श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 176 – मनोज के दोहे ☆

गुनिया धन है पा गया, बुधिया रहा गरीब।

शिक्षा का मतलब सही, पाएँ बड़ा नसीब।।

 *

मंजिल  रहती  सामने, चलने भर की देर।

बैठ गया थक-हार कर, पहुँचा वही अबेर।।

 *

भटक रहा मानव बड़ा, ज्ञानी मन मुस्काय।

ईश्वर का तू ध्यान कर, फिर आगे बढ़ जाय।।

 *

दगाबाज फितरत रहे, मत करिए विश्वास।

सावधान उससे रहें, जब तक चलती श्वास।।

 *

उलझन बढ़ती जा रही, सुलझाएगा कौन।

जिनको हम अपना कहें, क्यों हो जाते मौन।।

 *

उमर गुजरती जा रही, व्यर्थ करे है सोच ।

चलो गुजारें शेष अब, हट जाएगी मोच।।

 *

जितना तुझसे बन सके, करता जा शुभ काम।

ऊपर वाला लिख रहा, पाप पुण्य अविराम।।

 *

सुप्त ऊर्जा खिल उठे, जाग्रत रखो विवेक।।

सही दिशा में बढ़ चलो, राह मिलेगी नेक।।

 *

मन-संतोष न पा सका, बैठा पैर पसार।

लालच में उलझा रहा, मिला सदा बस खार।।

 *

उठो सबेरे घूमने, रोग न फटके पास।

स्वस्थ रहेंगी इन्द्रियाँ, मन मत रखो उदास।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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