श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं।  आप प्रत्येक शनिवार श्री एस के कपूर जी की रचना आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण मुक्तक ।।तेरी ही दी खुशियां, आती दुगनी वापिस होकर।।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 38 ☆

☆ मुक्तक ☆ ।। तेरी ही दी खुशियां, आती दुगनी वापिस होकर ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

ख़ुशियाँ हर मोड़ पर कि, चाहो तो मौज मिलती है।

बात नहीं एक दिन की, ढूंढो तो रोज़ मिलती है।।

खुशी बसती नहीं कहीं दूर, बहुत ऊपर आसमान में।

तेरे भीतर बसेरा इनका, खोज वहीं पर मिलती है।।

[2]

बहुत आसान इन खुशियों, से रोज़ मुलाकात करना।

बांटते रहो फिर इन्हें, अपनों में आबाद  करना।।

यही छोटी मोटी खुशियां, लौट कर आती बड़ी होकर।

फिर इन खुशियों को तुझ, को ही है प्राप्त करना।।

[3]

मत ढूंढता रह हमेशा धन, दौलत की सौगातों  को।

निकाल कर ला हर बात, में खुशी की अफरातों  को।।

तेरी ही खुशी जान ले कि, दुगनी होकर आती वापिस।

बस अहसास कर महसूस, कर इन मुस्कराहटों को।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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