श्री राकेश कुमार

(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ  की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” ज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)

☆ आलेख # 63 ☆ देश-परदेश – उल्लुनामा ☆ श्री राकेश कुमार ☆

बचपन में घर के बड़े बजुर्ग, शिक्षक आदि और जवानी में उच्च अधिकारी उल्लू, गधा इत्यादि की उपाधि से हमें नवाज़ा करते थे।

इन दोनों जीवों को समाज ने हमेशा तिस्कृत दृष्टि से ही दुत्कारा है। व्यापार जगत में भी इनके नाम से कोई भी वस्तु (ब्रैंड) नहीं बन सकी है।

शेर, ऊंट, मुर्गा इत्यादि के नाम से तो बीड़ी भी खूब प्रसिद्ध हुई हैं। लेकिन कभी भी उल्लू या गधे के नाम से कोई भी प्रतिष्ठान कार्यरत सुनने में नहीं आया।

“यहां गधा पेशाब कर रहा है” कुछ इस प्रकार के लिखे हुए शब्द दीवार पर अवश्य देखने को मिल जाते हैं। समय की मांग को देखते हुए, हो सकता है, इस वाक्य को हवाई जहाज के अंदर भी लिखा जा सकता है।

उपरोक्त फोटू में प्रथम बार “समझदार उल्लू (wise owl)” के नाम से पेड़ पर बांधे जाने वाले झूले विक्रय के लिए उपलब्ध देखने को मिला, वैसे उल्लू भी अधिकतर पेडों पर ही पाए जाते हैं। लक्ष्मी देवी की सवारी भी तो उल्लू ही है।

© श्री राकेश कुमार

संपर्क – B 508 शिवज्ञान एनक्लेव, निर्माण नगर AB ब्लॉक, जयपुर-302 019 (राजस्थान)

मोबाईल 9920832096

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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