श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

नवम अध्याय

( निष्काम भगवद् भक्ति की महिमा )

 

शुभाशुभफलैरेवं मोक्ष्य से कर्मबंधनैः ।

सन्न्यासयोगमुक्तात्मा विमुक्तो मामुपैष्यसि ।।28।।

ऐसा कर सब कर्मफल से धन से पा मुक्ति

हो विरक्त सन्यासमय मुझमें रख अनुरक्ति।।28।।

 

भावार्थ :  इस प्रकार, जिसमें समस्त कर्म मुझ भगवान के अर्पण होते हैं- ऐसे संन्यासयोग से युक्त चित्तवाला तू शुभाशुभ फलरूप कर्मबंधन से मुक्त हो जाएगा और उनसे मुक्त होकर मुझको ही प्राप्त होगा। ।।28।।

 

Thus shalt thou be freed from the bonds of actions yielding good and evil fruits; with the mind steadfast in the Yoga of renunciation, and liberated, thou shalt come unto Me.।।28।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

vivek1959@yahoo.co.in

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