श्री आशिष मुळे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #4 ☆

 ☆ कविता ☆ “यादें…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

यादें आपकी छुपी है

उस धड़कन की तरह

जो दूसरों को नहीं दिखती

मगर इंसान को जिंदा रखती है

 

क्या किसी पल में

है कभी धड़कन रुकी?

क्या किसी लम्हें से कभी

है आप जुदा हुई?

 

जब भी आता है

दिन वो हार का

आपकी यादें तरसाती हैं

उस खूबसूरत चांद की तरह

 

और जब भी आती है

वोह रात जीत की

आपकी यादें सुलगती हैं

उस बेदिल सूरज की तरह

 

जंग के लम्हों में

तुम खूब याद आती हो

 

और …..

 

जीत के लम्हों में

तुम ‘बेहद‘ याद आती हो…

 

©️ आशिष मुळे

 

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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