श्री शांतिलाल जैन 

आधुनिक भारत के इतिहास लेखन में जवरसिंग का योगदान

 

(प्रस्तुत है श्री शांतिलाल जैन जी का  सामाजिक माध्यमों और आधुनिक तकनीक के सामंजस्य के सदुपयोग/दुरुपयोग पर अत्यंत सामयिक, सटीक एवं सार्थक व्यंग्य।) 

 

आप जवरसिंग को नहीं जानते. उसे जानना जरूरी है. वो इन दिनों ‘आधुनिक भारत का इतिहास’ लिखने में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है. हालाँकि उसकी पृष्ठभूमि से नहीं लगता कि वो इतिहास लेखन जैसी महती परियोजना पर काम कर रहा होगा, मगर सच यही है. उसके लिखे इतिहास के चुनिन्दा अंश प्रस्तुत करने से पहले मैं, संक्षेप में, उसकी पृष्ठभूमि बताना चाहता हूँ.
जवरसिंग हमारे दफ्तर में साढ़े पैंतीस साल चपरासी के पद का निर्वहन करते हुए तीन महीने पहले सेवा निवृत्त हुआ. बायो-डाटा में उसकी शैक्षणिक योग्यता पाँचवी तक लिखी हुई थी मगर अपने नाम के पांच अक्षरों से ज्यादा वो कभी नहीं लिख सका. हाँ, वो हिंदी पढ़ लेता था. अखबार घंटों पढ़ता था. दोपहर का टैब्लॉयड ‘जलती मशाल’ उसका पसंदीदा अखबार रहा. क्राईम न्यूज़ सबसे पहले पढ़ता. जब जब दफ्तर में हमारे पास उसके लायक जरूरी काम होता वो अखबार पढ़ने में तल्लीन हो जाता और तब तक तल्लीन ही रहता जब तक हमारा काम बिना उसके भी पूरा न हो जाए. वो प्रखर राजनैतिक चेतना का धनी था. दैनिक वेतनभोगी कर्मियों को सामने बैठाकर घंटों समकालीन राजनीति पर अपना अभिमत देता. उसके किसी श्रोता में इतनी हिम्मत नहीं होती कि उससे असहमत हो जाए, बल्कि वे उसके लिए समोसा-चाय लेकर आते. उसके अन्दर एक अदम्य विश्वास कूट-कूट कर भरा था कि भारत सहित दुनिया के तमाम राष्ट्र-प्रमुख यदि उसकी सलाह से चलें तो देश-विदेश की सारी समस्याएं घंटो में सुलझाई जा सकती हैं. बहरहाल, उसकी सेवा निवृत्ति पर हम सबने कंट्रीब्यूट करके उसे एक स्मार्ट फ़ोन गिफ्ट किया था. फिर उसने सबसे तेज़, सबसे ज्यादा डाटा, सबसे सस्ता देने वाली कंपनी से इन्टरनेट पैक लिया, अपनी पोती से व्हाट्सऐप करना सीखा.
जिस रोज़ व्हाट्सऐप पर उसकी पहली पोस्ट मुझे मिली मैं कदाचित विस्मित रह गया. जवरसिंग और इतना लंबा मैटर! खुद ने मोबाइल पर टाईप किया या किसी से लिखवाकर मुझे फॉरवर्ड करा!! जो भी हो, मेरे आश्चर्य की वजह उसकी तकनीकी योग्यता में सुधार को लेकर नहीं थी बल्कि उस पोस्ट में झलकती इतिहास की उसकी अनूठी समझ, नायाब और नवीन जानकारी को लेकर थी. उसने पोस्ट में लिखा था कि आज़ादी के लिए अनेक बार जेल जाने वाले, आधुनिक भारत के निर्माता, ‘भारत एक खोज’ के रचयिता किसी भी प्रकार से आदर योग्य महापुरुष नहीं थे. उन्होंने जो भी निर्णय लिए वे देशहित के कभी नहीं रहे. वे जननायक भारत के थे और प्रेम पकिस्तान से करते थे. मैं भौंचक्का रह गया. मुझे लगा कि मेरे पिता, मेरे दादाओं, परदादाओं की पूरी पूरी पीढ़ियाँ गलत थीं, जो उनके एक आव्हान पर जेल जाने और लाठी गोली खाने को उद्यत रहती थीं. मेरी दादी ने आज़ादी के नायक की जो कहानियां मुझे सुनाई थीं जवरसिंग की भेजी गई एक पोस्ट ने उसे धो कर रख दिया.
जवरसिंग ने फिर एक पोस्ट भेजी जिसमें उसने उसी नायक के बारे में बताया कि उनके परदादा   म्लेच्छ थे, कि उन्होंने धर्मान्तरण किया था, कि उनका जन्म इलाहाबाद की एक बदनाम बस्ती में हुआ था. मन किया श्रीमान, कि जवरसिंग के चरण छू लिए जाएँ. कहाँ थे प्रभु आप अब तक ? आप इतने साल साथ रहे मगर कभी बताया नहीं कि किस महापुरुष की अंत्येष्टि में कौन शामिल हुआ, नहीं हुआ, हुआ तो किस विधि से संस्कार करना था, किस विधि से कर दिया गया. आज़ादी का कौन सा सेनानी ईश्कबाज़ी में मसरूफ़ रहता था और अपने जीवन साथी के प्रति बेवफा था. ऐसे ऐतिहासिक तथ्य जुटाने के लिए कितना परिश्रम किया होगा जवरसिंग ने, कितना समय लगाकर कितना अध्ययन किया होगा, !! व्हाट्सऐप नहीं होने के कारण वो मुझे और देश को इतिहास का ये पक्ष पहले बता नहीं सका. थैंक यू ब्रायन एक्टन, आपने व्हाट्सऐप बनाया.
जो फोन हमने गिफ्ट किया था वो स्मार्ट फोन था, जवरसिंग के हाथों में आकर ओवर स्मार्ट हो गया है. इसी से वो इन दिनों लगभग रोज़ ही एक, दो या उससे भी अधिक पोस्ट भेजता है जिनमें उन प्रतिमाओं को खंडित किया हुआ होता जो अब तक पूजनीय बनी रही. उसका राजनैतिक आकलन देखिये श्रीमान – उसने लिखा कि अगर ‘अ’ की जगह ‘ब’, या ‘ब’ की जगह ‘स’, ‘द’, या ‘ढ़’ देश के प्रथम जननायक रहे होते तो क्या से क्या हो गया होता. जवरसिंग जब पोस्ट लिखता है तो आत्मविश्वास से लबरेज़ रहता है. वो बहुत सी ऐसी घटनाओं को शिद्दत से परोसता है जो शायद कभी घटी ही नहीं.  वह अपने जन्म के पूर्व की किसी दिनांक को दो दिवंगत महापुरूषों के बीच हुए संवाद को ऐसे प्रेषित करता है जैसे वो उस बातचीत का चश्मदीद गवाह रहा हो. उसकी एक पोस्ट ने तो मेरे पैरों के नीचे की जमीन ही खिसका दी, लिखा कि अहिंसा से आज़ादी दिलाने वाला अधनंगा फ़कीर तो अंग्रेजों का एजेंट था और स्वतन्त्रता संग्राम की अगुवाई वो इस तरह से कर रहा था कि फिरंगी अधिक से अधिक बरसों तक भारत पर शासन कर सकें. बताईये साहब, सदी के महानायक की समूची साधना पर जवरसिंग के लिखे ने पानी फेर दिया. जवरसिंग की शोध कहती है कि साहित्य का नोबेल पुरस्कार गुरुवर ने अंग्रेजों के सामने गिड़गिड़ा कर हाँसिल किया. ये तो चंद, चुनिन्दा बानगियाँ हैं श्रीमान, जवरसिंग ने ऐसी ढेर सारी सामग्री जुटा ली है. उन पोस्टों के फॉरवर्ड किये जाने का सिलसिला अनवरत जारी है. जवरसिंग ने अपने ज्ञान-क्षितिज को विस्तार दिया है. अब वो कूटनीति पर भी पोस्ट भेजने लगा है, रक्षा मामलों पर और देश की अर्थनीति पर तो साधिकार पोस्टें भेजता ही रहता है. जवरसिंग अपने इतिहास लेखन की रॉयल्टी नहीं लेता मगर हाँ, वो चाहता है कि उसकी ऐसी पोस्टों को वाईरल किया जाए. इसके लिए कभी कभी वो चैलेंज भी करता है कि तुम सच्चे ये हो या सच्चे वो हो तो इसको जरूर फैलाओ.
जवरसिंग ने हमारे समय के पनिक्करों, बिपिन चंद्राओं, रामचंद्र गुहाओं, रोमिला थापरों के वर्षों के परिश्रम से किये गए शोध और इतिहास लेखन को अपने व्हाट्सऐप अकाउंट के एक क्लिक से झुठला दिया है. मुझे अपने आप पर ग्लानि हो रही है कि इतने बड़े इतिहासविद, जानकार, ज्ञानी आदमी ने मेरे दफ्तर में मेरे साथ मामूली पद पर नौकरी करते हुए जिन्दगी गुजार दी और मुझे पता ही नहीं चला. जिसे हम एक साधारण और लगभग अनपढ़ सहकर्मी समझते रहे वो तो गुदड़ी का लाल निकला. इन दिनों वो अपनी समस्त ऐतिहासिक पोस्टों को सम्पादित करके ग्रंथावली के रूप में प्रकाशित करवाने की परियोजना पर काम कर रहा है. आने वाले वर्षों में, इतिहासविद श्रेणी में, वो पद्मविभूषण सम्मान पाने का मजबूत दावेदार है. वो हमारे समय का ‘अनसंग हीरो’ है. उसने प्रमाणित तथ्यों, खोजपरक लेखों और सबूतों की बिला पर लिखी पुस्तकों से विद्यार्थियों को कक्षा में इतिहास पढ़ाने की जरूरत समाप्त कर दी है. अब इसके लिए जवरसिंह का व्हाट्सऐप अकाउंट है ना !!!
© शांतिलाल जैन 
मोबाइल : 9425019837
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