प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित – “कविता – मां गंगा…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।)
☆ काव्य धारा # 225 ☆
☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – अनुशासन… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
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नीतिशास्त्र और धर्म सभी को अनुशासन सिखलाते
किन्तु स्वार्थवश, जगह-जगह सब आपस में टकराते।
इससे बढ़ती रहती अक्सर नाहक खींचातानी
करने लगते लोग निरर्थक मारपीट मनमानी।
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शिक्षा सबको यदि बचपन से अनुशासन समझाये।
तो अनुशासन का महत्त्व औ’ पालन सबको आये।
सद् प्रवृत्तियाँ छटती दिखती आज मनुज-जीवन में
इसीलिये बढ़ती जाती हैं समस्याएँ हर दिन में।
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सही सीख और आदत की आवश्यकता है जन जन को
मर्यादा का चलन देखने मिले अगर बचपन को
तो अनुशासन हो समाज में संस्थाओं शासन में
वैचारिक मतभेद न बदले आपस की अनबन में।
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अनुशासन बिन बहुत कठिन गति का सुचारु संचालन
हरेक व्यक्ति को आवश्यक है नियमों का नित पालन।
अनुशासन बिन हर समाज में होती अन्धाधुन्धी
अनुशासन ही सफलताओं की एकमात्र है कुंजी।
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© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी भोपाल ४६२०२३
मो. 9425484452
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈