(डॉ प्रदीप शशांक जी द्वारा प्रस्तुत यह लघुकथा भी वर्तमान सामाजिक परिवेश के ताने बाने पर आधारित है। डॉ प्रदीप जी की शब्द चयन एवं सांकेतिक शैली मौलिक है। )
☆ कुत्तों से सावधान ☆
चंदा बंगले का गेट खोलकर जैसे ही अंदर दाखिल हुई ,मेमसाहब ने तीखी आवाज में चिल्लाना शुरू कर दिया – ” कहाँ मर गई थीं , इतनी देर से आ रही है ? ”
” मेमसाब , अभी 9 ही तो बजा है , देर कहां हुई । ”
” जुबान लड़ाती है , चुपचाप काम कर ।” मेमसाब नें डांटते हुए कहा ।
वह चुपचाप बर्तन मांजने एवं कपड़े धोने लगी । जब तक उसका काम खत्म नहीं हुआ तब तक मेमसाब बड़बड़ाती ही रही ।
काम खत्म कर वह बाहर निकलने लगी तो देखा गार्डन में खड़े साहब माली पर चिल्ला रहे थे ।
गेट के अंदर एक कोने में टॉमी दुबका पड़ा था । चंदा ने उसे देखा तो सोचने लगी कि टॉमी के भोंकने की आवाज तो कभी सुनाई भी नहीं पड़ी, लेकिन रोज सुबह से साहब और मेमसाब जरूर माली, धोबी, सब्जी वाले जैसे हम छोटे लोगों पर भोंकते रहते हैं ।
बाहर निकलकर जब वह गेट बंद कर रही थी, तब उसकी निगाह गेट पर लगी तख्ती पर पड़ी , जिसमें लिखा था – कुत्तों से सावधान ।
चंदा व्यंग्यात्मक मुस्कान के साथ दूसरे घर की ओर बढ़ गई ।
(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी की जीवन के प्रति एक दार्शनिक दृष्टिकोण लिए कविता “जिंदगी ……. एक किताब”।
(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी की कविता “स्त्री स्वतन्त्रता पर आधारित “नया दृष्टिकोण” । ऐसे विषय पर नारी ही नारी के हृदय को समझ कर इतना कुछ कल्पना कर सकती हैं। आदरणीया डॉ मुक्ता जी की लेखनी को नमन । )
(युवा साहित्यकार श्री दिवयांशु शेखर जी का e-abhivyakti में स्वागत है। आपने बिहार के सुपौल में अपनी प्रारम्भिक शिक्षा पूर्ण की। आप मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक हैं। जब आप ग्यारहवीं कक्षा में थे, तब से ही आपने साहित्य सृजन प्रारम्भ कर दिया था। आपका प्रथम काव्य संग्रह “जिंदगी – एक चलचित्र” मई 2017 में प्रकाशित हुआ एवं प्रथम अङ्ग्रेज़ी उपन्यास “Too Close – Too Far” दिसंबर 2018 में प्रकाशित हुआ। ये पुस्तकें सभी प्रमुख ई-कॉमर्स वेबसाइटों पर उपलब्ध हैं। आपके अनुसार – “मैं हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में कविताएँ, कहानियाँ, नाटक और स्क्रिप्ट लिखता हूँ। एक लेखक के रूप में स्वयं को संतुष्ट करना अत्यंत कठिन है किन्तु, मैं पाठकों को संतुष्ट करने के लिए अपने स्तर पर पूरा प्रयत्न करता हूँ। मुझे लगता है कि एक लेखक कुछ भी नहीं लिखता है, वह / वह सिर्फ एक दिलचस्प तरीके से शब्दों को व्यवस्थित करता है, वास्तविकता में पाठक अपनी समझ के अनुसार अपने मस्तिष्क में वास्तविक आकार देते हैं। “कला” हमें अनुभव एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देती है और मैं जीवन भर कला की सेवा करने का प्रयत्न करूंगा।”)
☆ क्षितिज ☆
क्षितिज! धरती और आसमान की अनूठी प्रेम कहानी,
ना मानो तो छलावा, अगर मानो तो बड़ी सुहानी ।
इक तरफ जहाँ आसमान मस्ताना,
दूसरी ओर धरती उसके रंगों की दीवानी ।
इक तरफ जहाँ आसमान मातंग दीवाना,
वहीं बेचैन धरती की हर वक़्त खामोश रहने की बेमानी ।
एक बार औरों की तरह मुझ नासमझ को भी आसमान छूने की चाह जगी,
अथक प्रयास के बाद अचानक दूर देखा तो आज मुझे वो चाँदनी नहीं,
वरन धरती और आसमान के अद्भुत मिलन की रात लगी ।
आसमान को पाने की मेरे पास अब मात्र धरती की राह बची,
मैं भागा बेतहाशा, दिल में संजोये एक असंभव सी आशा,
वहाँ पहुँचा तो कुछ ना पाया, हाथ लगी तो सिर्फ निराशा ।
हतोत्साहित मैं, धरती से उठाकर आसमान के तरफ इक पत्थर लहराया,
लेकिन बदकिस्मत वो भी लौटके वापस धरती से टकराया ।
दर्द से धरती के पलकों पे आँसू आया,
मुझ अंधे को कुछ फर्क नहीं, लेकिन आसमान को अब मुझपे गुस्सा आया ।
रौद्र काले रूप में गरज से उसने गुस्ताखी के लिए मुझको हड़काया,
घमंडी मैं अकड़ में उससे जुबान लड़ाया ।
कहा मैंने, ऐ आसमान! तुझे किस बात का अभिमान है?
धरती तो तेरी कभी हो ही नहीं सकती, फिर तुझे किस बात का गुमान है ।
मुझ पर मुस्कुराता वो बोला कि एहसासों की कहानी की लगती कहाँ दुकान है,
और सच्चे प्यार की असल में होती कहाँ जुबान है ।
तुम तो सिर्फ अपने सपनों के लिए मेरे पीछे हो भागते,
पर जो धरती है तुम्हारे पास, उसकी कभी क़द्र ही नही कर पाते ।
तुम्हारे दिये दर्द से अब वो बेदर्द कुछ इस कदर हो गयी है,
तुम्हारे शोर में खुद के दिल की आवाज़ सुनना भूल गयी है ।
मेरा क्या, मैं तो मनोरंजन के लिए रूप, रंग बदलता हूँ,
पर तुम्हारे इशारों पे नहीं केवल उसके लिए ही मचलता हूँ ।
जहाँ मैं केवल उसकी धुन में हूँ गाता,
वहीँ वो तुम निर्ममों की गूंज में, मेरा वो प्रेमराग सुन भी ना पाती ।
जहाँ सब लोग मेरे लिए पागल हैं,
वहीं गुस्ताखी में हर वक़्त करते उसको घायल हैं ।
उसके दर्द में जब भी रोऊँ, तो लोग मेरे आँसू को बारिश हैं समझते,
उसे छेड़ने इक पलक को झपकुं, तो नासमझ तुम उसे बिजली की चमक हो समझते ।
जब भी तुम उम्मीदों से मुझे हो देखते,
मैं मुस्कुराता, और मुझे देख वो भी मुस्कुराती ।
तुम ना हिलो यहीं मज़बूरी उसकी,
नहीं तो अपने इस मचलते आशिक़ के लिए वो भी इठलाती ।
नीचे से देखने पर तुम्हें लगता होगा कि मैंने उसे चारों तरफ से घेर रखा है,
कभी मेरे साथ आकर देखो, तो तुम्हें पता चले कि मैंने नहीं,
वरन उसने मुझे सदा इक छाँव दे रखा है ।
और जहाँ तक है हमारे मिलन कि बात तो हम हमेशा ही हैं मिले,
अगर ना हो यकीन तो वापस वहाँ देखो, जहाँ से तुम थे चले ।
वापस मैंने जब पलटकर देखा तो सच में उनको वहीं मिला पाया,
उनके सच्चे प्रेम और त्याग को जान, वापस मैं बुद्धू घर को आया ॥