श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता चलाचली की बेला” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #236 ☆

☆ चलाचली की बेला… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

चलाचली की बेला

गठरी गाँठ लगा लें

खोया जो उसको भूलें

पाया जितना कुछ

उसे सँभालें।

 

बेचैनी उदासियों को

इक तरफ फेंक दें

रहे न शेष प्रमाद

तमस को समूल मेट दें

गीत लिखे उजियारे के जो

मुक्तकंठ से उनको गा लें

चलाचली की……

 

मेले-ठेले गाँव, शहर

कस्बे बस्ती में

क्या अच्छा क्या बुरा घटा 

जग की कश्ती में,

जीवन सागर के प्रवाह सँग

निज अन्तर्सम्बन्ध बना लें

चलाचली की……

 

पुण्याई-सत्कर्म साथ

गठरी में रख लें

पूर्व रवाना होने के

फिर देख-परख लें,

अब तो मनवा मोहपाश की

त्यागे सब मायावी चालें

चलाचली की……

 

प्रश्न करेंगे ऊपर

क्या धरती से लाये

गए लक्ष्य लेकर जो

वह पूरा कर आये,

वहाँ खुलेंगे पोथी-पन्ने

साँच-झूठ के उजले-काले

चलाचली की……।।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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