श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “प्यासा हिरण है” ।)
जय प्रकाश के नवगीत # 102 ☆ प्यासा हिरण है ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
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मरुस्थल की
चमचमाती धूप
पानी के भरम में
मर गया प्यासा हिरण है।
शांति के स्तूप
जर्जर हो गये
लिखी जानी है
इबारत अब नई
टूटकर ग्रह
आ गये नीचे
ढो रहा युग
अस्थियाँ टूटी हुई
संधियों पर
है टिकी दुनिया
ज़िंदगी के पार
शेष बस केवल मरण है।
जंगलों में
घूमते शापित
पत्थर कूटते
राम के वशंज
धनु परे रख
तीर के संधान
भुलाकर विरासत
जी रहे अचरज
परस पाकर
अस्मिता के डर
जागे हैं ह्रदय में
सोच में सीता हरण है।
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© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)
मो.07869193927,
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈