम।
मुदित गोपिका नाचती, बसे यहाँ घन-श्याम।।
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बहते आँसू रुक गए, नाम दिया सिंदूर।
आतंकी गढ़ ध्वस्त कर, शरणागत-मजबूर।।
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जनसंख्या की वृद्धि जब, हों कुटीर उद्योग।
अर्थ-व्यवस्था दृढ़ रहे, मिले सभी को भोग।।
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© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
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