डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम दोहे।)

✍  लेखनी सुमित्र की #40 – दोहे  ✍

संयम के सोपान पर, खड़े हुए हैं आप।

इसीलिए तो लग रही, मेरी चाह प्रलाप।।

 

अपने मन को बांधकर, रह लूंगा चुपचाप।

व्याकुल है मन प्राण पर, सुनने को पदचाप।।

 

चतुर शिकारी ने किया, पंछी पर अहसान।

पंख कतर कर कह दिया, फिर से भरो उडान।।

 

चाहा कब पूरा गगन, दे देते तुम काश।

ज्यादा कुछ तो था नहीं, मुट्ठी भर आकाश।।

 

समझ विवशता आपकी, लगा रहा अनुमान ।

संशय के अंधियार में, डूबा है दिनमान।।

 

मिली नहीं संजीवनी, सुझा नहीं निदान।

वहन कोई कैसे करें, मन पर की चट्टान।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

 

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डॉ भावना शुक्ल

बेहतरीन अभिव्यक्ति