श्री राकेश कुमार
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)
☆ आलेख # 133 ☆ देश-परदेश – अंतरराष्ट्रीय मधुमक्खी दिवस: 20 मई ☆ श्री राकेश कुमार ☆
आज के दिन पूरा विश्व मधुमक्खी दिवस मनाता हैं। हमें मधुमक्खियों से बचपन से ही बहुत अधिक डर लगता है, तो विचार किया लिखने से शायद कुछ डर कम हो जायेगा।
मधुमक्खियों को सबसे पहले अपने नाम से ही कठिनाई है। होनी भी चाहिए, अज्ञानी लोग उनको साधारण काली वाली मक्खी के कुनबे की समझते है। ये वो मक्खियां है, जो गंदगी और दूषित स्थानों पर भी प्रसन्न रहती हैं। दूसरी तरफ मधुमक्खी तो स्वयं सुगंधित फूलों का रसपान कर उनकी खुशबू और मिठास को मधु का रूप दे देती हैं। इसको शहद मक्खी तो नहीं कहा जाता है, क्योंकि इसके द्वारा दिया जाने वाला मधु अमृत तुल्य है।
हिन्दू धर्म में पूजा के समय इसका प्रयोग ही किया जाता हैं। इसको “कुदरत की नियामत” भी कहा जा सकता हैं। आयुर्वेद में भी मधु की महत्ता खूब बताई गई है।
मुम्बई प्रवास के समय हमारी परिसर में मधुमक्खी का बहुत बड़ा छत्ता लगा हुआ था। एक दिन दो व्यक्ति आए और बोले कि जिसको भी इस छत्ते का शहद चाहिए वो बहुत कम कीमत पर वहां रहने वालों को विक्रय कर देंगे जोकि उनकी मजदूरी कहलाएगी।
जब छत्ता तोड़ने की प्रक्रिया आरंभ हुई सभी निवासियों ने घर की खिड़कियों को सुरक्षा कारणों से बंद कर लिया। उनके द्वारा बेचा गया शहद नकली था, असली शहद वो अपने साथ ले गए। लोग कहने लगे ये तो हाथ की सफाई है। ये मुहावरा भी सही बना है, कि मधुमक्खी के छत्ते में हाथ नहीं डालना चाहिए। अब समय बदल गया है, मधुमक्खी पालन एक बहुत कमाऊ उद्योग बन चुका है।
© श्री राकेश कुमार
संपर्क – B 508 शिवज्ञान एनक्लेव, निर्माण नगर AB ब्लॉक, जयपुर-302 019 (राजस्थान)
मोबाईल 9920832096
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈