आचार्य भगवत दुबे
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकें गे।
इस सप्ताह से प्रस्तुत हैं “चिंतन के चौपाल” के विचारणीय मुक्तक।)
साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 100 – मुक्तक – चिंतन के चौपाल – 6 ☆ आचार्य भगवत दुबे
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ठेका लिया है जिनने ईमानदारियों का,
ठगना है पेशा उनकी दूकानदारियों का,
हर वृक्ष में समाया रहता है डर हमेशा
पर्यावरण सुधारक नेता की आरियों का
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फल भुगतना ही पड़ा इन्सां को अपने पाप का,
वक्त फिर अवसर नहीं देता है पश्चाताप का,
जिनने लूटी है किसी बेटी-बहू की आबरू
उनकी संतानें झुका देती हैं सिर माँ-बाप का।
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मेरे चेहरे का पानी थे,
वे घर के छप्पर-छानी थे,
झुके, न झुकने दिया कभी भी
मेरे पिता स्वाभिमानी थे।
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आशिकों पर अगर सितम होंगे,
तेरी महफिल में फिर न हम होंगे,
चाटुकारों की भीड़ तो होगी,
तुम पे मिटने के पर न दम होंगे।
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© आचार्य भगवत दुबे
82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈
बेहतरीन अभिव्यक्ति दादा