आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – नवम अध्याय (32) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

नवम अध्याय

( निष्काम भगवद् भक्ति की महिमा )

 

मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य येऽपि स्यु पापयोनयः ।

स्त्रियो वैश्यास्तथा शूद्रास्तेऽपि यान्ति परां गतिम्‌।।32।।

 

मेरा आश्रय ग्रहण कर पापी नारी शूद्र

भी पाते है परम गति ,पार्थ ! न यह विद्रूप।।32।।

 

भावार्थ :  हे अर्जुन! स्त्री, वैश्य, शूद्र तथा पापयोनि चाण्डालादि जो कोई भी हों, वे भी मेरे शरण होकर परमगति को ही प्राप्त होते हैं।।32।।

 

For, taking refuge in Me, they also, who, O Arjuna, may be of sinful birth-women, Vaisyas as well as Sudras-attain the Supreme Goal!।।32।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – नवम अध्याय (31) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

नवम अध्याय

( निष्काम भगवद् भक्ति की महिमा )

 

क्षिप्रं भवति धर्मात्मा शश्वच्छान्तिं निगच्छति ।

कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्तः प्रणश्यति ।।31।।

 

शीघ्र बना धर्मात्मा पाता शान्ति अंनत

अर्जुन मेरे भक्त का होता कभी न अन्त।।31।।

 

भावार्थ :  वह शीघ्र ही धर्मात्मा हो जाता है और सदा रहने वाली परम शान्ति को प्राप्त होता है। हे अर्जुन! तू निश्चयपूर्वक सत्य जान कि मेरा भक्त नष्ट नहीं होता।।31।।

 

Soon he becomes righteous and attains to eternal peace; O Arjuna, know thou for certain that My devotee is never destroyed!।।31।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – नवम अध्याय (30) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

नवम अध्याय

( निष्काम भगवद् भक्ति की महिमा )

 

अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक्‌।

साधुरेव स मन्तव्यः सम्यग्व्यवसितो हि सः ।।30।।

 

दुराचारी भी यदि मुझे भजता देकर ध्यान

उसे भी तो सदबुद्धि दे , देता मैं प्रतिदान।।30।।

 

भावार्थ :  यदि कोई अतिशय दुराचारी भी अनन्य भाव से मेरा भक्त होकर मुझको भजता है तो वह साधु ही मानने योग्य है, क्योंकि वह यथार्थ निश्चय वाला है। अर्थात्‌उसने भली भाँति निश्चय कर लिया है कि परमेश्वर के भजन के समान अन्य कुछ भी नहीं है।।30।।

 

Even if the most sinful worships Me, with devotion to none else, he too should indeed be regarded as righteous, for he has rightly resolved.।।30।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – नवम अध्याय (29) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

नवम अध्याय

( निष्काम भगवद् भक्ति की महिमा )

 

समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रियः ।

ये भजन्ति तु मां भक्त्या मयि ते तेषु चाप्यहम्‌।।29।।

 

सब के प्रति समभाव मम कोई द्वेष न राग

जो भजते मुझको वे मम उनमें मम अनुराग।।29।।

 

भावार्थ :  मैं सब भूतों में समभाव से व्यापक हूँ, न कोई मेरा अप्रिय है और न प्रिय है, परंतु जो भक्त मुझको प्रेम से भजते हैं, वे मुझमें हैं और मैं भी उनमें प्रत्यक्ष प्रकट (जैसे सूक्ष्म रूप से सब जगह व्यापक हुआ भी अग्नि साधनों द्वारा प्रकट करने से ही प्रत्यक्ष होता है, वैसे ही सब जगह स्थित हुआ भी परमेश्वर भक्ति से भजने वाले के ही अंतःकरण में प्रत्यक्ष रूप से प्रकट होता है) हूँ।।29।।

 

The same am I to all beings; to Me there is none hateful or dear; but those who worship me with devotion are in Me and I am also in them.।।29।।

 

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – नवम अध्याय (28) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

नवम अध्याय

( निष्काम भगवद् भक्ति की महिमा )

 

शुभाशुभफलैरेवं मोक्ष्य से कर्मबंधनैः ।

सन्न्यासयोगमुक्तात्मा विमुक्तो मामुपैष्यसि ।।28।।

ऐसा कर सब कर्मफल से धन से पा मुक्ति

हो विरक्त सन्यासमय मुझमें रख अनुरक्ति।।28।।

 

भावार्थ :  इस प्रकार, जिसमें समस्त कर्म मुझ भगवान के अर्पण होते हैं- ऐसे संन्यासयोग से युक्त चित्तवाला तू शुभाशुभ फलरूप कर्मबंधन से मुक्त हो जाएगा और उनसे मुक्त होकर मुझको ही प्राप्त होगा। ।।28।।

 

Thus shalt thou be freed from the bonds of actions yielding good and evil fruits; with the mind steadfast in the Yoga of renunciation, and liberated, thou shalt come unto Me.।।28।।

 

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ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – नवम अध्याय (27) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

नवम अध्याय

( निष्काम भगवद् भक्ति की महिमा )

 

यत्करोषि यदश्नासि यज्जुहोषि ददासि यत्‌।

यत्तपस्यसि कौन्तेय तत्कुरुष्व मदर्पणम्‌।।27।।

 

जो करता जो जीमता करता तप या दान

कर अर्पण मुझको हवन होकर निराभिमान।।27।।

 

भावार्थ :  हे अर्जुन! तू जो कर्म करता है, जो खाता है, जो हवन करता है, जो दान देता है और जो तप करता है, वह सब मेरे अर्पण कर।।27।।

 

Whatever thou doest, whatever thou eatest, whatever thou offerest in sacrifice, whatever thou givest, whatever thou practiseth as austerity, O Arjuna, do it as an offering unto Me!।।27।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – नवम अध्याय (26) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

नवम अध्याय

( निष्काम भगवद् भक्ति की महिमा )

   

पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति ।

तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मनः ।।26।।

 

पत्र पुष्प फल या कि जल  जो मुझे करे प्रदान

 वे ही मेरे भक्तजन  मैं लेता ससम्मान ।।26।।

 

भावार्थ :  जो कोई भक्त मेरे लिए प्रेम से पत्र, पुष्प, फल, जल आदि अर्पण करता है, उस शुद्धबुद्धि निष्काम प्रेमी भक्त का प्रेमपूर्वक अर्पण किया हुआ वह पत्र-पुष्पादि मैं सगुणरूप से प्रकट होकर प्रीतिसहित खाता हूँ।।26।।

 

Whoever offers Me with devotion and a pure mind (heart), a leaf, a flower, a fruit or a little water-I accept (this offering).।।26।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – नवम अध्याय (25) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

नवम अध्याय

( सकाम और निष्काम उपासना का फल)

यान्ति देवव्रता देवान्पितृन्यान्ति पितृव्रताः ।

भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोऽपि माम्‌ ।।25।।

देव पुजारी देव को पितृभक्त पितुप्राप्त

भूत उपासक भूत को ,मेरे भक्त मेरे साथ।।25।।

      

भावार्थ :  देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं, पितरों को पूजने वाले पितरों को प्राप्त होते हैं, भूतों को पूजने वाले भूतों को प्राप्त होते हैं और मेरा पूजन करने वाले भक्त मुझको ही प्राप्त होते हैं। इसीलिए मेरे भक्तों का पुनर्जन्म नहीं होता (गीता अध्याय 8 श्लोक 16 में देखना चाहिए)।।25।।

 

The worshipers of the Gods go to them; to the manes go the ancestor-worshipers; to the Deities who preside over the elements go their worshipers; My devotees come to Me.।।25।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – नवम अध्याय (24) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

नवम अध्याय

( सकाम और निष्काम उपासना का फल)

 

अहं हि सर्वयज्ञानां भोक्ता च प्रभुरेव च ।

न तु मामभिजानन्ति तत्त्वेनातश्च्यवन्ति ते ।।24।।

 

सब यज्ञों का मैं ही हूँ भोक्ता, प्रभु औ” नाथ

जो न मुझे पहचानते उन्हें न मिलता साथ।।24।।

      

भावार्थ :  क्योंकि संपूर्ण यज्ञों का भोक्ता और स्वामी भी मैं ही हूँ, परंतु वे मुझ परमेश्वर को तत्त्व से नहीं जानते, इसी से गिरते हैं अर्थात्‌ पुनर्जन्म को प्राप्त होते हैं।।24।।

 

(For) I alone am the enjoyer and also the Lord of all sacrifices; but they do not know Me in essence (in reality), and hence they fall (return to this mortal world).।।24।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – नवम अध्याय (22) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

नवम अध्याय

( सकाम और निष्काम उपासना का फल)

अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते ।

तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्‌ ।।22।।

एक भाव से जो भी जन भजते मुझे सनेम

योग युक्त उनका मैं नित रखता कुशल व क्षेम।।22।।

भावार्थ :  जो अनन्यप्रेमी भक्तजन मुझ परमेश्वर को निरंतर चिंतन करते हुए निष्कामभाव से भजते हैं, उन नित्य-निरंतर मेरा चिंतन करने वाले पुरुषों का योगक्षेम (भगवत्‌स्वरूप की प्राप्ति का नाम ‘योग’ है और भगवत्‌प्राप्ति के निमित्त किए हुए साधन की रक्षा का नाम ‘क्षेम’ है) मैं स्वयं प्राप्त कर देता हूँ।।22।।

 

To those men who worship Me alone, thinking of no other, of those ever united, I secure what is not already possessed and preserve what they already possess.।।22।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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