डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  एक भावप्रवण गीत – बजी राग की रणभेरी।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 124 – गीत – बजी राग की रणभेरी…  ✍

साँस साँस सुरभित है मेरी

बजी राग की रणभेरी।

 

नाम सुना तो लगा कि जैसे

परिचय बड़ा पुराना

स्वर सुनते ही लगा कि यह तो

है जाना पहिचाना।

 

प्राणों में कुछ बजा कि जैसे

बजती है बजनेरी।

 

देखा पहिली बार तुम्हें जब

आकर्षण ने बाँधा

मनमोहन के हृदय पटल पर

कौंध गई थी राधा।

 

पलक झपकने में अब लगती

ज्यों दिन भर की देरी।

 

बाँहों में जब बाँधा तुमको

लगा हुआ आकाशी

अधरों का रस पीकर भी तो

रही आत्मा प्यासी।

 

तेरा मेरा नाता ऐसा

जैसे चाँद चकोरी।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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