श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# पानी… #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 95 ☆

☆ # पानी… # ☆ 

जिंदगी के खेल निराले हैं

यह समझ मे नही आने वाले हैं

कहीं बूंद बूंद को लोग तरसते हैं

कहीं तबाही लाने वाले हैं

 

मेघों पर दीवानगी छाई है

घनघोर घटाएं संग लाई है

बरस रहा है पानी ही पानी

पृथ्वी पर बाढ़ सी आई है

 

तूफान सब कुछ रौंद रहा है

आसमान दामिनी बनकर

कौंध रहा है

बह गये है गांव के गांव

इन्सान डर के मारे

मौन रहा है

 

कहीं पर आशियाने

लुट गए हैं

कहीं पर लाचारी में जीने

पीछे छूट गये है

ना शरीर पर वस्त्र

ना सर पर छत

ईश्वर जैसे उनसे

रूठ गये है

 

यह मेघों की कैसी

दीवानगी है

धरती पर फैली त्रासदी है

बाढ़ प्रलय बन गई है

मानव के हाथ

बस बेचारगी है

 

कहीं वर्षा नहीं तो अकाल है

कहीं खूब वर्षा तो काल है

जग में पानी ही तो जीवन है

कहीं बिना पानी हाल-बेहाल है /

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588\

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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