श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “ओ कविता!” ।)
जय प्रकाश के नवगीत # 104 ☆ ओ कविता! ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
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ओ कविता!
कुछ तो कर
मन सूने आँगन में
बरखा सी झर।
तट से समझौते
नदिया का जल
बाढ़ के मुहाने पर
रेत के महल
ओ बरखा!
कुछ तो कर
सूखती शिराओं में
जीवन तो भर।
परती की सोच
बीज की कथा
मेड़ के मचानों पर
ठिठुरती व्यथा
ओ पुरवा!
कुछ तो कर
खेतों खलिहानों में
ख़ुशी बन बिखर ।
गूँगी संवेदना
बंधक है श्रम
सूरज की रोशनी
अंधों के भ्रम
ओ बादल!
इतना तो कर
उम्मीदों का छप्पर
गीला तो कर।
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© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)
मो.07869193927,
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈