स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे सदैव हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते थे। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपकी भावप्रवण बुन्देली कविता – जे नैंना कजरारे।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 234 – जे नैंना कजरारे… ✍

(बढ़त जात उजयारो – (बुन्देली काव्य संकलन) से) 

लखतन जे नैना कजरारे

  सवई भये मतवारे।

 

सोने कोई देह द्विपत है

ऊ  पै गानों-गुरिया।

करन फूल प्रानन रस घोरत

सुर छेड़त बांसुरिया |

 

जी की तना हेर लेतीं हो

ऊ तन होय उजयारी ।

जादा हँसी कहाँ नौ निकरे

लगी नथुनिया तारौ ।

 

ऐंसी उठन चलन है तुमरी

जैसे नदी  असाढ़ी।

बाजूबन्द नँद हैं जैसे

खेत रखाउत बाड़ी ।

 

हिरनी जैंसी निधा तुमाई

तुरतई प्रान पछोरे ।

जीबन राजा की फुल बगिया

सवई खड़े कर जोरें ।

 

हमइ सॉंगरे बच निकरे हैं

सबके प्रान निकारे

लखतन जे नैंना कजरारे ।

सबड़ भये मतवारे ।

© डॉ. राजकुमार “सुमित्र” 

साभार : डॉ भावना शुक्ल 

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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