श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 45 ☆

☆ कविता ☆ “क्या मोहब्बत की भी सीमा होती है?…☆ श्री आशिष मुळे ☆

दिल आजकल बुझसा गया है

धड़कन शरमा जो रही है

उमर बढ़सी गई है

कीमत घटसी गई है

क्या मोहब्बत की भी सीमा होती है?

 *

फिर तेरी याद आती है

नज़र ख़्वाब देखती है

धड़कन फिर तेज़ होती है

फिर एक बार दुनिया आइना दिखाती है

क्या मोहब्बत की भी सीमा होती है?

 *

क्या सच में कुछ सच झुटे होते है

मुहब्बतकी पैरो में जंजीरे क्यों होती है

ऐसी मैंने क्या मांग लगाई है

उम्र नहीं बस जान ही तो मांगी है

क्या मोहब्बत की भी सीमा होती है?

 *

हर कोई मुहब्बत के ख़िलाफ़ क्यों है

क्यों इंसान को जन्नतमें सलांखे है

जो अभी इस वक्त पा सकते है

उसके लिए क्या मरना जरूरी है

क्या मोहब्बत की भी सीमा होती है?

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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