हिन्दी साहित्य – पुस्तक चर्चा ☆ बाल कहानी संग्रह ‘जादुई बगीचा ‘ – सुश्री उषा सोमानी ☆ समीक्षा – श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’’ ☆

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं।आज प्रस्तुत है सुश्री उषा सोमानी जी  के बाल कहानी संग्रह जादुई बगीचा” की पुस्तक समीक्षा।)

☆ पुस्तक चर्चा ☆ बाल कहानी संग्रह ‘जादुई बगीचा’ – सुश्री उषा सोमानी ☆ समीक्षा – श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’’ ☆

पुस्तक- जादुई बगीचा (बालकहानी-संग्रह)

कहानीकार-  सुश्री उषा सोमानी

प्रकाशक- साहित्यकार, धामणी मार्केट की गली, चौड़ा रास्ता, जयपुर 

मोबाइल नंबर 93142 02010

पृष्ठ संख्या- 120

मूल्य- ₹200

समीक्षक ओमप्रकाश क्षत्रिय प्रकाश

☆ समीक्षा- जादुई बगीचे में फूलों से सजी कहानियां☆

आपको कहानी सुनाना आना चाहिए। लिखना अपने आप आ जाता है। कहानी, कहानी सुनाने में छुपी रहती है। कहानी कब मस्तिष्क में चढ़कर बोलने लगती है, कहा नहीं जा सकता हैं। जी हां। आपने ठीक समझा। एक ऐसी ही कहानीकारा है उषा सोमानी जी।

इन्होंने कहानी सुनाते-सुनाते कहानी लिखना शुरू किया। फिर लिखती ही चली गई। जिसकी परिणीति ‘जादुई बगीचा’- बालकहानी संग्रह के रूप में हुई। इस बालकहानी संग्रह में 23 कहानियों का गुलदस्ता सजाकर उन्होंने हमारे समक्ष प्रस्तुत किया है।

बहुत ही सुंदर आकर्षक कवर से सजे इस कहानी संग्रह की बढ़िया कहानी हैं- गुम हुए जुगनूओं की चमक। यह पर्यावरण का संदेश देती हुई बेहतरीन कहानी है। इसमें वर्णित दृश्यांकन का चित्रण बहुत ही बढ़िया किया गया है।

इस संग्रह की दूसरी बढिया कहानी है- फड़फड़ भूत। सरल, सहज और रोचक शब्दों में कही गई यह एक अच्छी कहानी है। इसमें जिज्ञासा है। प्रवाह है। सरलता है और कहानी कहने का बहुत ही रोचक ढंग है।

गिरगिट रेस जीत गया- कहानी में बच्चों की गप को आधार बनाकर एक बहुत ही बढ़िया कहानी लिखी है। इसमें रोचकता और प्रवाह अंत तक बना रहता है।

ओल्ड इज गोल्ड- इस कथानक पर डाइनिंग टेबल के बहाने आपने बहुतसी भावनात्मक यादों को बच्चों के समक्ष रखने में सफलता प्राप्त की है।

नारियल की गवाही-शीर्षक कहानी हमारे मन में पढ़ने के लिए उत्सुकता जगाती है। इस उत्सुकता में पाठक कहानी को अंत तक पढ़ जाता है। तब उसे मालूम होता है नारियल ने गवाही कैसे दी?

जहां चाह, वहां राह- एक आदिवासी बच्चे की मदद को प्रेरित करती हुई बढ़िया कहानी। बदलाव- कहानी में शरारती प्रवृत्ति को प्रमुखता से उठाया गया है। बच्चे अक्सर स्कूल में शरारत करते हैं। मगर शरारत का आप का प्रयोग अभिनव व नया है।

कुदरत का करिश्मा- में बच्चों की एक अनोखी प्रवृत्ति का उल्लेख किया गया है। आजकल बच्चे मुहावरे भूलते जा रहे हैं। उन्हें मुहावरे का अर्थ और मुहावरें याद नहीं रहते हैं। आपने -कुदरत का करिश्मा, कहानी में मुहावरा का अच्छा प्रयोग किया है।

सूझबूझ ने बचाई जान- कहानी में एक यादगार जानकारी अनोखे रूप से दी गई है। इस कारण वह जानकारी स्थाई रुप से दिमाग में बैठ जाती है। आपने इसी का उपयोग करके 108 एंबुलेंस की जानकारी को कहानी में पिरोया है। आपका यह प्रयास अति उत्तम है।

खिल गए रंग- किसी दूसरे के चेहरे पर खुशियों की मुस्कान लाने की शानदार कौशिश है। आज की भागमभाग युग में यह अब नहीं हो पा रहा है। इसी को सीख देती बेहतरीन कहानी के लिए हार्दिक बधाई।

जादुई बगीचा- बच्चे जादू को बहुत पसंद करते हैं। उन्हें खेलना, कूदना और रेस लगाना अच्छा लगता है। इसी भाव को पिरोते हुए आपने अच्छी कहानी कही है।

देख कर जी ललचाए- गिन्नी बिल्ली की यह शुद्ध मनोरंजन कहानी बहुत ही अच्छी बनी है। इससे बच्चों का अच्छा मनोरंजन होता है।

लौट के घर आई राजकुमारी- बच्चों को कल्पना की उड़ान कराती बहुत ही अच्छी कहानी कही है। इसमें परंपरागत रूप से जादू का बहुत ही अच्छा उपयोग किया है।

जलपरी से मुलाकात- इस कहानी में बच्चों में जलपरी से मुलाकात की जिज्ञासा को जागृत किया है। यह होती भी है या नहीं? बहुत कुछ जानने को उत्सुक जगाती कहानी है।

दोहरी फसल- धान की रोपाई के साथ दोस्ती की फसल। एक अनोखा संगम। बहुत बढ़िया कहानी हैं।

महंगी पड़ी शरारत- शरारत को दर्शाती यह कहानी जानदार और जानकारी पूर्ण है। कैटरपिलर और उसके काँटे के बारे में आपने बहुत खूब लिखा है।

हौसले की उड़ान- चिंकी के हौसले की उड़ान को आपने क्रिकेट की कहानी में बहुत ही खूबसूरती से पिरोया है।

पेड़ों का रसोईघर- प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया को बहुत ही सीधे, सरल सहज व सीधे ढंग में समझाया गया है। यह कहानी की एक बहुत ही बड़ी विशेषता है।

फूल फिर मुस्कराने लगे- परी के द्वारा बगीचे और फूलों को लेकर एक बहुत ही बढ़िया कथानक बुना गया है। इसमें फूलों की चिंता और उनके मनोरंजन को बहुत खूबसूरती से उल्लेख किया गया है।

मिस मुर्गी की दुकान- यह बहुत ही मनोरंजक और दिलचस्प कहानी है। ऐसी कहानियां बच्चे बहुत पसंद करते हैं। मित्र की पहचान- मुसीबत में ही सच्चे मित्र की पहचान होती है। इसी कथानक को लेकर बुनी गई आपकी यह कहानी बिल्कुल सरल, सहज व अच्छी है।

गधे का सपना- अपनी उपयोगिता सिद्ध करने को लेकर लिखी गई बहुत ही अच्छी कहानी। हरेक की अपनी उपयोगिता और सर्व श्रेष्ठता होती है। यही कहानी दर्शाती है। डॉ राधाकृष्णन- डॉक्टर राधाकृष्णन पर शिक्षक दिवस पर लिखी गई सार-संक्षिप्त और बढ़िया कहानी है।

उत्तम आवरण से सजे इस कहानी संग्रह में बीच-बीच में रेखा चित्र दिए गए हैं। उत्तम साजसज्जा एवं त्रुटिरहित छपाई ने कहानी संग्रह की पठनीयता में वृद्धि की है। इस संग्रह के लिए आपको हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

26-03-2023

मित्तल मोबाइल के पास, रतनगढ़,  जिला- नीमच (मध्य प्रदेश), पिनकोड-458226 

मोबाइल नंबर 7024047675, 8827985775

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ कविवर्य ग्रेस ☆ श्री मिलिंद रतकंठीवार ☆

?विविधा ?

☆ कविवर्य ग्रेस ☆ श्री मिलिंद रतकंठीवार ☆

(26 मार्च :स्मृतीदिनानिमित्त)

ग्रेस(फुल)कवी

मला आठवते, स्व आई मॉरिस कॉलेज नागपूरला मराठीत एम ए करीत होती. रोज आई घरी आली की, वैचारिक मेजवानी बाबांसह आम्हाला मिळत असे. ती बाबांचे संस्कृत श्लोक प्रसंगोचीत असत. त्यामुळे आई बाबांचे संवाद हे सुसंस्कारित उच्च दर्जाचे असत. कधी कधी बाबांचे वैदर्भीयन उच्चार, शब्द आईचे पुणेरी उच्चार अन् शब्द यांची जुगलबंदी होत असे. तो अनुभव देखील आम्हा भावंडांसाठी एक संस्कारच होता. बाबांचे लिखाण मी फारसे कधी वाचले नाही. अर्थात गणित, विज्ञान या चौकटीत त्यांच्या साहित्य विषयक जाणिवा किंचित बोथट झाल्या असाव्यात. पण आणीबाणीच्या तुरूंगवासात, गजाआड गणित विज्ञानाच्या चौकटी शिथील झाल्या.

आईला मॉरिस कॉलेज नागपुर येथे द. भि. कुलकर्णी, माणिक गोडघाटे  शिकवित असत. कामठी येथून बस प्रवास करून नागपूरला येऊन शिक्षण घेणाऱ्या एका विवाहितेला विद्यार्थिनी म्हणून आपण शिकवतो, याचे ह्या दोघांना खूप अप्रूप होते. अर्थातच आईचे साहित्य विषयक आकलन, उत्तम होते तेंव्हापासून ग्रेस  आणि दभि या नावांचे गारूड माझ्या मनावर आरूढ झाले. ग्रेस आईला म्हणत की,  तुमचे माझे नाव एकसारखेच आहे.. हो! माझ्या आईचे नाव माणिकच होते. लग्नापूर्वीचे आईचे नाव हिरा होते, बाबांनी ते प्रथेपणे बदलून माणिक केले.. ( परंतु अमूल्य रत्न, हा अर्थ कायम राखूनच)

प्राध्यापक ग्रेस आणि दभी यांची आई आवडती विद्यार्थिनी होती.

तसे माझे शालेय वयच होते ते!

ट ला ट, री ला री जोडून, ओढून ताणून कविता (?) मी करत असे.. एकदा कां कविता लिहिण्याचा निर्णय झाला मी डाव्या बाजूला एकसारखे शब्द (शेखर, ढेकर, येणे, जाणे, गाणे, नाणे, बुध्द वृध्द, सिध्द, बद्ध इत्यादी ) लिहून ते कवितेचे धृपद म्हणून एक लांबलचक कविता (?) लिहित असे.

आईने त्याला बडबड गीता पेक्षा अधिक मानण्यास नकार दिला. कविता तर नाहीच नाही. “अरे, ही काय कविता आहे? ” तेंव्हापासून, काव्य प्रकार हा माझा प्रांत नाही, या निष्कर्षाप्रत मी आलो. माझे शब्द भांडार हे किती अपुरे आहे, हे मला जाणवले. कल्पनेची देखील मर्यादा मला जाणवली. एकदा असाच सॉनेट (सूनित) लिहिण्याचा मी घाट घातला. पण आशय ना विषय, ते आरंभ शौर्य मनातल्या मनातच विरले.  प्राध्यापक कविवर्य माणिक गोडघाटे यांचे विषयी, आई  भरभरून बोलत असे. तेंव्हा एक अगम्य, गूढ, दुर्बोध, शब्द बंबाळ, अनाकलनीय लिहिणारे ( आईच्या शब्दात,  ग्रेसफुल लिहिणारे ग्रेस ) कवी ग्रेस !. ही प्रतिमा माझ्या मनात रुजली. त्यांच्या प्रतिमांची उकल माझ्या क्षमतेच्या परीघा बाहेरची आहे. अनेक समीक्षकांनी त्यांच्या त्यांच्या प्रतिभेने ग्रेस यांच्या प्रतिमांची उकल केली..  ती देखील माझ्या आकलनाच्या पल्याड आहे.

पण त्यामुळे मी अधिकच या कवीच्या, व्यक्तिमत्त्वाच्या प्रेमात पडलो. आज ग्रेस यांचा स्मृतिदिन, शब्दांची उणीव रेषांनी भरून श्रध्दांजली अर्पण करण्याचा हा प्रयत्न !

© श्री मिलिंद रथकंठीवार

पुणे.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆☆ रामनवमी दिना निमित्त – कर्तव्यदक्ष, आदर्श, पुरुषोत्तम श्रीराम ☆☆ सौ. विद्या वसंत पराडकर ☆

सौ. विद्या वसंत पराडकर

?विविधा ?

☆ रामनवमी दिना निमित्त – कर्तव्यदक्ष, आदर्श, पुरुषोत्तम श्रीराम ☆☆ सौ. विद्या वसंत पराडकर ☆

भारतीय संस्कृतीचे श्रीराम एक व्यवच्छेदक वैशिष्ट्य आहे.परब्रम्हाचा तो सातवा अवतार आहे.पृथ्वीवर ज्यावेळी अत्याचार माजतो,मानवी जीवन विस्कळीत होते,दैत्याचे तांडव अमर्याद सुरु असते त्यावेळी पृथ्वीला हे  सर्व सहन न होऊन ती गाय रुपाने वैकुंठात जगाच्या पालन कर्त्या कडे जाते.वत्याला विनवणी करते.या संकटातून मला वाचव.तेव्हा दुष्टांचा संहार व सृष्टांचे पालन करण्याकरता प्रभू पृथ्वीतलावर अवतार घेतात. श्रीरामांनी त्रेतायुगात भगवान विष्णूच्या दशावतारात सातव्या क्रमांकावर अवतार घेतला.तो दिवस होता चैत्र शुद्ध नवमीचा.पुष्य नक्षत्र,कर्क रास हा दिवस श्रीरामाच्या जन्माचा होय.भारतीय संस्कृतीच्या एका दैदिप्यमान हिर्याच्या तेजाने सर्व    पृथ्वी चमकून गेली.एका आज्ञाधारक कर्तव्य दक्ष,आदर्श व्यक्तिमत्वाचा जन्म झाला..

त्रेतायुगानंतर व्दापार व नंतर आजचे कलियुग आहे.श्रीराम हे युगपुरूष आहे.रामायणाचा नायक श्रीराम आहे. आजही श्रीराम नवमी ठिकठिकाणी मोठ्या आनंदाने साजरी करतात.

रामायणाच्या कथेचा मध्यवर्ती बिंदू श्रीराम.गुरू वशिष्ठ यांचेकडून विद्या घेऊन पुढे ते विश्र्वास इतरांच्या मग रक्षणासाठी गेले.तेथे त्यांनी असुरांना आपल्या विद्येची चांगलीच चुणूक दाखवली.व आपल्या गुरुचे रक्षण केले.

आज्ञा शिरसावंद्य या न्यायाने आई व वडील यांच्या आज्ञेचे पालन केले.चौदा वर्षाचा वनवास पत्करला व राज्याचा त्याग केला.केवढी ही नि:स्वार्थी वृत्ती.

अंजनीसुत वीर हनुमान हा रामाचा प्रिय भक्त  होता.श्रीरामाच्या संकट काळी तो वेळोवेळी कामास आला. लंकाधिपतीने जेव्हा सीतेचे हरण केले तेव्हा सीतेचा शोध लावण्यात हनुमानाला यश मिळाले.पुढे आपल्या विराट रुपाने लंकादहन केले. असा हा चिरंजीव हनुमान चारी युगात कार्यरत होता. व  आहे.

रावण हे अंहकाराचे प्रतीक असलेला दुष्ट असूर.राम रावण युध्दात आपल्या युध्द नीतीने रावणाला पराभूत केले. ते श्रीरामानेच.

श्रीरामाचे अनेक गुण हे  वाखाणण्यासारखे आहेत.तो एक  अत्यंत प्रजादक्ष राजा, उत्कृष्ठ शासक, कर्तव्य निष्ठ राजा होता. आईवडिलांची आज्ञा पाळणारा आज्ञाधारक पूत्र ,एक पत्नीत्वाचा पुरस्कर्ता होता.एक बाणी,एक वचनी  होता.

शुद्ध व निर्मळ मनाचे श्रीराम होते याचे उदाहरण म्हणजे वनवासातुन परत आल्यावर त्यांनी कैकयीच्या चरणावर प्रथम माथा ठेवला.

आज आपण कलियुगाच्या मध्यावर उभे आहोत.आजचा समाज बदलत आहे.संस्कृतीपासून लांब चालला आहे.संस्कृतीची मुल्ये लोप पावत आहे.

अशा परिस्थितीत भारतीय तत्वज्ञान व मुल्यांची जोपासना करण्यासाठी  युगपुरुषांची गरज आहे.या भवसागरातून तरुन जाण्यासाठी श्रीराम व्यक्तीमत्व ही एक नौका आहे

आजच्या दिनी युगपुरूषाचे स्मरण  कृती युक्त अंत:कर्णाने केल्यास देशासमोर असणार्या बर्याचशा समस्यांचे निराकरण होऊ शकते.

 

© सौ. विद्या वसंत पराडकर

वारजे, पुणे.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – मनमंजुषेतून ☆ सुंदरता… अज्ञात ☆ प्रस्तुती – सुश्री मीनल केळकर ☆

? मनमंजुषेतून ?

☆ सुंदरता… अज्ञात ☆ प्रस्तुती – सुश्री मीनल केळकर ☆ 

स्त्रियांना नेहमी असं वाटतं की, 

आपण हे नेसल्यावर सुंदर दिसू, ते घातल्यावर सुंदर दिसू. 

एक जाहिरात आहे, त्यात विनोदकन्या भारती म्हणते, “ मुझे कभी ब्यूटिफुल बनना ही नहीं था, क्यों कि मैं हमेशा से जानती थी की मैं ब्यूटिफुल हूँ. सिर्फ अपनी सुंदरता को मेन्टेन करती हूँ। “ 

फार छान ओळी आहेत या कि, मला नेहमीच माहीत होतं, मी सुंदर आहे.

आपल्यापैकी किती जणींना हे माहीत असतं?

आपल्यातलं सौंदर्य कशात आहे, हेच आपल्याला माहीत नसतं. कारण सौंदर्य म्हणजे काय, हेच आपल्याला कळत नाही. 

आपले सौंदर्याचे आणि प्रेमाचे मापदंड आपण लहान किंवा मोठ्या पडद्यावरच्या तारकांकडे पाहून ठरवत असतो.

जाहिरातीतल्या बाईचा मेकअपने झाकलेला हजार वॅटमध्ये चमकणारा चेहरा म्हणजे आपण सौंदर्य समजतो. पाठ उघडी टाकणारं प्रचंड मोठ्या गळ्याचं ब्लाउज म्हणजे सौंदर्य समजतो.

पण तुम्ही कधी आपल्या बाळाला पाजताना स्वत:चा चेहरा पाहिलाय का? वात्सल्यानं चमकणाऱ्या त्या चेहऱ्याचं सौंदर्य उजळण्यासाठी कधीच हजार वॅटच्या फोकसची गरज लागत नाही. 

दिवसभर घरकाम करून थकल्यावर संध्याकाळी तोंडावर पाणी मारून साध्या टॉवेलने पुसलेला चेहरा पाहिलाय का? त्यावरचे स्वत:च्या जबाबदाऱ्या व्यवस्थित पार पाडल्यामुळे येणारे कर्तव्यपूर्तीचे भाव किती सुंदर दिसतात, ते कधी न्याहाळलेत का? 

सकाळी उठून सडा-रांगोळी झाल्यावर स्वत:च काढलेली रेशीमरेषांची रांगोळी पाहिली तर तुम्हाला तुमच्या बोटातली सुंदरता दिसेल. 

स्वच्छ-सुंदर आवरलेलं स्वयंपाकघर तुम्हाला तुमच्या गृहिणीपणाचं सौंदर्य सांगेल.

तुम्ही शिक्षिका असाल तर तुमचं सौंदर्य फळ्यावर नीटपणे लिहिलेल्या अक्षरात आहे. विषयाचं आकलन झाल्यावर दिसणारे मुलांचे आनंदी चेहरे ही तुमची सुंदरता आहे. 

तुम्ही इंटिरिअर डेकोरेटर असाल तर तुम्ही सजावट केलेल्या जागेतून तुमचं सौंदर्य डोकावेल. 

तुम्ही संपादक असाल तर तुम्ही निवडलेले लेख आणि त्यांची सुबक मांडणी तुमचं सौंदर्य आहे. 

तुम्ही विणलेल्या भरघोस गजऱ्यात तुमचं सौंदर्य आहे. तुम्ही काढलेल्या अक्षरात तुमचं सौंदर्य आहे.

सौंदर्य कपड्यात नाही, कामात आहे.

सौंदर्य नटण्यात नाही, विचारात आहे. 

सौंदर्य भपक्यात नाही, साधेपणात आहे.

सौंदर्य बाहेर कशात नाही, मनात आहे.

आपण करत असलेलं प्रत्येक काम म्हणजे सौंदर्याचं सादरीकरण असतं. आपल्या कृतीतून सौंदर्याची निर्मिती करता आली पाहिजे.

प्रेमाने बोलणं म्हणजे सुंदरता, 

आपलं मत योग्य रीतीनं व्यक्त करता येणं म्हणजे सुंदरता.

नको असलेल्या गोष्टीला ठाम नकार देण्याची हिंमत म्हणजे सुंदरता. 

दुसऱ्याला समजावून घेणं म्हणजे सुंदरता.

आपल्या हाती आलेला प्रत्येक क्षण रसरशीतपणे जगण्यात खरी सुंदरता आहे. 

आपल्या वर्तनातून, विचारातून आपलं सौंदर्य बाहेर येऊ द्या.

मेरी कोमचं सौंदर्य तिच्या ठोशात आहे. इंदिरा गांधींचं सौंदर्य कणखर निर्णयक्षमतेत राहिलं आहे. 

आपण करत असलेल्या कामात कौशल्य प्राप्त झालं की, आत्मविश्वास मिळतो. आत्मविश्वास आला की, आत्मसन्मानाची जाणीव येते. अशी आत्मविश्वासाने जगणारी बाई आपोआप सुंदर दिसते. 

गौरवर्ण, सडपातळ बांधा, काळे-दाट केस या वर्णनातून आता बाहेर पडलं पाहिजे. त्याऐवजी असेल तो वर्ण, दणकट बांधा, सुदृढ मन आणि संतुलित विचार या मापदंडाचा विचार करून पाहूया. 

तुम्ही जशा जन्माला आल्या आहात तशाच सुंदर आहात, 

ही खूणगाठ मनाशी बांधून टाका. 

जशा आहात तशाच अगदी सुंदर आहात, याची खात्री बाळगा. 

आपल्यातील सुंदरता ओळखून स्वत:वर विश्वास ठेवायला शिका. 

म्हणजे आपलं सौंदर्य अजूनच खुलेल. 

लेखक – अज्ञात

प्रस्तुती : सुश्री मीनल केळकर 

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ अतिशय घातक असणारी कबुतर विष्ठा… श्री योगेश पराडकर ☆ संग्राहक – श्री माधव केळकर ☆

?इंद्रधनुष्य?

 ☆ अतिशय घातक असणारी कबुतर विष्ठा… श्री योगेश पराडकर ☆ संग्राहक – श्री माधव केळकर ☆

कबुतर हा पक्षी दिसायला खूप साधा असला तरी तो आपल्याला फक्त ६ महिन्यात मरणाच्या दारात उभे करू शकतो.– यावर विश्र्वास बसत नाही ना…! पण हे खरे आहे.

२ आठवड्यापूर्वी कबुतर विष्ठा या कारणे, ठाणे इथे राहणारा माझा जवळचा मित्र मी गमावला. मित्र राहत असलेल्या फ्लॅटच्या खिडकीखाली ग्रिलमधे AC च्या duct unite च्या आजूबाजूस कबुतर निवास आणि विष्ठा जवळ जवळ 3 महिने होती. दुर्लक्षित कबुतरे, अंडी पिल्ले, काटक्या- विष्ठा यात राहत होती.

AC मधून जी हवा घरात येते, त्यातून सुकलेल्या विष्ठेमधील सूक्ष्म जंतूयुक्त धूळ घरात जाईल याची तिळमात्र कल्पना त्या कुटुंबाला नव्हती.

कबुतर उडते तेव्हा ही विष्ठा धूळ AC च्या बाहेरच्या outlet च्या मागच्या बाजूने, जाळीमार्गे आतमधे जाते आणि तेथून आत येणाऱ्या पाईपमधून हे जंतू बंद AC तून आत प्रवेश करतात. त्यामुळे खिडक्या घट्ट बंद असतील तरी जंतूसंसर्ग होतोच.

हे जंतू पाणी, फिनेल, एसिड, डेटॉल यामधेही जिवंत राहतात हे नवल आहे… रिपोर्टमधे हे लिहिलेले होते.

Report मधे लिहिलेली लक्षणे —- अशक्तपणा, सुका खोकला, ताप, पोटशुल, सहजच घाम येणे,

अंगाला सूज येणे–जाणे, ऑक्सिजन लेव्हल कमी होणे, चिडचिड.होणे. एक विशेष लक्षण म्हणजे अचानक श्वास लागून हायपर होणे, ही आहेत.  हे सगळे त्या  report मधे वाचून हादरलोच.

जेमतेम पंचेचाळीशीचा  मित्र २ महिने आजापणामुळे त्रस्त होऊन, एक्सरे आणि इतर टेस्ट करायला गेला.

(योगायोग असा की ज्या डॉक्टरकडे ट्रीटमेंट साठी गेला आणि उपचार चालू केले, ते डॉक्टर कपूर हे हल्लीच स्वतः वृद्धापकाळाने निवर्तले).

—अक्यूट हाइपर सेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस हे रोगाचे निदान झाले. (हा रोग कबुतर विष्ठा यापासून होतो)

Doctor Kapoor हा दुवा  गेल्यावर उपचार पद्धती आणि हॉस्पिटल दोन्ही बदलावी लागली.

Lungs आणि श्वास नलिका पूर्ण infected झाली होती… Report आले त्यात 60 % lungs निकामी झाले होते हे नमूद केले होते. चौकशी करता या विषया संदर्भात माहिती समोर आली. पण फार उशीर झाला होता आणि “यावर काहीच उपचार नाही पेशंट जगेल तितका जगवा” हे डॉक्टर जेव्हा म्हणाले, तेव्हा तो मित्र हादरला.

एक्यूट हाइपर सेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस मधे नक्की होते काय…???—– Lungs मधील आतला भाग आकुंचित होत जातो आणि कार्यक्षमता हळूहळू कमी होत जाते. रुग्णाला ऑक्सिजन द्यावा लागतो. विशेष म्हणजे हा रोग लवकर समजत नाही. प्रतिकार शक्ती कितीही चांगली असो, effect होतोच.

Lungs प्रत्यारोपण ही सहज होऊ शकले नाही. कारण उपलब्धता नाही आणि costly आहे.

शेवटी म्हणता म्हणता मागील आठवड्यात त्या मित्राला मृत्यूने गाठले. आम्ही सर्व मित्र २ मास्क नाकातोंडावर बांधून वैकुंठ यात्रेत सामील झालो.

— कबुतर हा शांतीदुत नसून यमदुत आहे हे मित्राच्या मृत्यूने शाबीत केले.

आता त्या घरातील सर्व व्यक्तींना वर सांगिल्याप्रमाणे फूफुसाचा रोग कमी जास्त प्रमाणात झालेला आहे.

उपचार सुरू आहेत. पण पुढचा पूर्ण जन्म हा श्वसनाच्या रोगाने त्रस्त असलेले ते उर्वरित कुटूंब

मी पाहिले.— वाईट वाटले पण क्षुल्लक कबुतर किती मोठा घात करू शकते यावर विश्र्वास बसला…

— SO साद। BUT REALITY.

या विषयसंदर्भात जाणकार व्यक्तीकडून माहिती घेऊन हे लिहिण्याचा खटाटोप केला…कबुतर या विषयास थारा देऊ नये…कारण इतर पक्षी प्राणी हे पाणी आणि माती mud bath याची आंघोळ  करतात म्हणून ते स्वच्छ असतात. पण कबुतर हे फार गलिच्छ आहे. त्यामुळे रोग संकर पूर्ण अंगभर घेऊन ते वावरत असते. काळ्या रंगाच्या पिसवा कबुतर विष्ठेतून निर्माण होतात, आणि त्या सुईच्या टोकापेक्षा सूक्ष्म असतात.

मुंबई (zoo) प्राणी संग्रहलय आणि पुणे सर्प उद्यान मधील माझे मित्र डॉक्टर आणि डॉक्टर मैत्रीण यांनी कबुतर याबाबत अधिक खुलासा केला. इतर पशू पक्षी हे दाणे आणि नैसर्गिक खाद्य खात असल्याने त्यांच्या मल मूत्र यातून संसर्ग होत नसतो आणि ती विष्ठा खत म्हणून झाडाला पूरक असते.

पण कबुतर, वटवाघूळ, गिधाड, तरस, आणि कमोडो द्रेगोन यांची लाळ आणि विष्ठा Acidic आणि घातक असते.

— शक्यतो कबुतर आसपास वास्तव्य करणार नाही  हाच यावर एक जालीम उपाय आहे.

— अपने गुलाब चाचा की प्यारीसी देन शांतीदूत होकर मौत को बुलावा देती है…यह अपने आंखों से देखा है… मामुली कबुतर से जुडी इक आखों देखी सत्य घटना…

लेखक : योगेश पराडकर.

संग्राहक : माधव केळकर

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – वाचताना वेचलेले ☆ “काही सुविचार” ☆ प्रस्तुति – श्रीमती उज्ज्वला केळकर ☆

श्रीमती उज्ज्वला केळकर

? वाचताना वेचलेले ?

☆ “काही सुविचार” ☆ प्रस्तुति – श्रीमती उज्ज्वला केळकर ☆

The correct temperature of home is maintained by warm hearts and cool minds, not by heaters, and air conditioners.

सगळ्यांचे सगळे करूनही सगळे ज्याच्यावर नाराज होत असतात, तोच घरातील खरा कर्ता असतो.

आपल्या सावलीपासून  आपणच शिकावे, कधी लहान तर कधी मोठे होऊन जगावे, प्रत्येक नाते मात्र आपुलकीने जपावे.

जीवनात थोडेसे प्रेम, थोडीशी आपुलकी, थोडीशी काळजी आणि थोडीसी विचारपूस एवढे जरी मिळाले तरी आयुष्य सुखावह होते.

माझे म्हणून नाही तर आपले म्हणून जगता आले पाहिजे, जग  कितीही चांगले असले तरी आपल्याला चांगले वागता आले पाहिजे.

जिंदगी तब अधिक खूबसूरत बन जाती, जब अपनी जिंदगी के कुछ पल हम दूसरों की खुशी के लिये जिये ।

कभी कभी मजबूत हाथों से पकडी हुई उंगलियां भी छूट जाती है, क्योंकि रिश्ते ताकत से नही, दिल से निभाये जाते है ।

संग्राहिका : सौ उज्ज्वला केळकर 

176/2 ‘गायत्री’, प्लॉट नं 12, वसंत साखर कामगार भवन जवळ, सांगली 416416 मो.-  9403310170

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ रंगबावरा वसंत… ☆ सुश्री वृंदा (चित्रा) करमरकर ☆

सुश्री वृंदा (चित्रा) करमरकर

? विविधा  

☆ रंगबावरा वसंत… ☆ सुश्री वृंदा (चित्रा) करमरकर ☆

आज सकाळी नेहमीसारखी फिरायला बाहेर पडले.नेहमीचा रस्ता,पण चालता चालता एकदम थांबले.माझं लक्ष बाजूच्या झाडाकडं गेलं. तर एरवी उदास वाटणाऱ्या या झाडाचा आजचा रुबाब बघितला.

हिरवट, पिवळ्या कळ्या फुलांची झुंबरे त्यावर लटकत होती. ही किमया कधी झाली असा प्रश्र्न पडला, तर शेजारचा गुलमोहर तसाच,कात टाकल्यासारखा. लाललाल लहानशा पाकळ्या आणि मध्ये शुभ्र मोती असे गुच्छ दिसू लागलेले. मला वाटलं लाजून लालेलाल झाला कि काय?

मग चटकन लक्षात आलं कि या तर ऋतुराजाच्या आगमनाच्या खुणा.

शहरी वातावरणात राहणारे आपण निसर्गाच्या या सौंदर्याच्या जादूला नक्कीच भुलतो. शिशिरातील पानगळीने,तलखीने सृष्टीचे निस्तेज उदालसेपण आता संपणार.कारण ही सृष्टी वासंतिक लावण्य लेऊन आता नववधू सारखी सजते.वसंत राजाच्या स्वागतात दंग होते.कोकिळ  आलापांवर आलाप घेत असतो.लाल चुटुक पालवी साऱ्या वृक्षवेलींवर  डुलत असते.उन्हात चमकताना जणू फुलांचे लाललाल मणी झळकत असल्यासारखे वाटते.चाफ्याच्या झाडांमधून शुभ्रधवल सौंदर्य उमलत असते.आजून जरा वेळ असतो, पण कळ्यांचे गुच्छ तर हळुहळू दिसायला लागतात.फुलझाडांची तर गंधवेडी स्पर्धाच सुरु असते.केशरी देठांची प्राजक्त फुले,जाई,जुई चमेली,मोगरा, मदनबाण,नेवाळी, सोनचाफा अगदी अहमहमिकेने गंधाची उधळण करत असतात.

या सुगंधी सौंदर्याला रंगांच्या सुरेख छटांनी बहार येते.फार कशाला घाणेरीची झुडपं.लाललाल आणि पिवळ्या,केशरी व पांढऱ्या, जांभळ्या आणि गुलाबी अशा विरुद्ध रंगांच्या छटांच्या फुलांनी लक्षवेधी ठरतात.

आपण हिला घाणेरी म्हणतो पण गुजरात,राजस्थान मध्ये या फुलांना “चुनडी”म्हणतात.त्यांचे कपडेही असेच चटकदार रंगांचे असतात.पळस,पांगारा रंगलेला असतो. हिरव्या रंगांच्या तर किती छटा.जणू त्याअनामिक चित्रकाराने मनापासून निसर्गदेवीला रंगगंधानी सजवले आहे.त्यासाठी नानाविध रंग आणि मदहोश सुगंधाच्या खाणीच खुल्या केलेल्या आहेत.

आंब्याची झाडे तर अतीव सुखातअसतात.फाल्गुनातील मोहोराचा गंध आणि त्यात लांब लांब देठांना लोंबणाऱ्या कैऱ्या उद्याचा “मधाळ ठेवा.”अगदी नारळा-पोफळीच्या झाडांना सुद्धा फुलं येतात.नखाएवढी फुलं एवढ्या मोठ्या नारळांची.

अगदी टणक पण हातात घेतली  कि त्याच्या इवल्याशा पाकळ्याही मृदू भासतात.पोफळीला फुटलेले इवल्याशा सुपाऱ्यांचे पाचूसम तकतकीत हिरवे लोंगर अगदी लोभस दिसतात.कडुलिंबाचा जांभळट पांढरा मोहोर तर गंधाने दरवळणारा. करंजाची झाडं सुद्धा नाजूक फुलांनी डंवरलेली.फणसाशिवाय हे वर्णनअपुरेहोईल.फणसाची झाडे सुद्धा टवटवीत दिसू लागतात.हळूहळू अगदी खालून वर पर्यंत इवलेसे फणस लटकलेले असतात. खरतर यादरम्यानउन्हंकडक.पणफुलायचा,गंधाळण्याचा या वृक्षलतांनी घेतलेला वसा पाहून मन थक्क होते.जांभूळही यात मागे नसतोच.

त्यातच कालपर्यंत शुकशुकाट असलेल्या झाडांवरलहान,मोठी,सुबक,बेढब,लांबोडकी,गोल घरटी दिसू लागतात.नव्या सृजनाची तयारी.वसंत ऋतू चैतन्याचा . कुणासाठी काहीतरी करण्याचा.नर पक्षी मादीला आकर्षित करण्याच्या खटपटीत.सुगरण पक्षी आपली कला घरटी बांधून प्रदर्शित करतात आणि मादीला आकर्षित करतात.काही नर पक्षी गातात, काही नाचतात. इकडं झाडं,वेली फुलोऱ्यात रंगून ऋतूराजा चे स्वागत करण्यात मश्गुल,साऱ्या सृष्टीतचहालचाली,लगबग.वसंत ऋतूचे हक्काचे महिने चैत्र, वैशाख. पण खरा तो रंगगंधानी न्हातो चैत्रात.कारण फुलांच्या, मोहोराच्या गोड सुगंधा बरोबर फळातील मधुरसही असतो.म्हणूनच हा मधुमास.निसर्गाचा मधुर आविष्कार. म्हणून तर चैत्र मास “मधुमास”होतो.

आता ऋतुपतीच्या आगमनासाठी सृष्टीचा कण न कण आतुरलेला.संयमाची सारी बंधने  निसर्ग राणी झुगारून देते.पक्षीगणांची सृजनासाठी आतुर,सहचरीची आर्जवे करणारे मधुरव, कोकिळ कंठातील मदमस्त ताना वातावरण धुंद करतात.

सजलेल्या,पुष्पालंकार ल्यायलेल्या गंधभऱ्या सृष्टीराणीच्या मोहात हा गंधवेडा,रंगबावरा वसंत पडला नाही तरच नवल.मग हा वसंतोत्सव पूर्ण वैशाख संपेपर्यंत रंगलेला असतो. निसर्गाचे हे बेबंद रुप, सौंदर्यासक्ती, कलाकारी खरंच थक्क करते.

गंधवेडा कि तू रंगबावरा|

ऋतुपती तू सदैव हसरा|

रत्युत्सुक रे मत्त मदभरा|

सृष्टीवेड्या रे जादुगारा||

 

आनंदाचा सुखमय ठेवा|

वाटत येशी तूची सर्वा|

फुलपंखी हा पर्णपिसारा|

फुलवित येशी चित्तचकोरा||

 

गंध उधळसी दाही दिशांना|

उजळत येशी दिशादिशांना|

धरतीच्या रे ह्रदय स्पंदना|

उत्सुक सारे तुझ्या दर्शना||

                

© वृंदा (चित्रा) करमरकर

सांगली

मो. 9405555728

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – मनमंजुषेतून ☆ “प्राजक्त…” लेखक – अज्ञात ☆ सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे ☆

सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे

? मनमंजुषेतून ?

☆ “प्राजक्त…” लेखक – अज्ञात ☆ सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे 

झाडावरुन प्राजक्त ओघळतो, 

त्याचा आवाज होत नाही, 

याचा अर्थ असा नाही की त्याला इजा होत नाही’…

“प्राजक्त” किंवा “पारिजातक” 

किती नाजुक फुलं..!

कळी पूर्ण उमलली की, इतर फुलझाडांप्रमाणे फूल खुडायचीही गरज नसते. डबडबलेल्या डोळ्यांतून अश्रु ओघळावा, तसं देठातुन फूल जमिनीवर ओघळतं.

“सुख वाटावे जनात,

दुःख ठेवावे मनात”

— हे या प्राजक्ताच्या फुलांनी शिकवलं.

एवढसं आयुष्य त्या फुलांचं..!

झाडापासुन दूर होतांनाही गवगवा करीत नाहीत.

छोट्याशा नाजुक आयुष्यात आपल्याला भरभरुन आनंद देतात.

आणि केवळ आपल्यालाच नाही,  तर आपल्या कुंपणात लावलेल्या झाडाची फुलं शेजारच्यांच्या अंगणातही पडतातच की. 

खरंच…! माणसाचं आयुष्यही असंच… एवढसं… क्षणभंगुर प्राजक्तासारखं…!

कधी ओघळून जाईल माहीत नाही.

आज आहे त्यातलं भरभरुन द्यावं हेच खरं…!!                 

लेखक : अज्ञात

प्रस्तुती : सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – वाचताना वेचलेले ☆ Believe – विश्वास आणि Trust – विश्वास… ☆ प्रस्तुती – सौ. उज्ज्वला पई ☆

? वाचताना वेचलेले ?

⭐ Believe – विश्वास आणि Trust – विश्वास… ☆ प्रस्तुती – सौ. उज्ज्वला पई ⭐

Believe-विश्वास आणि Trust -विश्वास.

दोन्ही शब्दांचा अर्थ “विश्वासच” आहे. पण तरीही दोन्ही विश्वासात अंतर आहे.

एकदा शेजारी शेजारी असलेल्या दोन उंच इमारतींच्या मधे केबल टाकून ती घट्ट बांधून व हातात मोठा बांबू घेऊन एक डोंबारी त्या केबलवरून या इमारतीवरून त्या इमारतीवर जात होता. त्याच्या खांद्यावर  त्याचा लहान मुलगा होता.

दोन इमारतींच्या मध्ये हजारो माणसे जमा झाली होती व श्वास रोखून त्याची ती जीवघेणी कसरत पहात होती.

हलणारी केबल, जोरदार वारा, स्वतःचा आणि मुलाचा जीव पणाला लावून त्याने ते अंतर पूर्ण केलं.

जमलेल्या लोकांनी उत्साहाने टाळ्या, शिट्या वाजवल्या, तोंड भरून कौतुक केले. तो इमारतीच्या खाली लोकांमधे आला. लोक त्याच्या बरोबर फोटो, सेल्फी  काढू लागले. त्याचं अभिनंदन करू लागले.

तो डोंबारी सगळ्यांना उद्देशून म्हणाला,

“मला हे पुन्हा एकदा करावसं वाटतं. तुम्हाला विश्वास वाटतो का मी हे पुन्हा करू शकेन?”

सगळी माणसं एक आवाजात म्हणाली, “हो, तू हे परत एकदा नक्कीच करू शकतोस.”

डोंबारी म्हणाला “तुम्हाला विश्वास आहे ना, मी हे परत करू शकेन?”

पुन्हा सगळे ओरडले, “हो हो.आम्हाला विश्वास आहे. तू पुन्हा हे नक्कीच करू शकशील.”

“तुम्हाला नक्की विश्वास आहे ना?”

“हो. तुझ्यावर पूर्ण विश्वास आहे तू खात्रीने करू शकशील.”

डोंबारी म्हणाला “ठीक आहे. तुमच्यापैकी कोणीतरी मला तुमचा मुलगा द्या.  त्याला खांद्यावर  घेऊन मी या केबलवरून चालतो.”

जमावामध्ये एकदम शांतता पसरली. सगळे चिडीचूप झाले. डोंबारी म्हणाला, “काय झाले. घाबरलात का?”

“अरे!आताच तर तुम्ही म्हणालात ना, की माझ्यावर पूर्ण विश्वास आहे म्हणून?”

तात्पर्य :- जमावाने जो डोंबाऱ्यावर दाखवलेला विश्वास हा Belief आहे, Trust  नाही.

तसेच हाच भ्रम सगळ्यांना आहे, परमेश्वर आहे. पण परमेश्वराच्या सत्तेवर विश्वास नाही.

You only believe in God, But you don’t trust him.

परमेश्वरावर विश्वास असेल तर चिंता आणि ताण – तणाव कशाला हवेत.

त्याच्या नामाने दगड तरले तर आपण का नाही तरणार?

परमेश्वरावर ठाम विश्वास बसण्यासाठी आपण चमत्काराची वाट पाहत बसतो. पण खरा चमत्कार हाच आहे की रोज तो आपल्याला नवीन करकरीत कोरा दिवस देतो.आपल्या गत चुकांमधून शिकण्यासाठी आणि नवीन क्षितिजे पादाक्रांत करण्यासाठी.

आपल्या जीवनात प्रत्येक क्षणाला आपला परमेश्वर आपल्या सोबत असतोच आणि आपल्या आयुष्यातील प्रत्येक क्षणाची खबर त्याला असतेच, हा विश्वास असला तर आपल्यासाठी जगातील कोणतीही गोष्ट अशक्य नाही.

संग्राहिका : सौ. उज्ज्वला पई

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ “चुटपूट…” ☆ सौ कल्याणी केळकर बापट ☆

सौ कल्याणी केळकर बापट

? विविधा ?

☆ “चुटपूट” ☆ सौ कल्याणी केळकर बापट ☆

व्हाट्सएपचं वेगवेगळ्या समुहाचं एक आगळंवेगळं जग असतं,नव्हे आहे. ह्या जगात नानाविध लोक,काही त्यांनी लिहीलेल्या,काही फाँरवर्डेड पोस्ट ह्या निरनिराळ्या विषयांवर असतात. कधी कधी एकच पोस्ट फिरतफिरत वेगवेगळ्या समुहांवरुन अनेकदा येते. मला हे जग बघितलं की आमच्या शेतातील धान्य निघतांना एक शेवटचा टप्पा असतो,ज्याला “खडवण” असं म्हणतात त्याचीच आठवण येते. ह्या खडवणीत जरा बारीक माती,खडे ह्यांच प्रमाण जास्त आणि धान्याचं प्रमाण कमी असं असतं.शेतकऱ्यांचं एक ब्रीद वाक्य असतं “खाऊन माजावं पण टाकून माजू नये”ह्यानुसार प्रत्येक शेतकरी अगदी निगूतीने ती खडवण निवडून धान्य बाजूला काढून अन्नदात्याप्रती कृतज्ञता व्यक्त करतो. कुठलाही शेतकरी धान्याचा शक्यतो एकही दाणा वाया जाऊ देत नाही. ह्या व्हाट्सएपचं च्या जगात पण आपल्या प्रत्येकाला ही शेतकऱ्यांची भुमिका बजवावी लागते. चांगल्या,दर्जेदार, वाचनीय, ज्यामुळे आपल्या पुढील आयुष्यात नक्कीच काही तरी चांगले शिकू,आचरणात आणू. अर्थातच  हे व्हाट्सएप समुह जरा निवांत वेळ असणाऱ्या, जबाबदा-या पार पाडलेल्या मंडळींसाठी मात्र खूप चांगले हे ही खरेच.

अशाच एका व्हाट्सएप ग्रुपवर जळगावच्या डॉ. श्रीकांत तारे ह्यांचे स्वतःचे “चुटपुट”नावाचे अनुभव कथन खूप जास्त भावले आणि त्या लिखाणाने विचारात देखील पाडले. ह्या लेखात आपलं माणूस असेपर्यंत त्याच्या आवडीच्या सोयीच्या गोष्टी करणं हे आपल्याला खूप जास्त समाधान देऊन जातं आणि कदाचित चुकून, अनवधानाने आपल्या हातून ती व्यक्ती असेपर्यंत ह्या गोष्टी करणं झाल्या नाहीत तर कायमची न संपणारी, आपल्या शेवटपर्यंत स्मरणात राहणारी ही एक “चुटपुट” लागून जाते ह्याबद्दल खूप छान लिहीलयं.प्रत्येकाने वाचावीच अशी ती पोस्ट. संपूर्ण पोस्ट तर  येथे पाठवू शकत नाही त्यामुळे फेसबुक वर कदाचित त्यांच्या वाँलवर ती आपल्या सर्वांना वाचायला मिळेल. आपल्याला पटलेल्या,दर्जेदार गोष्टी आपण वाचून त्या इतरांना वाचायला सांगण ह्यामध्ये पण एक आनंद असतो.

बरेचवेळा आपण आपल्या लोकांना गृहीत धरतो,त्यामुळे त्यांच्या मनातलं जाणून घ्यायचा प्रयत्न आपण करीतच नाही, आणि मग इथेच आपले सगळे सुखाचे कँल्यक्युलेशन चुकायला सुरवात होते. सध्या आपल्या सगळ्यांचच जीवनमान हे अतिशय वेगवान झालयं. जी गोष्ट परस्परांना देण्याघेण्यासाठी अतिशय मौल्यवान असते ती म्हणजे परस्परांनी एकमेकांना दिलेला आपला स्वतःचा वेळ,आणि आज बहुतेक आपल्या सगळ्यांना देण्यासाठी वेळ नाही ही एक शोकांतिकाच. ह्या परस्परांना वेळ देण्यामधूनच एकमेकांच्या मनातील भाव,ईच्छा ह्या न बोलता, सांगता एकमेकांना आपोआप कळायच्या मात्र आता वेळेचा अभावी एकमेकांना समजून घेणे ही गोष्ट अभावानेच आढळणारं, म्हणून आपण त्यावर तोडगा म्हणून आपली भुमिका गुळमुळीत न राहता दुसऱ्या व्यक्तीला सडेतोड सांगणं हे कौटुंबिक स्वास्थ्य टिकविण्यासाठी अत्यावश्यक ह्या सदरात मोडतं.मग हे नातं पालक अपत्यांमधील असो वा जोडीदारांमधील.आपली आवडनिवड, आपली स्वप्नं, आपल्या ईच्छा,आपल्या गरजा  ह्या परस्परांना स्पष्टपणे सांगून ,त्यावर विचारविनिमय करुन तोडगा काढल्यास कुणाही एका व्यक्तीला कायम तडजोड वा कायम मनं मारुन,ईच्छा ,गरजा अपूर्ण ठेऊन जगावं लागणार नाही. आणि मग परस्परांना निदान एक माणूस म्हणून आपण समजावून घेऊ शकू.

एका अनुभवामुळे मनात असे अनेक विचार आलेत, असेच अजून कितीतरी वेगवेगळे विचार आपल्या सगळ्यांच्या मनात येतीलच ही खात्री. त्यामुळे वाचत रहा बरेच वेळा आपल्या वाचनातूनच,वेगवेगळे अनुभव जाणून घेउनच आपल्याला आपल्या प्रश्नांची उत्तरं ही मिळायला मदत होते हे नक्की.

©  सौ.कल्याणी केळकर बापट

9604947256

बडनेरा, अमरावती

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ.मंजुषा मुळे/सौ.गौरी गाडेकर≈

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