डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका एक अप्रतिम गीत – मुखर जलज सा रुप…।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 98 – गीत –मुखर जलज सा रुप✍

मुखर जलज सा रुप

मुग्ध मधुप सा मेरा मन।

 

तुमसे पहले जीवन मरू था

तुम्हें देखकर मेघ पधारे

गंध छंद में बँधकर आई

बँधे गीत के वंदन वारे

ओ मेरी साधों की संगिनी

तुम हो सगुण शेष है निर्गुण।

 

जीवन था निर्जीव शब्द सा

दिया तुम ही ने अर्थ उजाला

तुमने ही जलती तृष्णा को

संयम के साँचे में ढाला ।

तुमने ही मन किया नियंत्रित

तेरा मन है मेरा दरपन।

 

मुखर जलज सा रुप

मुग्ध मधुप सा मेरा मन।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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