(प्रस्तुत है कविराज विजय यशवंत सातपुते जी द्वारा रचित माझी आज्जी . . . . ! भावप्रवण कविता में निःसन्देह कविराज जी की स्मृतियों में उनकी आजी की स्मृतियाँ झलकती हैं। किन्तु, वे बरबस हमें हमारी दादी/नानी की स्मृतियों की याद दिलाती हैं। ।)
(सुश्री ज्योति हसबनीस जी का पुष्पों एवं प्रकृति के प्रति अपार स्नेह की साक्षी है यह सामयिक कविता। गुलमोहर, ग्रीष्म ऋतु, पक्षी, पेड़ और पथ; कुछ भी तो नहीं छूटा। इसके पूर्व हमने सुश्री ज्योति जी की कदंब के फूल पर एक कविता प्रकाशित की थी जिसे पाठको का अपार स्नेह प्राप्त हुआ था। )