श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “पेड़ तुलसी के—” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 71 ☆ पेड़ तुलसी के— ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सुर्ख़ फूलों से खींच कर दामन

हमने काँटे गले लगाए हैं

रोज़ आँसू से सींचकर आँगन

पेड़ तुलसी के ही उगाए हैं।

 

ज़िंदगी तो अभावों का जंगल

उमर के पाँवों दर्द की पायल

जब भी गाया ख़ुश हो महफ़िल में

अधर से गीत हो गया घायल

 

सौंपकर उनको गीत का सावन

हम तो पतझड़ में गुनगुनाए हैं।

 

रात बाक़ी है बात बाक़ी है

सिर्फ़ कहने को बात बाक़ी है

क्या सुनाएँ सुबह के भूले को

शाम बीती तो रात बाक़ी है

 

तोड़कर ज़िंदगी का हर दर्पन

साँसें थोड़ी सी चुरा लाए हैं ।

(पुराने संकलन से)

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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