डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं “मुक्तक – गीत रमता गया…।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 195 – साहित्य निकुंज ☆

☆ मुक्तक – गीत रमता गया…

गीत उनके हमें रास आने लगे।

मन ही मन यूं उसे गुनगुनाने  लगे।

चाहकर भी  न बोला तूने कभी।

 भाव अपने हमें  क्यों जताने लगे।।

हम उन्हें देखकर मुस्कुराने लगे।

देखते देखते भाव जगने लगे।

मेरी आंखों में तुमने पढ़ा है सही

गीत बारिश के तुम गुनगुनाने लगे

गीत रमता गया मैं भी रमती गई।

वो सुनाता गया मैं भी सुनती गई।

जो भी उसने कहा कैद मन में हुआ।

मैं तो उसकी ही बातों में बंधती गई।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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