☆ येत्या १० वर्षात हे बदल होतील ☆ संग्राहक – श्री सुनीत मुळे ☆
तज्ञांच्या अंदाजानुसार येत्या १० वर्षात हे बदल होतील —–
पूर्णवेळ कार्यालये पध्दत बंद होईल. त्यामुळे कमर्शियल कॉम्प्लेक्स मॉलप्रमाणेच बंद होतील. फुड होम डिलिव्हरी वाढेल व रेस्टॉरंटचा धंदा ६०% कमी होईल, ब्युटीपार्लर ही घरपोच सेवा होईल.
घरपोच ऑनलाईन हेल्थ सेवा देणाऱ्या कंपन्या निघतील व मोठी फी घेणारे डॉक्टर व टोलेजंग हॉस्पिटलचे दिवाळं निघेल.
शिक्षण ऑनलाईन होईल. भव्य इमारती असणाऱ्या शिक्षण संस्था खंडहर बनतील. त्यामुळे बहुसंख्य शिक्षकांच्या नोकऱ्या जातील किंवा कित्येक महिने पगारच मिळणार नाहीत.
कोचिंगची पध्दती पूर्ण बदलून ती ऑनलाईन होईल. प्रायव्हेट ट्यूटर व इन्स्ट्रक्टर यांचे काम खूप वाढेल. शॉर्ट व कमी खर्चातील व उपयोगी शिक्षणाला महत्व येईल.
सर्व राजकीय प्रचार-प्रसार ऑनलाईनच असेल, रस्त्यावर भाषण, सभा, आंदोलने, मोर्चे इत्यादी मागास व खुळे समजले जातील. लोकांना उल्लू बनवायचा धंदा बंद होईल.
बँकेचे सर्व व्यवहार मोबाईलवर होतील. तुम्हाला केव्हाही बँकेत जाण्याची गरज पडणार नाही. मागास, सहकारी बँका पूर्ण बंद होतील.
चित्रपट हे मल्टिप्लेक्समध्ये पाहणे खूप कमी होईल. नवीन चित्रपटसुध्दा ऑनलाईन रिलीज होतील. टीव्ही पाहणे कमी होऊन सर्वजण मोबाईलवरच पाहतील. त्यामुळे टीव्ही चॅनेल तोट्यात जाऊन बरीच चॅनेल बंद होतील.
जात, धर्म, वंश ह्या संकल्पना १५ वर्षात संपतील, पैसा व गुण ह्या आधारेच विवाह ठरतील. फक्त पैसे कमविणार्याचेच विवाह ठरतील. बाकीचे वरातीत नाचायला व मिरवणुकीलाच कामी येतील.
नोकर्या हा प्रकार झपाट्याने कमी 0होईल, फक्त प्रोफेशनल असतील. ९०% कंपन्या आपली कामे आऊटसोर्स करतील, ह्या धंद्याला चांगले दिवस येतील. ९०% पेट्रोल, डिझेल गाड्या बंद होतील. इलेक्ट्रीक चार्जिंग गाड्या धावतील- तेही तातडीची गरज असेल तरच.
हे पुढील १५-२० वर्षात नक्कीच घडेल. या आव्हानासाठी आपण तयार आहात का?
…………..
काळानुरूप स्वतः ला बदला… नाहीतर काळ तुम्हाला बदलवून टाकेल.
संग्राहक : सुनीत मुळे
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)
(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार, मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘जहाँ दरक कर गिरा समय भी’ ( 2014) कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत – “खबर तो यह भी जरूरी ….. ”। )
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
(हमारे आग्रह पर श्री अजीत सिंह जी (पूर्व समाचार निदेशक, दूरदर्शन)हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए विचारणीय आलेख, वार्ताएं, संस्मरण साझा करते रहते हैं। इसके लिए हम उनके हृदय से आभारी हैं। आज श्री अजीत सिंह जी द्वारा प्रस्तुत है एक विचारणीय आलेख ‘देखो रूठा ना करो, बात मित्रों की सुनो……’ । हम आपकी अनुभवी कलम से ऐसे ही आलेख समय-समय पर साझा करते रहेंगे।)
☆ जीवन यात्रा ☆ देखो रूठा ना करो, बात मित्रों की सुनो….. ☆
रूठना, मनाना और मान जाना मानवीय व्यव्हार की कुछ अजीब सी मानसिक क्रियाएं हैं। इनका चलन यूं तो आदि काल से देखा जा सकता है पर स्मार्टफोन और व्हाट्सएप के आने के बाद इनका अलग ही रूप देखने को मिल रहा है।
रूठने की शुरुआत किसी बात पर नाराज़ होने से होती है। प्रारम्भिक लक्षण बोलचाल बंद होने के रूप में देखे जा सकते हैं।
व्हाटसएप के कारण क्योंकि संवाद का दायरा बहुत बढ़ गया है, इसीलिए रूठने, मनाने और मान जाने के अवसर भी बढ़ गए हैं।
आजकल दूर चले जाने पर भी व्यक्तियों का संपर्क नहीं टूटता। व्हाटसएप , फेसबुक, इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया रूप उन्हे जोड़े ही रखते हैं। मित्रता का दायरा बहुत ही व्यापक हो गया है। सस्ता और आसान भी हो गया है।
आजकल बच्चे, युवा, वृद्ध, स्त्री, पुरुष घण्टों स्मार्टफोन पर व्यस्त देखे जा सकते हैं। वे अपने आप ही मुस्कुराते और उत्साहित हो अपना उत्तर टाइप करते रहते हैं। इस प्रक्रिया से व्यक्ति का नज़रों से दूर बैठे व्यक्तियों से संपर्क बढ़ा है, पर नज़रों के सामने आसपास और पड़ोस के व्यक्तियों से बहुत ही कम हो गया है। इसे वर्टिकल यूनिटी बढ़ने और हॉरिजॉन्टल यूनिटी घटने के रूप में भी समझा जा सकता है।
खैर बात सोशल मीडिया के दौर में रूठने, मनाने और मान जाने की हो रही थी, तो उसी पर लौटते हुए कह सकते हैं कि आजकल पट दोस्ती और चट नाराज़गी का दौर भी चलने लगा है। अक्सर दोस्त किसी विषय को लेकर बहस में उलझते रहते हैं। फटाफट संदेशों के छक्के लग रहे होते हैं। मित्रता है तो अनोपचारिकता भी होगी और थोड़ी बहुत टांग खिचाई भी चलेगी। बस यही समय होता है कि कोई भाई कुछ कह कर या बिना कहे ही ‘लेफ्ट’ हो जाता है, यानि ग्रुप छोड़ जाता है। जो बिना कहे छोड़ जाते हैं, उनके बारे में पहले तो यही समझा जाता है कि उनसे कोई ग़लत बटन दब गया होगा तो उन्हे ‘इन्वाइट रिक्वेस्ट’ भेज कर अक्सर मना लिया जाता है।
जो मेसेज छोड़ कर अपनी नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए चले जाते हैं, उन्हे मनाने का दौर शुरू होता है, जो चंद घंटे या चंद दिनों तक चल सकता है। आने वाले अक्सर आ जाते हैं पर उनका पुराना जोश वापिस नहीं आता या फिर उसे आने में लंबा समय लग जाता है।
नाराज़गी का अक्सर कारण फरवार्डेड मेसेज होते हैं यानि ऐसे संदेश जो हमारे पास कहीं से आते हैं और हम बिना कुछ गंभीर विचार के उसे अपने ग्रुप में धकेल देते हैं जहां कोई मित्र उस पर आपत्ति उठा देता है और इस बहसबाजी में कोई न कोई नाराज़ हो ग्रुप छोड़ जाता है। ये उड़ते फिरते मेसेज कई दोस्तियां खराब कर जाते हैं। इनसे बचना जरूरी है। यह न सोचें कि आप यह कह कर बच जाएंगे कि आपने तो केवल फॉरवर्ड किया था। आपकी कानूनी ज़िम्मेदारी भी उतनी ही है जितनी उस व्यक्ति की जिसने वह आपत्तिजनक मेसेज बनाकर पहली बार भेजा था। भेजने का सीधा मतलब है आप सहमति के साथ वह संदेश आगे भेज रहे हैं। आप निरपेक्ष नहीं हो सकते। सावधान रहिए। मित्रों को नाराज़ न करें।
आइए अब लगे हाथ पुराने ज़माने में रूठने, मनाने और मान जाने की बात करते हैं। यह अदा अक्सर युवा प्रेमियों में देखी जाती थी। अक्सर प्रेमिका नाराज़ होती थी और प्रेमी उसे मनाता था। आपने वह गाना तो सुना होगा,
‘रूठ कर पहले उनको सताऊंगी मैं, जब मनाएंगे तो मान जाऊंगी मैं…..’
ऐसा रूठना केवल नखरे दिखाने की अदा होती है। ऐसी अदाओं से प्रेम गहरा होता है। और बानगी देखिए…
‘तुम रूठी रहो,
मैं मनाता रहूं,
तो मज़ा जीने का
और आ जाता है…’
या फिर,
‘देखो रूठा न करो,
बात नज़रों की सुनो,
हम न बोलेंगे कभी,
तुम सताया न करो..’
और यह भी,
‘अजी, रूठ कर अब
कहां जाएगा,
जहां जाइयेगा,
हमें पाएगा….’
पंजाबी के शीर्ष कवि प्रो मोहन सिंह की एक कविता में प्रेमिका लंबे समय बाद लौटने वाले अपने प्रेमी से नाराज़ हो रूठने का मन बनाती है पर जब वो सामने आता है, तो खिड़ खिड़ हंस पड़ती है…
एक और बात। कभी किसी एक के रूठने पर दूसरे को भी नहीं रूठ जाना चाहिए। वो गीत है ना….
‘असिं दोवें रूस जाईए,
ते मनाऊ कौन वे…’
लगता है रूठने का अधिकार जैसे महिलाओं का ही एकाधिकार है। तभी तो हमारे पिताजी बचपन में हमें धमकाते हुए कहते थे, ‘क्यों औरतों की तरह टसुए बहा रहा है’।
बस ऐसी ही बातों से हम रोना भूलते गए और पत्थर दिल बनते गए। औरतों के दिल आज भी ज़्यादा मानवीय हैं। वे झट से आंसू बहा मन हल्का कर लेती हैं।
एक बात और बताऊं। हमारे गांव में लड़के की शादी के वक्त भाई बंधुओं के रूठने का बड़ा रिवाज़ था। लड़के का पिता साथियों और बुजुर्गों को लेकर नाराज़ व्यक्ति को मनाने जाता था। उसकी शिकायत सुनता था। हाथ जोड़ कर सब बातों की माफी मांगता था। यह ज़रूर कहता था, ‘भाई, तेरे भतीजे का ब्याह है और तुझे ही करना है। तेरे बिना मैं कुछ नहीं कर सकता’। बस इतनी सी बात पर सारे गिले शिकवे फुर्र हो जाते थे। फिर तो नाराज़ हुआ व्यक्ति ही सबसे आगे शादी के प्रबंध देखता था।
कहां गए वो दिन जब कहते थे, ‘फटे को सीये नहीं,
और रूठे को मनाएं नहीं,
तो काम कैसे चलेगा!’
आजकल कोई पूछता भी नहीं कि शादी में कोई आया भी कि नहीं…
आखिर में मैं यह भी बताता चलूं कि एक दो बार मेरा भी मन किया है कि मैं यह ग्रुप ‘लेफ्ट’ कर दूं। पर फिर खयाल आया कि अगर किसी ने न मनाया तो फिर क्या होगा। कोई कह सकता है, ‘गुड रिडैंस यानि अच्छा हुआ, छुटकारा मिला’।
यह तो बड़ी मुसीबत हो जाएगी। इतने प्यारे, इतने सारे दोस्तों को छोड़ कर जाने पर। बस इसी ख्याल से नाराज़गी का घूंट पी कर हम चुप रहते हैं। यारों को पता भी नहीं लगने देते कि हम नाराज़ हुए थे।
और फिर दो चार दिन में ऐसा मौका आता है कि हम खिड़ खिड़ हंस पड़ते हैं।
या फिर कोई लेख लिख लेते हैं।
तो मित्रो, रूठिए मत, कोई रूठ जाए तो मनाते रहिए और मान जाते रहिए…
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण कविता ‘जीतने वाले….’).
☆ कविता # 108 ☆ जीतने वाले.... ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय☆
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी नवरात्रि पर्व पर विशेष कविता “# दीपोत्सव मनाएं #”।)
सवत्सधेनू पुजनाने दिवाळी सुरू जाहली आज ज्योत ज्योतीने चला लाऊया आसमंत उजळे प्रकाशात
– नीलांबरी शिर्के
? || शुभ दीपावली || ?
सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे
१ नोव्हेंबर – संपादकीय
आज १ नोव्हेंबर — बुद्धिवादी, विज्ञानवादी समाजसुधारक आणि सामाजिक कार्यकर्ते श्री. नरेंद्र दाभोळकर यांचा जन्मदिन. ( ०१/११/१९४५ – २०/०८/२०१३ )
अघोरी सामाजिक प्रथांच्या आणि अंधश्रद्धांच्या निर्मूलनासाठी श्री. श्याम मानव यांनी १९८२ साली स्थापन केलेल्या “ अखिल भारतीय अंधश्रद्धा-निर्मूलन समिती “ या संघटनेसोबत शेवटपर्यंत काम केलेल्या श्री. नरेंद्र दाभोळकर यांनी, १९८९ साली “ महाराष्ट्र अंधश्रद्धा-निर्मूलन समिती “ची स्थापना केली, आणि ‘ संस्थापक-अध्यक्ष ‘ म्हणून अखेरपर्यंत या समितीची धुरा अतिशय समर्थपणे सांभाळली. याच संदर्भातल्या त्यांच्या विचारांना आणि त्याला अनुसरून केलेल्या कार्याला अधोरेखित करणारी बरीच पुस्तके त्यांनी लिहिलेली आहेत, जी नावाजलेल्या प्रकाशकांनी प्रकाशित केलेली आहेत.—- ‘ अंधश्रद्धा : प्रश्नचिन्ह आणि पूर्णविराम ‘, अंधश्रद्धा विनाशाय ‘, ‘ ऐसे कैसे झाले भोंदू ‘, ‘ ठरलं– डोळस व्हायचंय ‘, ‘ तिमिरातुनी तेजाकडे ‘, ‘ विचार तर कराल ?’, ‘ भ्रम आणि निरास ‘, ‘ मती-भानामती ‘, अशी त्यांची पुस्तके प्रसिद्ध आहेत. “ प्रश्न तुमचे -उत्तर दाभोळकरांचे “ या शीर्षकाने त्यांच्या सविस्तर मुलाखतीची, म्याग्नम ओपस कं. ने काढलेली डी. व्ही .डी. म्हणजे त्यांच्या व्यक्तिमत्वाचा एक वेगळाच आविष्कार म्हणावा लागेल. ऑगस्ट २०१३ मध्ये झालेल्या त्यांच्या निर्घृण हत्येचा निषेध, महाराष्ट्र अं.नि.स. च्या लोकरंगमंचच्या कार्यकर्त्यांनी ‘ रिंगणनाट्य ‘ या माध्यमातून सनदशीर आणि सर्जनशील मार्गाने केला, जो अतिशय प्रभावी ठरला.
श्री. दाभोळकर यांना रोटरी क्लबचा “ समाज गौरव “ पुरस्कार, दादासाहेब साखवळकर पुरस्कार, पुणे विद्यापीठाचा “ साधना जीवनगौरव पुरस्कार “( मरणोत्तर ) अशासारख्या पुरस्कारांच्या जोडीने, भारत सरकारतर्फे “ पद्मश्री “ ( मरणोत्तर ) पुरस्कार देऊन गौरवण्यात आले आहे. तसेच, अमेरिकेतल्या ‘ महाराष्ट्र फौंडेशन ‘ने, त्यांच्यातर्फे सुरु करण्यात आलेला समाज गौरव पुरस्कार सर्वप्रथम ‘ अंधश्रद्धा निर्मूलन समिती ‘ला दिला होता. याबरोबरच विशेषत्वाने सांगण्यासारखी आणखी एक गोष्ट म्हणजे, न्यूयॉर्कच्या महाराष्ट्र फौंडेशनने २०१३ सालापासून, एखाद्या समाजहितार्थ कार्याला वाहून घेणाऱ्या व्यक्तीला “ डॉ. नरेंद्र दाभोळकर स्मृती पुरस्कार “ देण्यास सुरुवात केली आहे.
एका वेगळ्याच पण महत्वाच्या वाटेवर आयुष्यभर निकराने चालत राहिलेल्या श्री. दाभोळकर यांना कृतज्ञतापूर्वक सलाम… ?
☆☆☆☆☆
आज कवी अरुण बाळकृष्ण कोलटकर यांचाही जन्मदिन. ( १०/११/१९३२ – २५/०९/२००४ )
मराठी, हिंदी आणि इंग्रजी या तिन्ही भाषांमध्ये कविता करण्याची हातोटी असणारे कवी अशी श्री. कोलटकर यांची ख्याती होती. १९६० च्या दशकात त्यांनी केलेल्या कविता, खास मुंबईतल्या विशिष्ट अशा मराठी बोलीभाषेतल्या होत्या, ज्यात मुंबईत आलेल्या निर्वासितांच्या आणि गुन्हेगारीच्या विश्वात अडकलेल्या गुन्हेगारांच्या आयुष्याचे प्रकर्षाने दर्शन घडते— मै भाभीको बोला / क्या भाईसाहबके ड्युटीपे मै आ जाऊ ?/ रेहमान बोला गोली चलाऊंगा /– अशासारख्या त्यांच्या कविता इथे उदाहरणादाखल सांगता येतील. मराठी आणि इंग्रजी या दोन्ही भाषेतल्या त्यांच्या कवितांचे संग्रह प्रकाशित झालेले आहेत, ते असे — मराठी कवितासंग्रह — अरुण कोलटकरच्या कविता, चिरीमिरी, द्रोण, भिजकी वही, अरुण कोलटकरच्या चार कविता. —इंग्रजी कवितासंग्रह –जेजुरी, काळा घोडा पोएम्स, सर्पसत्र, द बोटराइड अँड अदर पोएम्स, कलेक्टेड पोएम्स इन इंग्लिश.— यापैकी “ जेजुरी “ ही त्यांची अतिशय प्रसिद्ध साहित्यकृती ठरली होती.
श्री. कोलटकर यांना साहित्य अकादमी पुरस्कार, कुसुमाग्रज पुरस्कार, बहिणाबाई पुरस्कार, १९७६ सालचा राष्ट्रकुल काव्य पुरस्कार असे मानाचे पुरस्कार प्राप्त झाले होते. “ शब्द “ या लघुनियतकालिकाचे सहसंपादक म्हणूनही त्यांनी कार्यभार सांभाळलेला होता.
या जोडीनेच श्री. कोलटकर हे एक उत्तम ग्राफिक डिझायनर आणि जाहिरात क्षेत्रातील अत्यंत यशस्वी कला-दिग्दर्शक म्हणूनही प्रसिद्ध होते हे आवर्जून सांगायला हवे.
श्री. अरुण कोलटकर यांना आजच्या त्यांच्या जन्मदिनी मनापासून आदरांजली. ?
☆☆☆☆☆
आज श्रीमती योगिनी जोगळेकर यांचा स्मृतिदिन. ( ६/८/१९२५ — १/११/२००५ )
या एक नावाजलेल्या मराठी लेखिका, कवयित्री आणि शास्त्रीय गायिका होत्या. त्यांनी काही वर्षे शिक्षिका म्हणूनही काम केले होते. याव्यतिरिक्त, राष्ट्रसेविका समितीच्या माध्यमातून त्यांनी उल्लेखनीय असे पुष्कळ समाजकार्यही केले होते.
त्यांची एकूण ११६ पुस्तके प्रकाशित झालेली आहेत, ज्यामध्ये ५० कादंबऱ्या, ४० कथासंग्रह, कवितासंग्रह, बालकवितासंग्रह, अशा विपुल आणि वैविध्यपूर्ण साहित्याचा समावेश आहे. “ या सम हा “ ही गायनाचार्य भास्करबुवा बखले यांच्यावर लिहिलेली कादंबरी, आणि, “ रामप्रहर “ ही प्रसिद्ध गायक श्री. राम मराठे यांच्यावर लिहिलेली कादंबरी, अशा त्यांच्या दोन कादंबऱ्या विशेष उल्लेखनीय ठरल्या, आणि प्रचंड प्रसिद्ध झाल्या. त्यांची – असंग, उमाळा, मौन, घरोघरी, ऋणानुबंध, कुणासाठी कुणीतरी, नादब्रह्म, अश्वत्थ,अशी किती प्रसिद्ध पुस्तके सांगावीत ? ‘ मधुर स्वरलहरी या ‘, सखे बाई सांगते मी ‘, ‘ हरीची ऐकताच मुरली’, हे सागरा नीलांबरा ‘, अशी त्यांनी लिहिलेली गीतेही खूप गाजली.
“पहिली मंगळागौर “ या त्या काळी गाजलेल्या मराठी चित्रपटासाठी त्यांनी पार्श्वगायन केले होते.
‘शास्त्रीय गायिका ‘ म्हणूनही नावाजलेल्या योगिनीताईंनी वयाच्या आठव्या वर्षांपासून शास्त्रीय संगीत शिकण्यास सुरुवात केली होती. शंकरबुवा अष्टेकर, राम मराठे, संगीतकलानिधी मास्टर कृष्णराव फुलंब्रीकर असे मातब्बर गुरू त्यांना लाभले होते. डॉ. भालेराव स्मृती पुरस्काराच्या त्या मानकरी ठरल्या होत्या. त्यांच्याबद्दल विशेषत्वाने सांगायला हव्यात अशा दोन गोष्टी म्हणजे— रायगडाच्या पायथ्याशी त्यांच्या कवितेच्या ओळी संगमरवरात कोरून लिहिलेल्या आहेत. आणि त्यांच्या स्मरणार्थ त्यांच्या कुटुंबीयांनी “ अक्षरयोगिनी “ हा देवनागरी युनिकोड फॉन्ट उपलब्ध करून दिलेला आहे.
अशाप्रकारे वेगवेगळ्या क्षेत्रात आपला ठसा उमटवून गेलेल्या श्रीमती योगिनी जोगळेकर यांना त्यांच्या आजच्या स्मृतिदिनी भावपूर्ण श्रद्धांजली. ?
☆☆☆☆☆
सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे
ई – अभिव्यक्ती संपादक मंडळ
मराठी विभाग.
संदर्भ : – १) कऱ्हाड शिक्षण मंडळ “ साहित्य-साधना दैनंदिनी. २) माहितीस्रोत — इंटरनेट
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे ≈