हेमन्त बावनकर

☆ शब्द मेरे अर्थ तुम्हारे – 9 ☆ हेमन्त बावनकर

 गैस त्रासदी !

(2-3 दिसंबर 1984 की रात  यूनियन कार्बाइड (यूका), भोपाल से मिक गैस  रिसने  से कई  लोगों  की मृत्यु हो गई थी।  मेरे काव्य -संग्रह  ‘शब्द …. और कविता’ से  उद्धृत  गैस त्रासदी पर श्रद्धांजलि स्वरूप।)

हम

गैस त्रासदी की बरसियां मना रहे हैं।

बन्द

हड़ताल और प्रदर्शन कर रहे हैं।

यूका और एण्डर्सन के पुतले जला रहे हैं।

 

जलाओ

शौक से जलाओ

आखिर

ये सब

प्रजातंत्र के प्रतीक जो ठहरे।

 

बरसों पहले

हिटलर के गैस चैम्बर में

कुछ इंसान

तिल तिल मरे थे।

हिरोशिमा नागासाकी में

कुछ इंसान

विकिरण में जले थे।

 

तब से

हमारी इंसानियत

खोई हुई है।

अनन्त आकाश में

सोई हुई है।

 

याद करो वे क्षण

जब गैस रिसी थी।

 

यूका प्रशासन तंत्र के साथ

सारा संसार सो रहा था।

 

और …. दूर

गैस के दायरे में

एक अबोध बच्चा रो रहा था।

 

ज्योतिषी ने

जिस युवा को

दीर्घजीवी बताया था।

वह सड़क पर गिरकर

चिर निद्रा में सो रहा था।

 

अफसोस!

अबोध बच्चे….. कथित दीर्घजीवी

हजारों मृतकों के प्रतीक हैं।

 

उस रात

हिन्दू मुस्लिम

सिक्ख ईसाई

अमीर गरीब नहीं

इंसान भाग रहा था।

 

जिस ने मिक पी ली

उसे मौत नें सुला दिया।

जिसे मौत नहीं आई

उसे मौत ने रुला दिया।

 

धीमा जहर असर कर रहा है।

मिकग्रस्त

तिल तिल मर रहा है।

 

सबको श्रद्धांजलि!

गैस त्रासदी की बरसी पर स्मृतिवश!

 

© हेमन्त बावनकर

पुणे 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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Kamna

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