श्री राकेश कुमार
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)
☆ आलेख # 134 ☆ देश-परदेश – अधीरता ☆ श्री राकेश कुमार ☆
बचपन से ही धैर्य रखने का पाठ पढ़ाया जाता है। पहले हम विचार करते थे, कि बस, ट्रेन आदि में ग्रामीण क्षेत्र के लोग यात्रा करते है, वो कम पढ़ें लिखे होते थे, इसलिए गंतव्य स्टेशन आने के समय वो जल्दी जल्दी उतरने को व्याकुल रहते थे। उपरोक्त फोटो तो एक वायुयान के अंदर का हैं। वायुयान को थोड़ा समय लगता है, हवाई पट्टी पर धीमी गति से चलते हुए वो निर्धारित स्थान पर पहुंचता हैं।
वायुयान में तो अधिकतर पढ़े लिखे, बड़े बड़े पदों पर कार्यरत लोग ही यात्रा कर पाते हैं। वहां ऐसी अधीरता क्यों ? सबको जानकारी है, गेट खुलेगा, और बेल्ट पर सामान तो सबका एक साथ ही आयेगा, फिर बाहर जाने में उतावलापन किस लिए ? धिक्कार है, ऐसी शिक्षा और संस्कारों को जो मनुष्य को धैर्यवान जैसा गुण ना दे सके।
“भय बिन होत ना प्रीत” अधीरता दिखा कर नियम तोड़ने वालों को अब आर्थिक दंड भुगतना होगा। वायुयान में कैमरे आपकी गलती पकड़ कर जुर्माना लगा देंगे।
यात्रा आरंभ के समय भी “सबसे पहले हम” मानने वाले प्राणी बहुतायत में हैं। सीट नंबर भी तय है, फिर भी अधीरता क्यों ?
© श्री राकेश कुमार
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