श्री राघवेंद्र तिवारी
(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार, मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘जहाँ दरक कर गिरा समय भी’ ( 2014) कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत “मिट गई थीं सलवटे...”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 235 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆
☆ “मिट गई थीं सलवटे...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆
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सुबह से लौटी नहीं
चिडिया
कहे थे स्कूल है
बढ़िया
मिट गई थीं सलवटे
सब मस्तकों की
बहुत सुन्दर रही काया
पुस्तकों की
बताती थी सुमन की
गुड़िया
जल्दवाजी सुबह
होती है पराँठों की
नींद में पड़ती हुई
सी जटिल गाँठों की
नमक मिर्ची की बना
पुड़िया
टिफिन जूँठा पड़ा
आँगन में
दर्द बाकी अभी
टाँगन में
कदम गिनकर
रख रही बुढ़िया
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© श्री राघवेन्द्र तिवारी
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