डॉ  सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(अग्रज  एवं वरिष्ठ साहित्यकार  डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी  जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से  लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं।  आप प्रत्येक बुधवार को डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ  “तन्मय साहित्य ”  में  प्रस्तुत है  एक  विचारोत्तेजक कविता   “किससे कहें, सुनें अब मन की—–। )

 

☆  साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य – # 24 ☆

 

☆ किससे कहें, सुनें अब मन की—– ☆  

 

किससे कहें, सुनें

अब मन की।

 

नित नूतन आडंबर लादे

घूम रहे,  राजा के प्यादे

गुटर-गुटर गूँ  करे कबूतर

गिद्ध, अभय के करते वादे,

बात शहर में

जंगल, वन की।

किससे कहें……..

 

सपनों में, रेशम सी बातें

स्वर्ण-कटारी, करती घातें

रोटी  है  बेचैन, – कराहे

वे खा-खा कर नहीं अघाते,

बातें भूले

अपनेपन की।

किससे कहें……….

 

अब गुलाब में, केवल कांटे

फूल, परस्पर  खुद  में बांटे

गेंदा, जूही, मोगरा- चंपा

इनको है, मौसम के चांटे,

रौनक नहीं, रही

उपवन की ।

किससे कहें……….

 

है अपनों के बीच दीवारें

सद्भावों के, नकली नारे

कानों में, मिश्री रस घोले

मिले स्वाद,किन्तु बस खारे

कब्रों से हुँकार

गगन की ।

किससे कहें ………

 

© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

जबलपुर, मध्यप्रदेश

मो. 989326601

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