श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत है / कन्या पर एक सारगर्भित एवं भावप्रवण कविता “बेटी ” । इस विचारणीय रचनाके लिए श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ जी की लेखनी को सादर नमन। ) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 106 ☆

? बेटी ?

धन्य धन्य यह भारत भूमि, जो संस्कारों का जतन करें।

बेटी ही वो सृष्टि है, मां बनकर कन्यादान करें।

 

जब हुआ धर्म का हनन, देवों ने मिलकर किया मनन।

बेटी रूप में शक्ति ने, सृष्टि को किया वरन।

 

सृष्टि की अनुपम माया है, बेटी की सुंदर काया है।

पुन्यात्मा वो मनुष्य बहुत, जिन्होंने बेटी धन पाया है।

 

नभ से आई गंगा धन, भूलोक समाई समाई सरिता बन।

सबको तारण करती है, हैं गंगा जल बेटी का तन।

 

सदियों से रीत चली आई, बेटियां होती सदा पराई।

नवजीवन जीवित रखने को, बेटियां दो कुलों में समाई।

 

रीत रिवाज सजाती बेटी, मां के संग बनाती रोटी।

बाबुल के घर आंगन में, रहती जैसे जन्म घुटी।

 

दिन बहना के सुनी कलाई, बिन बेटी अधूरी विदाई।

समय आ गया अब देखो, चांद में पांव बेटी धर आई।

 

बेटियां होती अनमोल धन, सदैव इसका इनका करें जतन।

दया धर्म करुणा ममता, खुशियों से भरा बेटी का मन।

 

धन्य धन्य यह भारत भूमि, जो संस्कारों का जतन करें।

बेटी ही वो सृष्टि है, मां बनकर कन्यादान करें।

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares
0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

1 Comment
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
Subedarpandey

उत्कृष्ट सृजन उच्च स्तरीय रचना धर्मिता बधाई अभिनंदन अभिवादन आदरणीया श्री