हिन्दी साहित्य – व्यंग्य ☆ मलिहाबाद की आमसभा ☆ श्री तीरथ सिंह खरबंदा ☆

श्री तीरथ सिंह खरबंदा

(ई-अभिव्यक्ति में सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार श्री तीरथ सिंह खरबंदाजी का हार्दिक स्वागत। आपने विधि विषय में पीएच.डी की उपाधि प्राप्त की है। व्यंग्य लेखन के क्षेत्र में सतत सक्रिय, विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में नियमित लेखन-प्रकाशन तथा हलफनामा, इक्कीसवीं सदी के अंतरराष्ट्रीय श्रेष्ठ व्यंग्यकार एवं हमारे समय के धनुर्धारी व्यंग्यकार, साझा संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित। वर्ष 2023 में पहला व्यंग्य संग्रह “सुना है आप बहुत उल्लू हैं” प्रकाशित हुआ। वर्ष 2024 में दूसरा व्यंग्य संग्रह “झूठ टोपियाँ बदलता रहा” प्रकाशित हुआ। वर्ष 2022 में भारतीय स्टेट बैंक द्वारा स्पंदन साहित्य सम्मानसंप्रति : इंदौर में विधि एवं साहित्य के क्षेत्र में सतत सक्रिय। आज प्रस्तुत है आपका एक अप्रतिम व्यंग्य – मलिहाबाद की आमसभा।)

☆ व्यंग्य ☆ मलिहाबाद की आमसभा ☆ श्री तीरथ सिंह खरबंदा ☆

आज मलिहाबाद के आमबाग में पहली आमसभा होने जा रही थी। यह आमतौर पर होने वाली किसी नेता की आमसभा से अलग थी। सही अर्थों में यह एक अनूठी और सच्ची आमसभा थी। इस आमसभा की अध्यक्षता का दायित्व सहारनपुर से पधारे हाथीझूल आम के मजबूत कंधों पर डाला गया था। जिन्हें लोग प्यार से नूरजहां कहकर भी बुलाते थे। यह एक अकेला आम चार-पाँच किलो पर भी भारी था। अनूठे डील-डौल वाला उसका व्यक्तित्व अध्यक्ष पद के सर्वथा अनुकूल और प्रभावशाली था। मंचासीन, कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि सिंदूरी आम मंच की शोभा बढ़ाने के साथ ही चर्चा का भी विषय बने हुए थे।

अध्यक्ष ने आमबाग की महती आमसभा को संबोधित करते हुए कहा – साथियों हम यह बात हमेशा याद रखें कि- हम सबकी, पहली और असली पहचान है कि हम सब आम हैं। हममें कोई भी खास नहीं है।

हमारी दूसरी असल पहचान है कि हम सब एक हड्डी से बने जीव हैं इन्सानों की रीढ़ से कहीं ज्यादा मजबूत हमारी एक ही हड्डी है। यदि हम गुणों की बात करें तो दुनिया में हमारा मीठापन हमारी मूल पहचान है। हम इस दुनिया में अपने गुणों के कारण ही जाने और पहचाने जाते हैं और इसी की बदौलत दुनिया में हमारा मान है।

यह हमारी पहली आमसभा है। अभी तक हमने इन्सानों की जनसभाओं के बारे में सुना था जिसे वे आमसभा कहते नहीं थकते हैं। दरअसल वे अभी तक हमारे नाम का दुरुपयोग कर लोगों को भ्रमित करते रहे हैं।

दुनिया भर में हमारी सैकड़ों जातियाँ-प्रजातियाँ पाई जाती हैं और पता नहीं कितनी ही जंगली और बीजू प्रजातियाँ भी हमारे वृहद परिवार का एक अटूट हिस्सा हैं। किन्तु हमें गर्व है कि हमारी अलग-अलग, जातियां-प्रजातियां होने के बावजूद हम सबकी राशि और गुण एक समान हैं। हम यूं ही फलों के राजा नहीं कहलाते हैं। हम हमारी मिठास और खुशबू के कारण दुनिया में जाने जाते हैं। हमारा इतिहास जितना पुराना है उससे कहीं ज्यादा वह मीठा और सरस है।

हमारे इस वृहद्द परिवार के कुछ सिद्धान्त हैं – पहला सिद्धान्त है कि हम रंगों के आधार पर आपस में कभी कोई भेदभाव नहीं करते हैं। जहां हरा रंग हमारी प्रथम पहचान है वहीं पीला, केसरिया और सिंदूरी रंग हमारे व्यक्तित्व का अभिन्न हिस्सा है। हमारे सारे रंग अपने गुणों में समाहित होकर एकरंग हो जाते हैं।

हमारा दूसरा सिद्धान्त है कि हम वर्ण भेद एवं नस्ल भेद में बिल्कुल विश्वास नहीं रखते हैं। क्षेत्रवाद शब्द हमारे शब्दकोश में नहीं है। हमारे बीच जो भी जातियाँ और प्रजातियाँ बनी हैं, वे सभी इन्सानों की बनाई हुई हैं। उन्होंने ही हमें अलग-अलग नाम दिए हैं। किन्तु याद रहे जन्म से हम सभी सिर्फ आम हैं और आम ही रहेंगे। हममें से कोई कभी भूलकर भी खास बनने का विचार नहीं करेगा।

आज की इस आमसभा में देश-दुनिया के अलग-अलग भागों से आए प्रतिनिधि बड़ी संख्या में शामिल हुए हैं। आज हमारे बीच जापान से पधारे मियाजाकी जी एवं गुजरात से आए केसरिया जी की सुगंध सारे वातावरण को महका रही है। कुरनूल से बंगिनापल्ली, महाराष्ट्र से रत्नागिरि, बिहार से चौसा, कर्नाटक से रसपुरी, पश्चिम बंगाल एवं उड़ीसा के प्रतिनिधि हिमसागर, बिहार से मालदा, उत्तरप्रदेश से लंगड़ा एवं दशहरी, लखनऊ से सफेदा, के अलावा फजली, बंबई ग्रीन, नई पीढ़ी के मल्लिका, आम्रपाली, रत्ना, अर्का अरुण, अर्मा पुनीत, अर्का अनमोल, पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद की मशहूर किस्में किशन भोग, हिमसागर नवाबपसंद एवं बेगमपसंद भी इस सभा में शिरकत कर रहे हैं, अपने नाम से अंग्रेज़ियत की महक देने वाले अल्फ़ान्सो (हाफूस) रत्नागिरी महाराष्ट्र से आए एक कीमती आम हैं। दक्षिण भारत से पधारे लोकप्रिय तोतापुरी आम तोते जैसी चोंच के कारण अपनी अलग विशिष्ट पहचान रखते हैं। मंचासीन सिंदूरी जी अपने सौंदर्य के कारण अलग ही चमक रहे हैं। बादामी जी की सादगी देखते ही बनती है। इसके अलावा भी कई किस्में स्थानीय प्रतिनिधि के रूप में आज की आमसभा में शामिल हुई हैं।

हमारे सभी साथी अपनी अलग-अलग मौलिक पहचान रखते हुए भी आखिर में सभी सिर्फ आम हैं। आम ही हमारा धर्म है आम ही हमारा नाम है। हममें से हरेक का अपना स्वाद और अपनी फैन फॉलोइंग है। हम सब आपस में कजिंस हैं। हम आप सभी का खटमिट्ठा, रसभरा स्वागत करते हैं।

यद्यपि हमारा स्वभाव बाल्यपन तक थोड़ा खट्टा होता है किन्तु समय के साथ हम इस खट्टेपन को भूल मिठास को अपना लेते हैं। हालांकि इन्सानों ने हमारे खट्टेपन के भी खूब चटकारे लिए। हमारे कटे पर नमक, मिर्च और विविध मसाले लगाकर फिर हमें तेल में डुबोकर वे उसके चटकारे लेते रहे। हमारा अचार बनाकर और खाकर वे अत्यंत प्रसन्न होते। अपनी जुबान के स्वाद के लिए हमारी चटनी बनाने से भी वे नहीं चूके।

हमारे नाजुक शरीर को आग पर उबालकर अथवा तपा कर वे तरह तरह के पेय एवं खाद्य पदार्थ बनाते हैं। जिसके उन्होंने झोलिया, पना, लौंजी जैसे अजीबोगरीब नामकरण किए हैं। आप सभी जानते हैं कि चतुर इंसान प्रजाति ने हमारा कितना दोहन किया है। उसने हमें बाज़ार दिया और अपने आर्थिक हित साधने के लिए आम के आम और गुठलियों के दाम तक वसूले।

मौसम आए जब हम पर भरपूर यौवन चढ़ता है तब इंसान हमें अपनी ललचाई आँखों से निहारते, हमें पाने के लिए अत्यंत लालायित रहते हैं। हमें देखते ही उनके मुंह में पानी भर आता है। वैसे खुदगर्ज इन्सानों ने हमेशा अपनी पसंद अनुसार या तो हमें चूसा है या फिर काटा है। किन्तु हम चाहे चूसे गए अथवा काटे गए, हमने अपना मूल गुण कभी नहीं छोड़ा और अपनी मिठास से कभी कोई समझौता नहीं किया। जबकि इंसान हमारे गुणों की कद्र करने के बजाए हमेशा हमारा मोल भाव करते रहे हैं।

आम बनते ही हमारी धमनियों में मीठा रस प्रवाहित होने लगता है। जो प्राणियों की रसना पर चढ़कर उन्हें परम आनंद की अनुभूति करवाता है। जब-जब आम चूसा जाता है तब-तब क्या आम और क्या खास सब उसका आनंद उठाते हैं।

लालच में डूबे इन्सानों ने हमें समय से पहले जवान करने के चक्कर में तरह तरह के केमिकल इस्तेमाल करके हमें असमय ही बूढ़ा कर दिया। ऐसे में उन्होंने अपनी प्रजाति का भी ध्यान न रखा। उनसे कीमत लेकर बदले में उन्हें मीठी किन्तु खतरनाक बीमारियाँ दे डालीं। पैसे के लालच में इंसान खुद तो विदेशों की ओर पलायन करने लगे साथ ही हमें भी विदेशों में निर्यात करना शुरू कर दिया।

बड़े बड़े राजा, महाराजा और शंहशाह तक हमें बहुत पसंद करते और हमारी प्रशंसा करते न थकते थे। ये सब इसलिए नहीं था कि हम कुछ खास थे दरअसल हमने अपना आमपन कभी नहीं छोड़ा था। वे एक दूसरे को अक्सर हमें उपहार में देते। हमने कई बार उनके संबंधों के बीच की खाइयों को पाटकर उनके संबंध मधुर बनाने में पुल का काम किया। हम हमारी भरपूर प्रशंसा से भी कभी विचलित न हुए, और अपना मूल स्वभाव कभी नहीं बदला।

समय समय हम पर कई हमले हुए, हमारी नस्लों को बदलने की साजिश भी कुछ कम न हुई। हमने कभी किसी को छोटा या बड़ा न समझा। हम सभी हमेशा वक्त की तराजू पर तोले गए। यदि इन्सानों ने हमें तोलने में भी बेईमानी की हो तो यह उनका कर्म है। उनमें और हममें एक खास अंतर है कि हम अंदर से मीठे हैं और वे सिर्फ बाहर से, जुबान के मीठे हैं। पहले कभी हमारी कीमत हमारी संख्या से लगाई जाती थी किन्तु अब वे दिन हकीकत नहीं रह गए, अब हमारी कीमत हमारे गुणों से तय होती है। किन्तु इन्सानों की कीमत अब गुणों की बजाए संख्या से तय होने लगी है।

हम बेर के आकार से लेकर मेरे जैसे विशाल आकार के भी पाए जाते हैं किन्तु अनेक किस्में होने के बावजूद हमारे बीच कोई बैर नहीं है। यह सुनकर उपस्थित सभी आम मंद-मंद मुस्कुराने लगे और गर्व से भर गए।

हम जहाँ एक ओर कुलीन वर्ग के भोजन की शोभा बने। वहीं दूसरी ओर हम गरीबों की पहुँच से भी कभी बाहर नहीं रहे। हमने कभी किसी को भी हमारी कमी महसूस नहीं होने दी।

यद्यपि हमें कुछ अँग्रेजी नाम देकर हमारी संस्कृति पर हमला भी किया गया। अपने अँग्रेजी नाम के बल पर रौब गालिब करना इन्सानों की दुनिया में चलता होगा आम की दुनिया में यह खास नहीं चल पाता है। ऊपर वाले ने हमें आम बनाया है इसलिए उसके न्याय पर भरोसा रखें और आम ही बने रहें आम से खास बनने की इन्सानों की फ़ितरत से हमेशा दूर रहें। हमारा परम सौभाग्य है कि प्रकृति ने हमें मिठास दी है। अतः हमारा फर्ज़ है कि हम दुनिया में हमेशा मिठास बाँटकर उसका शुक्रिया अदा करें।

©  श्री तीरथ सिंह खरबंदा

ई-मेल : tirath.kharbanda@gmail.com

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

Please share your Post !

Shares

सूचना/Information ☆ संपादकीय आवाहन ☆ सम्पादक मंडळ – ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

सूचना/Information 

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

📖  संपादकीय आवाहन 📖

आपण देत असलेल्या उत्तम प्रतिसादाबद्द्ल सर्व साहित्यिकांचे मनःपूर्वक आभार! विषयांची विविधता असूनही आपण सर्वजण उत्साहाने लिहीत असता. त्यामुळे भरपूर साहित्य प्राप्त होते.

आम्हाला येणा-या अडचणी लक्षात घेऊन आम्ही आपणाला काही सूचना करू ईच्छितो. त्याचा विचार करावा ही विनंती:

  1. आपले साहित्य पाठवण्यापूर्वी शुद्धलेखन तपासून पहावे.
  2. आपले साहित्य विशिष्ट दिवशी किंवा त्या दरम्यान यावे यासाठी पुरेश्या कालावधीपूर्वी पाठवावे. पुढील आठ दिवसांचा आराखडा तयार असतो. त्यात ऐन वेळेला बदल करणे शक्य होत नाही.
  3. एकाच विषयावर अनेक लेख, कविता आल्यानंतर साधारणपणे प्रथम आलेले साहित्य प्रथम प्रकाशित होईल.
  4. कविता पाठवताना एकाच विषयावर एकाच वेळेला अनेक कविता पाठवू नयेत.
  5. कोणते साहित्य कोणाकडे पाठवायचे यासंबंधी पूर्वी सूचना दिल्या आहेत. त्यांचे काटेकोरपणे पालन करावे. एकच साहित्य संपादक मंडळातील सर्वांकडे पाठवू नये, ही विनंती.

येणा-या अडचणी लक्षात घेऊन या सूचना केल्या आहेत. तरी कोणतेही गैरसमज करून न घेता सहकार्य करावे ही विनंती.

– संपादक मंडळ

ई – अभिव्यक्ती, मराठी विभाग

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

हिन्दी साहित्य – साक्षात्कार ☆ डॉ मधुसूदन पाटिल : आलोचना कौन बर्दाश्त करता है? ☆ श्री कमलेश भारतीय और डॉ मनोज छाबड़ा

Please share your Post !

Shares

सूचनाएँ/Information ☆ प्रख्यात प्रवासी साहित्यकार श्री रामदेव धुरंधर (मॉरीशस) के जन्मदिवस पर भारत में विशेष आयोजन ☆ साभार – श्री राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’ ☆

☆ सूचनाएँ/Information ☆

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

☆ प्रख्यात प्रवासी साहित्यकार श्री रामदेव धुरंधर (मॉरीशस) के जन्मदिवस पर भारत में विशेष आयोजन ☆ साभार – श्री राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’ ☆

हिंदी गद्य साहित्य के प्रख्यात साहित्यकार, कथाकार नाट्यकार एवं उपन्यासकार श्री रामदेव धुरंधर (मॉरीशस) के जन्मदिन पर युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच (उप्र इकाई) एवं डिप्लोमा फार्मेसी एसोसिएशन (आगरा इकाई) के सौजन्य से साहित्यिक संगोष्ठी का आयोजन। 

आगरा। आज दिनांक 11 जून 2025 (सांय 6:30) को युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच उत्तर प्रदेश इकाई एवं डिप्लोमा फार्मेसी एसोसिएशन आगरा इकाई के सौजन्य से श्री रामदेव धुरंधर जी (मॉरीशस) के 79वां जन्मदिवस के अवसर पर एक साहित्यिक संगोष्ठी का आयोजन आगरा स्थित होटल बेडवाइजर (नियर शिल्पग्राम, ताज नगरी आगरा) में किया गया है।

श्री धुरंधर ही के जन्मदिन के इस अवसर अवध भारती साहित्य संस्थान के संस्थापक अध्यक्ष एवं अवधी – हिंदी के प्रख्यात साहित्यकार डॉ. राम बहादुर मिश्र जी ने युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच के प्रांतीय अध्यक्ष राजेश कुमार सिंह श्रेयस को सुखद जानकारी देते हुए बताया कि लघुभारत मॉरीशस में रहकर हिंदी की सेवा करने वाले प्रवासी साहित्यकार श्री रामदेव धुरंधर जी के उपन्यास “ढलते सूरज की रोशनी” को अवध विश्वविद्यालय अयोध्या ने अपने पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया है। यह श्री धुरंधर जी के जन्मदिन पर विश्वविद्यालय एवं भारतीय हिंदी जगत द्वारा प्रदान किया गया एक उपहार सदृश्य है।

श्री राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’

इस अवसर पर युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच उत्तर प्रदेश इकाई के प्रांतीय अध्यक्ष श्री राजेश कुमार सिंह श्रेयस ने मंच के पदाधिकारी एवं सदस्यों की तरफ से श्री रामदेव धुरंधर जी के जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएं प्रेषित करते हुए बताया कि आज इस पावन अवसर पर ताज नगरी आगरा में एक साहित्यिक संगोष्ठी का आयोजन भी किया जाएगा।

इस साहित्यिक संगोष्ठी का विषय है “भेषजज्ञ के भीतर का साहित्यकार”। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता डिप्लोमा फार्मेसी एसोसिएशन उत्तर प्रदेश के पूर्व संस्थापक अध्यक्ष डॉ जितेंद्र कुमार जैन करेंगे, वही कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में वरिष्ठ चीफ फार्मासिस्ट एवं प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार श्री राजेश कुमार सिंह श्रेयस सवा साहित्य की चर्चा के साथ-साथ श्री रामदेव धुरंधर जी के रचना संसार पर विस्तृत रूप से प्रकाश डालेंगे।

कार्यक्रम के आयोजक डिप्लोमा फार्मासिस्ट एसोसिएशन के प्रांतीय संगठन मंत्री एवं उत्तर प्रदेश फार्मेसी काउंसिल के सदस्य डॉ. रविंद्र सिंह राणा ने उपरोक्त कार्यक्रम के विषय में अवगत कराते हुए बताया कि एक चीफ फार्मासिस्ट के रूप में अपनी सेवा सेवाएं देने वाले राजेश कुमार सिंह श्रेयस जी की साहित्यिक उपलब्धियों पर संगठन एवं पूरा फार्मासिस्ट समाज गर्व करता है। डॉ रविंद्र सिंह राणा ने बताया कि श्री राजेश कुमार सिंह ” श्रेयस ” द्वारा के द्वारा लिखें गए अन्य साहित्यिक ग्रंथो के अतिरिक्त अब तक प्रकाशित उनके दोनों उपन्यास (तुमसे क्या छुपाना एवं चाक सी नाचती जिंदगी) मानव स्वास्थ्य के प्रति जन जागरूकता का सन्देश देने वाले स्वयं में विशेष अद्वितीय साहित्यिक उपन्यास है। क्षय मुक्त भारत की संकल्पना पर आधारित श्री राजेश कुमार सिंह श्रेयस कृत उपन्यास को वर्ष 2023 में राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान उत्तर प्रदेश द्वारा श्याम सुंदर दास पुरस्कार (₹ 100000/-) से भी सम्मानित किया जा चुका है।

चीफ फार्मासिस्ट के रूप में अपनी सेवाएं देने वाले साहित्यकार फार्मासिस्ट श्री राजेश कुमार सिंह श्रेयस भारत सरकार के महत्वाकांक्षी क्षय उन्मूलन कार्यक्रम अंतर्गत क्षय मुक्त भारत 2025 के लिए अनवरत अपनी उल्लेखनीय सेवाएं दे रहे हैं। इस महान कार्य के लिए भी संगठन श्री सिंह के प्रति बार-बार कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए गौरव की अनुभूति कर रहा है।

श्री रामदेव धुरंधर जी के जन्मदिन की पूर्व संध्या पर श्री राजेश कुमार सिंह श्रेयस ने राज्य प्रशिक्षण एवं प्रदर्शन केंद्र आगरा के निदेशक को उनकी लाइब्रेरी के लिए अपनी कृतियां भेंट की l

हिंदी गद्य साहित्य के प्रख्यात साहित्यकार, कथाकार नाट्यकार एवं उपन्यासकार श्री रामदेव धुरंधर (मॉरीशस) के जन्मदिन पर युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच (उप्र इकाई) एवं डिप्लोमा फार्मेसी एसोसिएशन (आगरा इकाई) के सौजन्य से साहित्यिक संगोष्ठी का आयोजन। 

रिपोर्ट : डॉ रविंद्र सिंह राणा, आगरा, प्रांतीय संगठन मंत्री, डिप्लोमा फार्मेसी स्टेट एसोसिएशन उत्तर प्रदेश एवं सदस्य उत्तर प्रदेश स्टेट फार्मेसी काउंसिल।

🙏💐 ई-अभिव्यक्ति परिवार की ओर से श्री रामदेव धुरंधर जी को उनके जन्मदिवस पर अशेष हार्दिक शुभकमनाएं 💐🙏

♥♥♥♥

साभार : श्री राजेश कुमार सिंह “श्रेयस”

लखनऊ, उप्र, (भारत)

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

Please share your Post !

Shares

सूचना/Information ☆ संपादकीय निवेदन ☆ महत्वाची सूचना!! 📖 ☆ सम्पादक मंडळ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

सूचना/Information 

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

💐 संपादकीय निवेदन 💐

📖  दि. ५/६ ते ९/६/२५ अंक बंद असल्याबद्दल महत्वाची सूचना!! 📖

कृपया सर्वांनी नोंद घ्यावी – – 

गुरुवार दि. ५/६/२५ ते सोमवार दि. ९/६/२५ असे पाच दिवस काही अपरिहार्य तांत्रिक कारणामुळे आपल्या ई- अभिव्यक्तीचे दैनिक अंक प्रकाशित करता येणार नाहीत.

यासाठी सर्व लेखक / लेखिका, कवी / कवयित्री आणि तमाम वाचकवर्ग यांच्याप्रती आम्ही दिलगीर आहोत. मंगळवार दि. १०/६/२५ रोजी अंक नेहेमीप्रमाणे प्रकाशित होईल. आपणा सर्वांचे सहकार्य अपेक्षित आहे.

– संपादक मंडळ

ई – अभिव्यक्ती, मराठी विभाग

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

सूचनाएँ/Information ☆ व्यंग्यम् जबलपुर की मासिक व्यंग्य गोष्ठी सम्पन्न ☆ साभार – श्री रमाकांत ताम्रकार ☆

☆ सूचनाएँ/Information ☆

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

☆ व्यंग्यम् जबलपुर की मासिक व्यंग्य गोष्ठी सम्पन्न साभारश्री रमाकांत ताम्रकार

जबलपुर। संस्कारधानी में व्यंग्य में रुचि रखने वाले शहर के लब्धप्रतिष्ठ व्यंग्यकारों की उपस्थिति में व्यंग्यम् जबलपुर द्वारा मासिक व्यंग्य गोष्ठी का आयोजन किया गया।

गोष्ठी की शुरूआत व्यंग्यकार श्री रमाकांत ताम्रकार जी ने व्यंग्य गोष्ठी के संस्थापक स्व. जय प्रकाश पांडे जी के स्मरण से की। व्यंग्य पाठ की मासिक गोष्ठी में उपस्थित श्री राकेश सोहम जी ने बिन डाटा सब सून, श्री प्रतुल श्रीवास्तव जी ने  ज्योतिषाचार्यों की कैद में गृह नक्षत्र, श्री निरंजन द्विवेदी ‘वत्स’ जी ने व्यंग्य जमीर और उसूल बेचते हैं, श्री विजय नेमा ‘अनुज’ जी ने पराजय, आचार्य विजय तिवारी ‘किसलय’ जी ने विद्या वकील, श्री अभिमन्यु जैन जी ने खोटी नीयत, श्री विनोद खंडालकर जी ने रंगों में छिपा अंधविश्वास, श्री यशोवर्धन पाठक जी ने बस एक मिनट में, श्री सुरेश ‘विचित्र’ जी ने सब कुछ ठीक ठाक है, श्री रमाकांत ताम्रकार जी ने देवदूत तथा कार्यक्रम के यशस्वी अध्यक्ष डॉ. कुंदन सिंह परिहार जी ने गुस्ताख हँसी नामक व्यंग्यों का पाठ किया।

कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री सुरेश विचित्र ने किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता देश के प्रसिद्ध कथाकर एवं व्यंग्यकार प्रो. कुंदन सिंह परिहार जी ने की तथा आभार श्री प्रतुल श्रीवास्तव जी द्वारा व्यक्त किया गया।

साभार – श्री रमाकांत ताम्रकार, जबलपुर  

≈ श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

Please share your Post !

Shares

सूचना/Information ☆ महत्वपूर्ण सूचना – 5 जून से 9 जून तक प्रकाशन में विराम ☆ सम्पादक मंडल ई-अभिव्यक्ति ☆

सूचना/Information 

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

📖  महत्वपूर्ण सूचना – 5 जून से 9 जून तक प्रकाशन में विराम 📖

सम्माननीय लेखक एवं पाठक गण सादर अभिवादन,

कुछ तकनीकी कारणो से5 जून से 9 जून तक ई-अभिव्यक्ति के प्रकाशन में विराम रहेगा। 10 जून से ई-अभिव्यक्ति का प्रकाशन पुनः प्रारम्भ हो जाएगा। हम अभिभूत हूँ आपके अथाह प्रेम, स्नेह और ई-अभिव्यक्ति को इतना प्रतिसाद देने के लिए। 

आपके आत्मीय स्नेह के लिए पुनः हृदय से आभार। 💐🙏

सस्नेह

हेमन्त बावनकर 

संपादक (ई-अभिव्यक्ती)

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

सूचना/Information ☆ सम्पादकीय निवेदन – सौ अंजली दिलीप गोखले – अभिनंदन ☆ सम्पादक मंडळ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

सूचना/Information 

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

सौ अंजली दिलीप गोखले

💐 अ भि नं द न 💐

आपल्या समूहातील लेखिका सुश्री अंजली गोखले यांनी ‘ विज्ञान ‘ विषयावर आयोजित केलेल्या एका कथा स्पर्धेत भाग घेतलेला होता आणि डॉ. जयंत नारळीकर यांनी त्यांच्या कथेची दखल घेतल्याबद्दलचे स्वतः लिहिलेले पत्र त्यांच्या स्वाक्षरीसह अंजलीताईंना पाठवले होते. तेच हे पत्र…

या गोष्टीला आता जरी काही वर्षे उलटून गेली असली तरी पद्मविभूषण डॉ. नारळीकर यांचे हस्ताक्षर आणि स्वाक्षरी हा फक्त अंजलीताईंसाठीच नाही तर प्रत्येक भारतीयासाठी आता एक अनमोल ठेवा असणार आहे, यात दुमत असणार नाही असे खात्रीने म्हणावेसे वाटते. म्हणूनच अंजलीताईंना त्या स्पर्धेत प्रथम क्रमांक मिळालेली ही कथा आजच्या जीवनरंग सदरात प्रकाशित करत असतांना हे पत्रही आवर्जून प्रकाशित केले आहे. डॉ. नारळीकर यांना आपल्या सर्वांतर्फे पुन:श्च भावपूर्ण आदरांजली आणि अंजलीताईंचे मनःपूर्वक अभिनंदन.

संपादक मंडळ

ई अभिव्यक्ती मराठी

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

सूचना/Information ☆ संपादकीय निवेदन ☆ सुश्री गायत्री हेर्लेकर – अभिनंदन ☆ सम्पादक मंडळ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

सूचना/Information 

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

☆ सुश्री गायत्री हेर्लेकर ☆

💐 संपादकीय निवेदन 💐

💐 अभिनंदन! अभिनंदन!! 💐

आपल्या समुहातील ज्येष्ठ साहित्यिका सुश्री गायत्री हेर्लेकर यांची दोन पुस्तके नुकतीच प्रकाशित झाली आहेत. ‘सेल्फी’ हा लेखसंग्रह व ‘परतीचा पाऊस’ हा कथासंग्रह नागपूर येथे ‘आम्ही सिद्ध लेखिका’ समुहाच्या स्नेहसंमेलनात प्रकाशित झाले आहेत. यापूर्वी त्यांचा “बीज अंकुरे अंकुरे” हा कवितासंग्रह ही प्रकाशित झाला आहे.

त्यांच्या या साहित्यिक वाटचालीबद्दल ई अभिव्यक्ती परिवारातर्फे मन:पूर्वक अभिनंदन आणि शुभेच्छा. 💐

संपादक मंडळ, ई-अभिव्यक्ती (मराठी)

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

सूचना/Information ☆ संपादकीय निवेदन ☆ पद्मविभूषण डॉ. जयंत विष्णू नारळीकर – ॥भावपूर्ण आदरांजली॥ ☆ सम्पादक मंडळ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

सूचना/Information 

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

💐 पद्मविभूषण  डॉ. जयंत विष्णू नारळीकर 💐

(जन्म : १९ जुलै १९३८ / मृत्यू : २० मे २०२५)

🙏 संपादकीय निवेदन 🙏

💐 ॥ भावपूर्ण आदरांजली ॥ 💐

अखिल भारत देशाचे भूषण असणारे महाराष्ट्राचे सुपुत्र, विज्ञानयोगी, जगप्रसिद्ध खगोलभौतिकशास्त्रज्ञ पद्मविभूषण डॉ. जयंत विष्णू नारळीकर यांचे काल दु:खद निधन झाले. आपल्या ई-अभिव्यक्ती परिवारातर्फे डॉ. नारळीकर यांना अतिशय मनःपूर्वक श्रद्धांजली. 💐

डॉ. नारळीकर यांचा परिचय थोडक्यात करून देता येणे खरंच अशक्य आहे … पण तरीही एक प्रयत्न करत आहोत – – 

त्यांचा जन्म कोल्हापूर इथे एका प्रज्ञावंत कुटुंबात झाला होता. तेव्हाचे प्रसिद्ध गणितज्ञ रँग्लर विष्णू वा. नारळीकर हे त्यांचे वडील बनारस हिंदू विद्यापीठात गणित शाखेचे प्रमुख म्हणून कार्यरत असल्याने डॉ. जयंत यांचे शालेय शिक्षण वाराणसीलाच झाले होते. त्यांच्या आई सुमती यांची त्या काळातल्या ‘संस्कृत विदुषी‘ अशीच ओळख होती. बुद्धीचा हा समृद्ध वारसा डॉ. जयंत यांनी आणखीच दिमाखदारपणे पुढे चालवला असे निश्चितच म्हणायला हवे. 

पुढील शिक्षणासाठी ते ब्रिटनला गेले आणि तिथे त्यांच्या यशाचा झेंडा दिमाखात फडकताच राहिला. तिथे त्यांनी पी.एच.डी. ही पदवी, तसेच रँग्लर ही पदवी, खगोलशास्त्रातील टायसन मेडल, स्मिथ पुरस्कार व इतर अनेक पारितोषिके मिळवली. भारतात परतल्यावर त्यांनी खगोलभौतिकी क्षेत्रात संशोधन सुरू केले आणि अखेरपर्यंत त्यांचे हे काम अव्याहत सुरूच होते. सुरुवातीला मुंबईतल्या “Tata Institute of Fundamental Research” या विख्यात संस्थेत खगोलशास्त्र विभाग प्रमुख म्हणून ते रुजू झाले. पुढे काही वर्षांनी पुण्यात स्थापन झालेल्या “आयुका” संस्थेचे संचालक म्हणून त्यांची नियुक्ती झाली. 

सर फ्रेड हॉएल यांच्या बरोबर काम करत असतांना त्यांनी ‘कन्फॉर्मल ग्रॅव्हिटी थिअरी’  हा महत्वपूर्ण सिद्धांत मांडला. अखेरपर्यंत ते स्वतःला याच क्षेत्रात झोकून देऊन काम करत राहिले होते. 

या जराशा रुक्ष समजल्या जाणाऱ्या क्षेत्रात अगदी अचानकपणे त्यांच्यातला साहित्यिकही जागा झाला होता. त्यासाठी सुरुवातीला ते ‘ नारायण विनायक जगताप ‘ या टोपण नावाने विज्ञान कथा-स्पर्धेत भाग घेत असत हे अनेकांना बहुदा ज्ञात नसावं. पुढे त्यांच्या ‘यक्षांची देणगी’ या पहिल्याच पुस्तकाला महाराष्ट्र शासनाचा पुरस्कार मिळाला . तर ‘चार नगरांतले माझे विश्व’ या त्यांच्या सुंदर आत्मकथनाला साहित्य अकादमीचा पुरस्कार प्राप्त झालेला आहे. या व्यतिरिक्त विज्ञानकथा सांगणारी त्यांची २५ हूनही अधिक प्रकाशित पुस्तके प्रसिद्ध आहेत. विविध मराठी नियतकालिकांमध्येही त्यांचे विज्ञानविषयक ललित लेखनही सतत मोठ्या प्रमाणात प्रसिद्ध केले गेले आहे. विशेष म्हणजे त्यांच्या पुस्तकांचे जगातल्या अनेक भाषांमध्ये अनुवादही झालेले आहेत. 

नाशिक येथे आयोजित केल्या गेलेल्या साहित्य संमेलनाचे अध्यक्ष म्हणून त्यांना आमंत्रित करण्यात आले होते.

लेखिका डॉ. विजया वाड यांनी “विज्ञानयात्री डॉ. जयंत नारळीकर” या नावाने त्यांचे चरित्र लिहिलेले आहे. 

त्यांनी विविध माध्यमांमधून विज्ञान प्रसाराचे मोलाचे काम ‘आपले आद्यकर्तव्य’ समजून शेवटपर्यंत अगदी जोमाने केलेले आहे. खरं तर डॉ. नारळीकरांच्या बहुआयामी व्यक्तिमत्त्वाबद्दल जेवढे सांगावे तेवढे कमीच आहे. पण जाताजाता त्यांची समाज हिताची तळमळ अधोरेखित करायलाच हवी. समाजात बोकाळलेल्या अंधश्रद्धेचे निर्मूलन व्हायला हवे ही त्यांची मनापासूनची तळमळ होती. पण त्याबाबतीतले त्यांचे विचार त्यांनी कधीच लोकांसमोर आक्रस्ताळेपणाने..अवास्तव भडकपणाने मांडले नाहीत. ते विचार नेहेमीच समाजाचा साकल्याने विचार करणारे, संतुलित, आणि ज्ञान-विज्ञान-तत्वज्ञान या तिन्हींचा उत्तम मेळ साधणारेच असत. आणि अंधश्रद्धा निर्मूलनाचे काम हाती घेतलेल्यांना ही गोष्ट आवर्जून लक्षात घ्यायला हवी असे म्हणावेसे वाटते. 

डॉ. जयंत नारळीकर आणि त्यांच्या पत्नी सुश्री मंगला नारळीकर ही दोन एकमेकांना अगदी पूरक अशी व्यक्तिमत्वे “माणुसकीचा खळाळता झरा” म्हणूनही का ओळखली जायची हे सांगणारा एक लेख आपण आजच्याच अंकात वाचणार आहोत. 

🙏💐पद्मविभूषण डॉ. जयंत नारळीकर यांच्या पवित्र स्मृतीस विनम्र अभिवादन. 💐🙏

– संपादक मंडळ

ई-अभिव्यक्ती (मराठी)

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ पराधीन… भाग – १ + संपादकीय निवेदन – सौ. राधिका भांडारकर – अभिनंदन ☆ सम्पादक मंडळ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

सूचना/Information 

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

सौ. राधिका भांडारकर 

💐 अ भि नं द न 💐

‘आम्ही सिद्ध लेखिका संस्था‘ पुणे जिल्हा शाखा यांच्यातर्फे ‘१ मे २०२५ – महाराष्ट्र दिना’ निमित्त घेण्यात आलेल्या कथा स्पर्धेत आपल्या समूहातील ज्येष्ठ लेखिका सुश्री राधिका भांडारकर यांना त्यांच्या “पराधीन” या कथेसाठी प्रथम पुरस्कार प्रदान करण्यात आला आहे.

आपल्या समूहातर्फे राधिकाताईंचे हार्दिक अभिनंदन आणि खूप शुभेच्छा.💐

आजच्या व उद्याच्या अंकात वाचूया ही पुरस्कारप्राप्त कथा पराधीन – दोन भागात.

संपादक मंडळ

ई अभिव्यक्ती मराठी

? जीवनरंग ?

☆ पराधीन… भाग – १ ☆ सौ. राधिका भांडारकर

शोभाला वाचवण्यासाठी डॉक्टरांचे शर्थीने प्रयत्न चालू होते. तिच्या हृदयाची क्षमता दहा टक्क्यावर आली होती. मॉनिटरवरच्या आलेखावरून फिरणारा तो हिरवा प्रकाशाचा ठिपका धोक्याच्याच सूचना देत होता. शोभाचे सारे चैतन्यदायी घटक हळूहळू उतरत होते. व्हेंटिलेटर वर असूनही तिला श्वास घेणं प्रचंड त्रासदायक होत होतं आणि तिची छाती जोरजोरात उडत होती.

ताईला कळुन चुकलं होतं की शोभाला आता निरोप द्यायची वेळ आली आहे, या यातनांमधून शोभाला फक्त मृत्यूच सोडवू शकत होता. ताईला हे सत्य पटत होतं पण कितीही झालं तरी धाकट्या बहिणीने आपल्या आधी जावे हे सत्य स्वीकारणे तिला कठीण जात होते. शिवाय शोभाच्या जाण्याने काही नवीन प्रश्न उपस्थित होणार होते ते वेगळेच. सायलीचे काय?

खूप दिवसांपूर्वी शोभा ताईला म्हणाली होती, ” आयुष्यभर देवाने माझ्या पदरात नकारात्मक दानच टाकले. आता मात्र देवाजवळ माझं एकच मागणं आहे. माझं काही बरं वाईट व्हायच्या आधी सायलीने या जगाचा निरोप घ्यावा. कोण करेल ग तिचं? कोण जबाबदारी घेईल तिची? आणि सायली ही माझीच जबाबदारी नाही का? ती मी अशी कशी कुणावर सोपवू शकेन? ”

बोलता बोलता तिला हुंदके आवरत नव्हते.

कोपऱ्यात एका टेबलावर सायली बसली होती. स्वतःशीच हसत होती, काही बडबडत होती. जणू काही आईचं दुःख, तिचं अश्रू गाळणं या साऱ्यांच्या पलीकडे तिचं वेगळं जग होतं.

त्यादिवशी ताईने शोभाला समजावले. मोठ्या बहिणीच्या मायेने तिला जवळ घेतले. पाठीवर थोपटले.

“अग! असं का म्हणतेस आणि तुला कशाला काही होईल? तू असे विचार करू नकोस. शेवटी आपल्या हातात काय आहे? माणूस हा पराधीन आहे. जे ईश्वराच्या मनात असेल तेच घडेल पण एक लक्षात ठेव जो चोच देतो तो चाराही देतो. तू विश्वास आणि श्रद्धा ठेव. ”

भैय्यासाहेब गेल्यानंतर ताई, शोभा आणि सायलीला स्वतःच्या घरी घेऊन आली होती.

“आता तुम्ही इथेच रहा. मीही तर एकटीच असते. विनयला मी सांगितलं आहे आणि त्याची काहीच हरकत नाही. ”

तसं पाहिलं तर सगळ्यांचीच आयुष्यं एकमेकात गुंतलेली. स्वतंत्र तरीही गुंतलेली. काही वर्षांपूर्वीच ताईच्या पतीचे निधन झाले होते. ताईला एकच मुलगा. विनय. तो अमेरिकेत स्थायिक. बाबा गेल्यानंतर ताई काही महिने विनय सोबत अमेरिकेत राहिलीही पण तिने जाणले की असे इथे परदेशात कायम राहणे मानसिक दृष्ट्या तिला शक्य नव्हते. विनयला तिने न दुखवता पटवूनही दिले

खरं म्हणजे जो तो आपापले आयुष्य जगत असतो. टप्प्याटप्प्यावर बदललेल्या आयुष्याची घडी सावरत असतो. पुढे जात असतो. भविष्यात काय घडणार हे कुठे ज्ञात असतं?

भैय्यासाहेब गेले. शोभा आणि सायलीचा आधार ढासळला. तशा त्या अनाथ नव्हत्या, शोभाच्या सासरची माणसं तशी जबाबदार आणि समंजस होती. जरी ती नोकरी व्यवसायाच्या निमित्ताने विखुरलेली होती तरी कुणीही सायलीला आणि शोभाला नाकारलं नव्हतं, डावललं नव्हतं. पण ताईने आपणहून शोभाला मदतीचा म्हणण्यापेक्षा मायेचा, अपार विश्वासाचा, आधाराचा हात दिला. त्या दोघींचं एक प्रकारचं केविलवाणेपण ताईच्या काळजाला कुठेतरी चिरून जात होतं.

तेव्हापासून ताई, शोभा आणि सायली यांचं एकत्र जीवन सुरू झालं.

सोपं नव्हतं. प्रत्येकाचे आपापल्या आयुष्याचे कम्फर्ट झोन होतेच. आता एका निराळ्या समूहात आयुष्याची नवी सुरुवात करताना त्रास हा होणारच होता. शिवाय सायलीची स्वमग्नता हा त्यातला सर्वात दुबळा भाग होता. शोभाला सायलीची सवय झालेली होती. तिच्या वागण्या बोलण्यातला विचित्रपणा, तिचे कधी घसरणारे तर कधी प्रखर झालेले मानसिक कल, शोभाला सायलीच्या जन्मापासून तसे अंगवळणी पडले होते. आणि शेवटी शोभा एक “आई” होती. सायली तिच्या रक्तामांसाचा गोळा होता.

मावशी या नात्याने ताईला सुद्धा सायलीचा ऑटिझम ज्ञात होताच पण दूर असणं आणि सहवासात राहणं यात खूप फरक होता.

सायलीला तिच्या कुठल्याही वस्तुंना हात लावलेला चालत नसे. तिचे कपडे, तिच्या वस्तू, चपला अगदी केसाला लावायच्या पिना सुद्धा कोणी जागेवरून हलवल्या तर ती प्रचंड क्रोधित व्हायची. तिला सतत टीव्ही लागायचा. तिने लावलेला चॅनल कोणीही बदलायचा नाही. आवाज सहन न झाल्यामुळे तिला न विचारता जर टीव्ही बंद केला तर तिचा पारा चढायचा. शेवटी ती असाधारण आहे, वेगळी आहे, तिला कळत नाही, विचार करण्याची क्षमता तिच्यात नाही असा विचार करून, सायलीलाच केंद्रस्थानी ठेवून सारे व्यवहार करणं क्रमप्राप्त होतं.

एक दिवस ताई शोभाला म्हणाली,

“शोभा चूक तुझी आहे. अगं! अशा मुलांसाठी वेगळ्या शाळा असतात तिथे का नाही तू तिला घातलेस? तिथे ती काही शिकली असती. वेळीच तुम्ही दोघांनी हा विचार का नाही केला? ”

“ताई तिच्यासाठी जे जे करता येईल ते सगळं आम्ही केलं होतं ग! तिच्याकडे दुर्लक्ष व्हायला नको म्हणून आम्ही दुसऱ्या मुलाचाही विचार केला नाही पण नशिबाचे फासे उलटेच पडले. ”

शोभाचा आवाज रडवेला होत गेला, डोळे वहायला लागले.

सायली भिंतीला टेकून ताठ उभी होती, तिचे डोळे वटारलेले होते. चेहऱ्यावर विचित्र भाव होते. तिला पाहताच ताईने संवाद तोडला. विषय बदलला.

ताईला का माहित नव्हत्या शोभाच्या आयुष्यातल्या घडलेल्या घटना?

भैय्यासाहेबांना लोकल गाडीत चढताना झालेला तो भयाण, जीवघेणा अपघात! त्यातून ते वाचले तरीही पूर्ववत कधीच झाले नाहीत. कायमचे अपंगत्व आले, नोकरी सोडावी लागली.

थोडीफार सेव्हींग्ज, साचलेले प्रॉव्हिडंट फंडाचे पैसे, घरून शेतीतून येणाऱ्या उत्पन्नाचा हिस्सा आणि पुढे उरलेलं लांबलचक आयुष्य.

शोभा साठी तर साराच अंधार होता. स्वमग्न सायली आणि अपंग नवरा.

देव एकाच माणसाला इतकी दुःखं का देतो?

– क्रमशः भाग पहिला 

©  सौ. राधिका भांडारकर

वाकड, पुणे

मो.९४२१५२३६६९

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares