श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “प्रेम का अंकुर…” ।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 217 ☆

☆ # “प्रेम का अंकुर…” # ☆

वो मुझसे बहुत प्यार करती है

मेरे हर अंदाज पर मरती है

जब भी मिलती है मुझसे अकेले में

अपने प्यार का दम भरती है

 

फिर भी डरती है वह जमाने से

कहीं बन न जाए वह अफसाने से

गगन पर सुरमई छटा जब बिखरती है

तब वह मिलने आती है किसी बहाने से

कलियां उसे देखकर चटकती है

भंवरो की रूहें भटकती है

खुशबू से भर जाता है समां

दुनिया की नजरों में खटकती है

 

जब वह हाथ मेरा चूमती है

उन्माद में बेखौफ झूमती है

गुलगुल मदहोश हो जाता है

जब वह इठला के चलती है

 

जब वह होती है मेरी बाहों में

फूल बिछे होते हैं मेरी राहों में

बंजर सी जिंदगी मुस्कुराती है

रंगीन नजारे होते हैं मेरी निगाहों में

 

काश! ये मौसम में यूँ ही चलता रहें

प्रेम का दीपक यूँ ही जलता रहें

प्रेम ही प्रेम हो बस जीवन में

नफरत की इस आंधी में

प्रेम का अंकुर यूँ ही पलता रहें /

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’  ≈

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