श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं  “संतोष के दोहे। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार  आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 67 ☆

☆ स्वामी विवेकानंद जयंती – संतोष के दोहे  ☆

विवेक और आनन्द का, जिनमें अद्भुत कोष

सत्य,संस्कृति के लिए, किया बहुत जय घोष

 

नव युवकों को जगा कर, दिया नया उत्साह

उठो चलो आगे बढ़ो, उनकी थी यह चाह

 

जिनके तन-मन में रचा, राष्ट्र प्रेम महान

चले साथ लेकर सदा, धर्म और विज्ञान

 

संस्कारी सनातनी, जप-तप और ध्यान

सकल सृष्टि में गूंजता,उ नका ही जय गान

 

कर राष्ट्र आराधना, पाया जीवन-साध्य

राष्ट्र ही जिनके लिए, एकमेव आराध्य

 

सत्य न्याय की राह पर, चले निडर भर जोश

अटल इरादों से सदा, उनको था “संतोष”

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares
0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

1 Comment
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
डॉ भावना शुक्ल

बेहतरीन प्रस्तुति